हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (HAU), हिसार के वैज्ञानिकों ने स्ट्रॉबेरी की खेती में एक बड़ी चुनौती बन रही बीमारी ‘क्राउन रॉट’ के नए रोग कारक की पहचान की है. यह पहला मौका है, जब भारत में इस बीमारी के लिए एक नए रोग कारक कोलेटोट्रीकम निम्फेई की पुष्टि हुई है. इस वैज्ञानिक खोज को विश्वप्रसिद्ध डच प्रकाशन संस्था एल्सेवियर के जर्नल फिजियोंलोजिकल एंड मोलिकुलर प्लांट पैथोलोजी में HAU के वैज्ञानिकों की रिपोर्ट को प्रकाशन के लिए स्वीकार किया गया है.
एल्सेवियर ने इस शोध को ‘प्रथम शोध रिपोर्ट’ के रूप में मान्यता दी है. इसके साथ ही हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक स्ट्रॉबेरी की इस बीमारी पर रिपोर्ट पेश करने वाले देश के पहले शोधकर्ता बन गए हैं. एल्सेवियर की नास रेटिंग 8.8 है और यह विश्व स्तर पर पौध रोगों पर आधारित शोध को मान्यता देने वाली प्रतिष्ठित संस्था मानी जाती है.
बताया गया कि इस रोग ने बीते साल हिसार के स्ट्रॉबेरी क्लस्टर में करीब 20-22 प्रतिशत तक की फसल को नुकसान पहुंचाया था. हिसार जिला उत्तर भारत में स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए एक बड़ा केंद्र बन चुका है, जहां लगभग 700 एकड़ भूमि पर स्ट्रॉबेरी की खेती की जा रही है. स्याहड़वा गांव की स्ट्रॉबेरी अब अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी अपनी पहचान बना रही है.
हिसार जिले में स्ट्रॉबेरी क्लस्टर की शुरुआत 1996 में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने की थी. इस फल की सफल खेती अक्सर विभिन्न जैविक कारकों से बाधित होती है, जिनमें से क्राउन रॉट बड़ी चिंता का विषय है. यह खोज स्ट्रॉबेरी की खेती की सुरक्षा के लिए निगरानी और मजबूत प्रबंधन रणनीतियों की तत्काल जरूरत को रेखांकित करती है.
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने वैज्ञानिकों को इस खोज के लिए बधाई दी और कहा कि बदलते जलवायु परिदृश्य के बीच फसलों में उभरती बीमारियों की समय पर पहचान बेहद जरूरी है. उन्होंने वैज्ञानिकों से आग्रह किया कि इस बीमारी की निगरानी और नियंत्रण के लिए तेजी से काम किया जाए, ताकि भविष्य में किसानों को नुकसान से बचाया जा सके.
रोग की पहचान और शोध कार्य में डॉ. आदेश कुमार प्रमुख शोधकर्ता रहे. उनके साथ अनिल कुमार सैनी, सुशील शर्मा, राकेश गहलोत, अनिल कुमार, राकेश कुमार, के.सी. राजेश कुमार, विकास कुमार शर्मा, रोमी रावल, आर.पी.एस. दलाल और पीएचडी छात्र शुभम सैनी ने भी योगदान दिया.
अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने बताया कि हिसार के स्याहड़वा, चनाना, हरिता और मिरान जैसे गांव स्ट्रॉबेरी उत्पादन के हब बन चुके हैं. लेकिन, क्राउन रॉट बीमारी जैसी जैविक चुनौतियां इन किसानों की आय पर असर डालती हैं. इस खोज से न केवल रोग की पहचान संभव हुई है, बल्कि इसके प्रबंधन के लिए वैज्ञानिक उपाय भी जल्द सामने आने की उम्मीद है.
डॉ. आदेश कुमार ने बताया कि टीम अब इस बीमारी के असर को समझने और इसके प्रकोप को कम करने के लिए रणनीति विकसित कर रही है. उनका उद्देश्य है कि स्ट्रॉबेरी उत्पादन को सुरक्षित और स्थिर बनाया जा सके, ताकि किसान इस लाभकारी फसल से ज्यादा आमदनी हासिल कर सकें.