ओईसीडी-एफएओ (OECD-FAO) ने 2025 से 2034 तक के लिए जारी अपने मध्यम अवधि के विश्लेषण में वैश्विक चीनी बाजार को लेकर कई अहम अनुमान पेश किए हैं. रिपोर्ट के अनुसार, आने वाले वर्षों में भारत में चीनी का उत्पादन बढ़ने और इसका इथेनॉल बनाने में इस्तेमाल बढ़ने वाला है. वहीं, चीनी की वैश्विक कीमतों में हल्की गिरावट देखी जा सकती है, हालांकि इसमें अनिश्चितता की गुंजाइश बनी रहेगी. इसका कारण जलवायु परिवर्तन से जुड़ी घटनाएं, ब्राजील की वैश्विक बाजार में प्रमुख भूमिका और इथेनॉल की तुलना में चीनी उत्पादन की सापेक्ष लाभप्रदता में उतार-चढ़ाव हो सकते हैं.
OECD-FAO की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में चीनी से बनने वाले इथेनॉल का उत्पादन सरकारी प्रोत्साहनों के चलते तेजी से बढ़ेगा. इस समय देश की कुल चीनी उत्पादन का करीब 9 प्रतिशत हिस्सा इथेनॉल बनाने में जाता है, लेकिन 2034 तक यह हिस्सा बढ़कर 22 प्रतिशत तक पहुंच सकता है. सरकार ईंधन में इथेनॉल की मिलावट को बढ़ावा देने और चीनी उद्योग में विविधता लाने के लिए लगातार कदम उठा रही है.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत 2034 तक भी ब्राजील और थाईलैंड के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा चीनी निर्यातक बना रहेगा. हालांकि, वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी महज 8 प्रतिशत ही होगी. रिपोर्ट के अनुसार, भारत में चीनी उत्पादन की रफ्तार पिछले दशक की तुलना में थोड़ी धीमी रह सकती है, लेकिन इसके बावजूद भारत 87 लाख टन की वृद्धि के साथ एशिया में सबसे ज्यादा चीनी उत्पादन बढ़ाने वाला देश बना रहेगा.
एशिया में चीनी की खपत में बढ़ोतरी के लिहाज से भारत सबसे आगे रहेगा. इसके बाद इंडोनेशिया, पाकिस्तान और चीन में खपत ज्यादा रहेगी. रिपोर्ट के मुताबिक, इन देशों में आबादी में बढ़ने और आय स्तर में सुधार के चलते आने वाले दशक में प्रोसेस्ड फूड और पेय पदार्थों की मांग बढ़ेगी, जिससे चीनी की खपत में तेजी आएगी. हालांकि, चीन में लो-शुगर डाइट की प्राथमिकता के कारण खपत की रफ्तार अपेक्षाकृत धीमी रह सकती है.
दुनिया में चीनी उत्पादन का प्रमुख स्रोत गन्ना ही रहेगा, जो 85 प्रतिशत से अधिक उत्पादन में योगदान देगा. वहीं, पहले से ही गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक ब्राजील अपनी स्थिति और मजबूत करेगा. साथ ही भारत और थाईलैंड में भी उत्पादन में सुधार देखने को मिलेगा, जिसका श्रेय उन्नत किस्मों और बेहतर एक्सट्रैक्शन तकनीक को दिया जा रहा है.
हालांकि, रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन, अन्य फसलों से भूमि के लिए प्रतिस्पर्धा और पौध संरक्षण उत्पादों की उपलब्धता में कमी जैसे कारक भविष्य में चीनी उत्पादन को प्रभावित कर सकते हैं. खासकर यूरोपीय देशों में बीट शुगर के उत्पादन पर दबाव बना रह सकता है.