लोकसभा चुनाव अपने पीक पर है. इसके साथ ही पंजाब और हरियाणा में MSP गारंटी कानून की मांग को लेकर शुरू हुए किसान आंदोलन ने भी नया मोड़ ले लिया है. आंदोलनकारी किसान अपनी मांगों को लेकर शंभू और खनौरी बॉर्डर पर बैठे हुए हैं तो वहीं इसके साथ अपने साथी किसानों की रिहाई के लिए रेल रोको अभियान चला रहे हैं. किसान आंदोलन के खुल रहे नए फ्रंटों के बीच अन्य राज्यों के किसान लोकसभा चुनाव के बाद आंदोलन के विस्तार पर चर्चा कर रहे हैं.
ऐसे में बड़ी संख्या में किसानों को उम्मीद है कि देश में एक बार फिर 2020-21 की तरह किसान आंदोलन स्पीड पकड़ेगा. इसको लेकर किसान संगठनों की भी मोर्चेबंदी में दिखाई दे रहे हैं.
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लोकसभा चुनाव से पहले ही किसान संगठन बड़ा किसान आंदोलन खड़ा करना चाहते थे, लेकिन किसान एकता में बिखराव ने आंदोलन के विस्तार की योजना को बेपटरी कर दिया. हालांकि SKM ने मौजूदा किसान आंदोलन के बीच किसान एकता को पटरी पर लाने की कोशिशे की. नतीजतन 14 मार्च की रामलीला मैदान में हुई रैली में SKM से छिटके गुरनाम सिंह चढूनी और बलवीर सिंह राजेवाल की SKM में वापसी हुई.
तब से ये कयास लगाए जा रहे थे कि लोकसभा चुनाव के दौरान या उसके बाद SKM और SKM गैरराजनीति को भी एक मंंच पर लाया जाएगा, जिससे किसान आंदोलन को विस्तार दिया जा सके, लेकिन अभी तक राजनीति की वजह से किसान एकता पर पेंच फंस हुआ है, जिसमें SKM का बिखराव दूर होता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है. आइए इस कड़ी में पूरा मामला समझने की कोशिश करते हैं.
तीन कृषि कानूनों के खिलाफ 13 महीने तक चला किसान आंदोलन SKM के बैनर ही संचालित हुआ था, जिसमें सभी किसान संगठन शामिल थे, लेकिन मौजूदा वक्त में पुराना SKM दो फाड़ नजर आता है. बेशक 13 महीने तक चले आंदोलन के स्थगन के बाद SKM कई गुटों में बंट गया था, जिसमें SKM के असंतुष्ट किसान नेताओं ने SKM गैर राजनीति बनाया तो वहीं गुरनाम सिंह चढूनी और बलवीर सिंह राजेवाल भी SKM से बाहर हो गए. ये दोनों किसान नेता अपने संंगठन के साथ मार्च में हुई किसान एकता की कवायद के बाद SKM में लौट आए, लेकिन SKM गैर राजनीतिक अभी भी पुराने SKM से बाहर है और आंदोलन का संचालन कर रहा है.
SKM में गुरनाम सिंह चढूनी और बलवीर सिंह राजेवाल की वापसी हो गई है. ऐसे में सवाल ये है कि क्या आंदोलन कर रहे SKM गैरराजनीतिक और SKM के बीच किसान एकता के लिए मतभेद खत्म करने की कोशिशें नहीं हुई है. इसकी पड़ताल की जाए तो समझा जा सकता है कि किसान एकता के लिए हरियाणा की सर्व खाप पंचायत के साथ ही किसान नेताओं ने भी कोशिश की थी, जिसके तहत रोहतक के टिटोली गांव में कुंडू खाप के नेतृत्व में हुई सर्वखाप में किसान संगठनों को 16 मार्च तक का अल्टीमेटम किसान एकता के लिए दिया गया था.
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इस पर बात करते हुए गुरनाम सिंह चढूनी कहते हैं कि सर्व खाप ने कोशिश की थी, लेकिन SKM गैर राजनीतिक के प्रतिनिधि शामिल नहीं हुए और बाद में टिटौली में चल रहे धरने भी खत्म हो गए. चढूनी आगे कहते हैं कि उन्होंने भी SKM और SKM गैर राजनीतिक को एक करने की कोशिश की थी. इसके लिए उन्होंने सरवन सिंह पंढेर और जगजीत सिंह दल्लेवाल की कमेटी से बातचीत की थी, लेकिन किसान एकता पर काम नहीं हो सका.
वह कहते हैं कि SKM गैर राजनीतिक के नेताओं का तर्क है कि वह राजनीति से दूर रहेंगे और चुनाव लड़ने वाले नेताओं के साथ आंदोलन में शामिल नहीं होना चाहते हैं, लेकिन दूसरी तरफ किसानों के मुद्दाें को राजनीति से दूर नहीं किया जा सकता है. चढूनी कहते हैं कि उनकी इस समस्या के समाधान के तौर पर ये प्रस्ताव दिया गया था कि एकता को बनाए रखते हुए आंदोलन में किसान संगठनों के गैर राजनीतिक चेहरों की एक कमेटी बनाई जाए, लेकिन इस पर भी सहमति नहीं बन सकी और राजनीति पर किसान एकता का पेंच फंस गया.
वहीं इस मुद्दे पर SKM गैर राजनीतिक के नेता अभिमन्यु सिंह काेहाड़ कहते हैं कि किसान एकता होनी चाहिए, एकता नियम और कायदों के साथ ही होनी चाहिए. आंदोलनकारी किसानों की मांग ये है कि चुनावी राजनीति से दूर रहा जाए तो इसी आधार पर किसान संंगठनों के बीच एकता होनी चाहिए.