
आपके मन में यह सवाल कभी न कभी जरूर आया होगा कि मंडियों में भाव कैसे तय होता है. यह भी सवाल होगा कि मंडी भाव को कौन तय करता है. अगर आप कृषि उपज की खरीद-फरोख्त से जड़े हैं तो ऐसा विचार जरूर आता होगा. तो आज हम इसी पर बात करेंगे कि मंडियों में आखिर उपज का दाम तय करने की प्रक्रिया क्या है. दरअसल, भारत में अधिकांश कृषि उपज का व्यापार राज्य सरकारें करती हैं. इन सरकारों ने कृषि उपज विपणन समितियां (APMC - Agricultural Produce Market Committee) बनाई हैं जहां उपज की खरीद-बिक्री होती है. हर जिले या क्षेत्र में एक नियंत्रित मंडी (regulated market) होती है, जहां किसान अपनी उपज बेचते हैं.
इन मंडियों में हर दिन उपज का भाव तय किया जाता है. और इसे तय करने की पूरी एक प्रक्रिया होती है. भाव तय करने से पहले कई फैक्टर पर गौर करना होता है. तो आइए जान लें कि भाव किन बातों पर निर्भर करता है-
उपज की नमी, दाने का आकार, रंग, और शुद्धता, ये सब रेट पर असर डालते हैं. उदाहरण के लिए गेहूं की ‘शरबती’ किस्म का भाव साधारण गेहूं से ज्यादा हो सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसके दाने का आकार, रंग और शुद्धता बाकी गेहूं से बेहतर होता है. इससे बनी चपाती का स्वाद भी बेहतर होता है. इसलिए मंडी में इस किस्म को अधिक भाव मिलता है.
मंडी में किसी भी उपज की खरीद के लिए व्यापारी बोली (auction) लगाते हैं. सबसे ऊंची बोली वाला खरीदार उपज ले जाता है. जान लें, उस दिन की औसत बोली दर को ही “मंडी भाव” के रूप में दर्ज किया जाता है. यानी बोली में उस दिन जो औसत भाव निकल कर आएगा, उस उपज का उस दिन का मंडी भाव होगा.
केंद्र सरकार हर साल प्रमुख फसलों के लिए MSP तय करती है जिसका असर मंडी भाव पर देखा जाता है. यह एक तरह से सरकार की हस्तक्षेप योजना है जो किसानों को किसी भी उपज का न्यूनतम दाम दिलाना सुनिश्चित करता है. एमएसपी से तय होता है कि किसी भी फसल के लिए किसान को इससे कम भाव नहीं मिलना चाहिए. हालांकि, MSP पर खरीदी सिर्फ कुछ राज्यों और कुछ फसलों (जैसे धान, गेहूं) के लिए सक्रिय रूप से होती है.
बारिश, बाढ़, सूखा या सड़क बंद होने जैसी स्थितियां भी कीमतों को प्रभावित करती हैं. आपने देखा होगा बरसात में कई सब्जियों के दाम आसमान छूने लगते हैं. इसकी वजह है बारिश, बाढ़ या सड़क बंद होने से मंडी में सप्लाई नहीं पहुंचना. सप्लाई नहीं पहुंचने से मांग और आपूर्ति का बैलेंस खराब होता है जिससे सब्जी के भाव बढ़ जाते हैं.
यदि सरकार किसी फसल के निर्यात की अनुमति देती है तो भाव बढ़ जाते हैं. वहीं, आयात सस्ता होने से घरेलू कीमतें गिर सकती हैं. इसे प्याज की कीमतों से समझ सकते हैं. सरकार ने जैसे ही निर्यात पर प्रतिबंध लगाया, उसके भाव बाजार में गिर गए और किसान पसोपेश में आ गए. दूसरी ओर, कपास का आयात जीरो ड्यूटी पर होने से उसकी कीमतें बहुत तेजी से गिरी हैं. यानी आयात और निर्यात की नीतियां भी मंडी भाव को तय करती हैं.
e-NAM (National Agriculture Market) एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है जहां देशभर की मंडियां जुड़ी हैं. इससे किसानों को उपज के अच्छे भाव मिलते हैं,
मंडी में दामों के बीच मुकाबला बढ़ता है, और फसल कहीं से भी बेची जा सकती है.
कुल मिलाकर, भारत में मंडी भाव किसी सरकारी अधिकारी के जरिये तय नहीं किए जाते, बल्कि मंडी में खरीदारों और विक्रेताओं के बीच बोली के आधार पर तय होते हैं. सरकार केवल MSP, नीति और सिस्टम का एक ढांचा मुहैया करती है.