Flood Effects: बाढ़ के बाद क्‍या मिट्टी उपजाऊ हो जाती है, मिथ है या सच, जानें

Flood Effects: बाढ़ के बाद क्‍या मिट्टी उपजाऊ हो जाती है, मिथ है या सच, जानें

कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि बाढ़ के साथ बहकर आने वाली नदी की मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्व, जैविक पदार्थ और महीन कण होते हैं.  जब यह गाद (सिल्ट) खेतों पर जम जाती है तो भूमि की उर्वरक क्षमता बढ़ जाती है. यही कारण है कि गंगा, ब्रह्मपुत्र और नील जैसी नदियों के किनारे की जमीन ऐतिहासिक रूप से सबसे उपजाऊ मानी जाती रही है. 

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क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • Sep 17, 2025,
  • Updated Sep 17, 2025, 7:21 AM IST

भारत जैसे कृषि प्रधान देश में बाढ़ हर साल लाखों किसानों के लिए चुनौती बनकर सामने आती है. घरों और खेतों को डुबो देने वाली बाढ़ को आमतौर पर विनाशकारी माना जाता है, लेकिन एक दिलचस्प सवाल यह भी है कि क्या बाढ़ के बाद मिट्टी वास्तव में उपजाऊ हो जाती है? विशेषज्ञों और कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार बाढ़ का असर दो पहलुओं में देखा जाता है, विनाश और पुनर्निर्माण. एक तरफ यह फसलों और खेतों को नुकसान पहुंचाती है, वहीं दूसरी तरफ मिट्टी को प्राकृतिक खाद और नई ऊर्जा भी देती है. वैज्ञानिक मानते हैं कि अगर किसान बाढ़ के बाद मिट्टी की जांच कर सही फसल और तकनीक अपनाएं, तो बाढ़ का यह संकट कभी-कभी वरदान भी बन सकता है. 

बाढ़ और उपजाऊ मिट्टी का संबंध

कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि बाढ़ के साथ बहकर आने वाली नदी की मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्व, जैविक पदार्थ और महीन कण होते हैं.  जब यह गाद (सिल्ट) खेतों पर जम जाती है तो भूमि की उर्वरक क्षमता बढ़ जाती है. यही कारण है कि गंगा, ब्रह्मपुत्र और नील जैसी नदियों के किनारे की जमीन ऐतिहासिक रूप से सबसे उपजाऊ मानी जाती रही है. 

मिट्टी को क्या मिलता है?

  • बाढ़ का पानी नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम और सूक्ष्म खनिजों को खेतों तक पहुंचाता है. 
  • नदी के बहाव में घुली पत्तियां, लकड़ी और अन्य कार्बनिक अवशेष मिट्टी में मिलकर उसकी संरचना सुधारते हैं. 
  • खेतों पर ताजा गाद जमने से ऊपरी सतह की मिट्टी बदल जाती है, जिससे फसलों को नई ऊर्जा मिलती है. 

फायदे के साथ चुनौतियां भी

बाढ़ के बाद भले ही मिट्टी में उर्वरता बढ़ सकती है, लेकिन इसके साथ कुछ चुनौतियां भी जुड़ी रहती हैं. कई बार पानी के लंबे समय तक खड़े रहने से मिट्टी की नमी संतुलन बिगड़ जाता है और फसल लगाने में देर होती है. बाढ़ से खेतों में रेत की मोटी परत जम सकती है, जिससे मिट्टी की उत्पादकता घट जाती है. साथ ही बाढ़ के पानी में मौजूद प्रदूषक और केमिकल भी मिट्टी की सेहत को नुकसान पहुंचा सकते हैं. 

इतिहास से उदाहरण

प्राचीन मिस्र की सभ्यता नील नदी की बाढ़ पर ही आधारित थी. हर साल नील की बाढ़ खेतों में उपजाऊ गाद लाती और किसानों की खेती चमक उठती. भारत में भी गंगा और कोसी जैसी नदियों के मैदानों में यही परंपरा देखने को मिलती है.

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