दिल्ली से महज 50 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के जनपद हापुड़ में एक ऐसा गांव है, जहां पिछले 30 वर्षों में किसी झगड़े को लेकर थाने तक कोई शिकायत नहीं पहुंची और न ही किसी ग्रामीण के विरुद्ध कोई मुकदमा (FIR ) दर्ज हुआ है. गांव के लोग ही आपस में बैठकर विवादों को सुलझा लेते हैं. गांव के अधिकांश लोग शिक्षित और किसान हैं जो स्वयं खेती करते हैं. गांव में कोई भी नशा नहीं करता. यहां के किसानों को खेती से अच्छी पैदावार और कमाई होती है. रतनगढ़ गांव में बुजुर्गों का फैसला सर्वोच्च माना जाता है और ग्रामीण किसी भी विवाद की स्थिति में बड़े बुजुर्गों के निर्णय को ही अंतिम और सर्वमान्य मानते हैं.
आपको बता दें कि किसी भी मामले में विवाद, झगड़ा, मारपीट, रिपोर्ट और मुकदमेबाजी होना एक सामान्य प्रक्रिया है. कई बार झगड़े सुलझाने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों को पुलिस अधिकारियों के साथ मिलकर गांवों में ग्रामीणों के साथ जनचौपाल और शांति सभा तक करनी पड़ती हैं. इसके बाद भी यूपी में एक ऐसा गांव है, जो दिल्ली से महज 50 किलोमीटर दूर हापुड जनपद में गढ़मुक्तेवर कोतवाली क्षेत्र के अंतर्गत, गंगा के किनारे बसा है जिसका नाम रतनगढ़ है. इस गांव में पिछले तीन दशक से कोई रिपोर्ट पुलिस थाने में दर्ज नहीं हुई है.
करीब 50 परिवारों वाले इस छोटे से गांव में होने वाले झगड़ों को गांव के ही बड़े बुजुर्ग आपस में मिल-बैठकर सुलझा लेते हैं. गांव में कोई भी नशा करने वाला व्यक्ति नहीं है. सभी लोग शिक्षित हैं और अच्छी नौकरियों में हैं. गंगा खादर क्षेत्र में बसा रतनगढ़ राजपूतों का गांव है जिसकी आबादी महज 50 परिवार है. रतनगढ़ गांव पूर्ण साक्षर गांव भी घोषित है. गढ़मुक्तेश्वर कोतवाली क्षेत्र में खादर के इस गांव में ज्यादातर परिवार एक ही गोत्र के हैं. सभी परिवार संपन्न किसान हैं और लगभग प्रत्येक परिवार में से एक-दो लोग नौकरी में हैं.
रतनगढ़ गांव में 50 में से 30 परिवारों के पास कार व ट्रैक्टर आदि सुविधा-जरूरत के सभी साधन उपलब्ध हैं. जबकि वहीं करीब 20 किसान ऐसे हैं, जिनके पास एक हजार बीघा या उससे अधिक जमीन है. 100 प्रतिशत शिक्षित और नशा से मुक्त इस गांव में आज भी सरपंच का ओहदा सर्वोपरी माना जाता है. ज्यादातर लोग उनकी बात मानते हैं. इस गांव के किसानों की संपन्नता का कारण यह भी है कि वह जैविक खेती करते हैं, जिसकी पैदावार महंगे दामों पर बिकती है. खेती के अत्याधुनिक उपकरण यहां के किसानों के पास हैं.
गढ़ तहसील का गांव रतनगढ़, आलमगीरपुर और बलवापुर, भउवापुर का एक छोटा सा माजरा है. तीन गांव की ग्राम पंचायत बलवापुर है. रतनगढ़ गांव में दो खानदानों के लगभग 50 परिवार हैं और लगभग 100 वोटर हैं. सभी परिवार चौहान राजपूत और दो गोत्र कुशवाहा और तोमर हैं. सभी परिवार समृद्ध हैं और सभी मेहनत करके प्राइवेट नौकरी कर रहे हैं. देश की आरक्षण व्यवस्था और बेरोजगारी को दोष देते हुए कुछ युवकों ने बताया कि हम सरकारी नौकरी की तैयारी नहीं करते हैं, पढ़े लिखे हैं, बड़े शहरों में प्राइवेट नौकरी करते हैं. घर अच्छे से चल रहा है.
हालांकि इस गांव में कोई भी सरकारी प्राइमरी या जूनियर हाइस्कूल आदि नहीं है. बच्चे 2 किलोमीटर दूर बृजघाट पढ़ने जाते हैं. गढ़ कोतवाली प्रभारी इंस्पेक्टर नीरज कुमार ने बताया कि रतनगढ़ अलग तरह का गांव है. यहां के लोग झगड़ते नहीं हैं. यदि कोई कभी मुंहभाषा भी हो जाती है तो गांव में बड़े बुजुर्ग ही फैसला कर देते हैं. कभी थाने में रिपोर्ट देने कोई नहीं आया है. थाने के अभिलेखों के अनुसार रतनगढ़ थाने का कोई भी अभियोग पंजीकृत नहीं है. हम अन्य गांवों में भी इसका उदाहरण देते हैं.
वहीं रतनगढ़ के एक ग्रामीण डॉ भंवर चौहान ने बताया, "मेरी उम्र लगभग 56 वर्ष है. हमारे स्कूल में सभी शिक्षित और रोजगार वाले हैं. खेती को भी हमने मुख्य रोजगार बनाया है. मेरे स्मरण के अनुसार आज तक कोई झगड़ा गांव में नहीं हुआ है. इस गांव में कोई नशा नहीं करता, जो झगड़े की सबसे बड़ी जड़ है."
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