PM Modi ने लाल किले की प्राचीर से एक बार फिर प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने का जिक्र किया है. इससे पहले बजट में प्राकृतिक खेती को लेकर ऐलान किया गया था, जिसके तहत अगले दो वर्षों में एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ा जाना है. कुल जमा प्राकृतिक खेती पर मोदी सरकार केंद्रित नजर आ रही है. ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि आखिर क्यों मोदी सरकार प्राकृतिक खेती पर इतना जोर दे रही है.
बेशक, आहार शुद्धता के लिए प्राकृतिक खेती से उपजा अनाज जरूरी है, लेकिन सवाल ये भी है कि क्या प्राकृतिक खेती से किसानाें को फायदा होगा. ऐसे कुछ सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश हमने की है, जिसके बाद साफगाेई से कहा जा सकता है कि प्राकृतिक खेती छोटी जोत और सीमांत किसानों की तस्वीर और तकदीर बदल सकती है. ऐसा क्यों और कैस... आइए समझते हैं.
प्राकृतिक खेती क्या है और इसकी जरूरत क्यों पड़ी? इसे समझते हैं. असल में हरित क्रांति में उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग ने मिट्टी के स्वास्थ्य को प्रभवित किया है. इन हालतों के अंदर मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले पोषक तत्व भी प्रभावित हुए हैं. विशेषज्ञ बताते हैं कि मिट्टी में जीवाश्म की मात्रा 0.5 से 0.8 फीसदी तक होनी चाहिए, इसे अच्छा माना जाता है, लेकिन मौजूदा वक्त में मिट्टी में जीवाश्म की मात्रा 0.2 फीसदी तक है. ऐसे में किसानों को उत्पादन के लिए खाद की जरूरत पड़ती है. इन हालातों में मिट्टी का स्वास्थ्य सुधारने के लिए प्राकृतिक खेती बेहद जरूरी है.
प्राकृतिक खेती क्या है? इस सवाल के जवाब में केवीके गौतमबुद्ध नगर के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ विपिन कुमार कहते हैं कि प्राकृतिक खेती में किसानों को सभी प्राकृतिक अदानों का प्रयाेग करना होता है. उपजाऊ शक्ति बढ़ाने के लिए प्राकृतिक खाद तैयार करनी होती है. इसी तरह कीट व रोग प्रबंधन के लिए भी नीम, मट्टा जैसे अदानों से प्राकृतिक दवाओं का निर्माण किया जाता है. यानी प्राकृतिक तरीक से की गई खेती ही प्राकृतिक खेती है.
प्राकृतिक खेती को क्यों फायदे का सौदा कहा जा रहा है, जबकि सामान्य खेती की तुलना में प्राकृतिक खेती में उत्पादन कम होता है. ये बात सच है, लेकिन उत्पादन की चिंता थोड़े समय के लिए है. केवीके गौतमबुद्ध नगर में वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ विपिन कुमार कहते हैं कि पिछले कुछ हुए ट्रायल के दौरान प्राकृतिक खेती से उत्पादन में कमी दर्ज की गई है, लेकिन ऐसा शुरू के कुछ सालों के लिए ही होता है. मसलन, तीन से चार साल में किसान प्राकृतिक खेती से सामान्य खेती की तरह उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन प्राकृतिक खेती में लागत सामान्य खेती की तुलना में एक तिहाई ही लगती है. मतलब, किसान प्राकृतिक खेती शुरू करने के तीन से चार साल बाद कम लागत में बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं
प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार प्रयासरत है. बेशक ये आहार शुद्धता के लिए जरूरी है, लेकिन प्राकृतिक खेती छोटी जोत वाले सीमांत किसानों यानी पूरी खेती की तकदीर बदल सकती है. मसलन, ऐसे किसानों को प्राकृतिक खेती दोहरे फायदा उपलब्ध करा सकती है.
असल में भारत में लघु व सीमांत किसान यानी छोटी जोत वाले किसानों की संख्या 85 फीसदी से अधिक है. मझौले, लघु व सीमांत किसान यानी जिनके पास खेती के लिए दो एकड़ से कम जमीन है. ऐसे किसानों के लिए मौजूदा वक्त में सामान्य खेती करना महंगा साबित हो रहा है, जबकि लागत की तुलना में उत्पादन कम है और खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है. नतीजतन युवा पीढ़ी किसानी छोड़ रही है.
इसके उलट प्राकृतिक खेती को गौ आधारित खेती माना जाता है, जिसमें गाय के मूत्र और गोबर से ही खेती के लिए खाद, कीटनाशक जैसे आदान तैयार किए जाते हैं. यानी प्राकृतिक खेती किसानी और पशुपालन के मिश्रण का फल है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए कई राज्य सरकारें देशी गायों को बढ़ावा दे रही हैं और किसानों को सब्सिडी पर देशी गाय उपलब्ध करा रही हैं.
अगर छोटी जोत वाले किसान प्राकृतिक खेती के लिए देशी गाय पालन की इस व्यवस्था पर गंभीरता से अमल करते हैं तो वह बेहद ही कम खर्च यानी निवेश में शुद्ध दूध के साथ ही शुद्ध अनाज के उत्पादक बन जाएंगे. जिस तरीके से प्राकृतिक खेती और गौ पालन एक दूसरे के पूरक हैं, उसी तरह से शुद्ध दूध और शुद्ध अनाज भी एक दूसरे के पूरक बन जाएंगे. तो वहीं शुद्ध दूध और शुद्ध अनाज मौजूदा वक्त में बाजार की जरूरत है. ऐसे में प्राकृतिक खेती करने वाले किसान शुद्ध अनाज के साथ ही शुद्ध दूध भी बेहतर दाम में बेच सकेंगे.
प्राकृतिक खेती के लिए बाजार और इसके स्टैंडर्ड तय करने की मांग लंंबे समय से हो रही है, लेकिन बीते दिनों हिमाचल प्रदेश सरकार इस पर एक मॉडल तैयार करने की तरफ बढ़ा है. हिमाचल सरकार ने प्राकृतिक रूप से उपजाए गए गेहूं को 4000 रुपये क्विंटल खरीदने का ऐलान किया है, जो मौजूदा वक्त में गेहूं की MSP से 2125 रुपये क्विंटल अधिक है. हालांकि अभी जरूरत प्राकृतिक खेती वाला आहार खाने वाली देशी गायों के शुद्ध दूध के दाम तय करने की है, लेकिन जिस दिन दूध के दाम भी तय हो जाएंगे. तो ये सच है कि छोटी जोत वाले किसानों के लिए प्राकृतिक खेती दोहरे फायदे का सौदा साबित होगी.