भारतीय कृषि एक परिवर्तन के दौर से गुजर रही है. दशकों तक रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता ने जहां पैदावार बढ़ाई, वहीं मिट्टी की सेहत को गंभीर नुकसान पहुंचाया. एक ओर जहां रासायनिक उर्वरकों के आयात का भारी बोझ देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है, वहीं दूसरी ओर, यूरिया और डीएपी जैसे जरूरी खादों के लिए विदेशी बाजारों पर निर्भरता के कारण अक्सर इनकी आपूर्ति में अनिश्चितता और किल्लत की स्थिति बन जाती है. यह किल्लत न केवल हमारे अन्नदाता किसानों के लिए बड़ी परेशानी का सबब बनती है, बल्कि हमारी राष्ट्रीय कृषि उपज पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है. इन्हीं गंभीर चुनौतियों के बीच, एक नया और प्रभावी समाधान चर्चा के केंद्र में उभर रहा है.
एफओएम (FOM), यानी किण्वित जैविक खाद यानी Fermented Organic Manure के बारे में कृषि वैज्ञानिकों का का कहना है कि यह कोई साधारण खाद नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली जैविक समाधान है जो भारत की खेती, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण की कहानी को फिर से लिखने की क्षमता रखता है. जो हमारी मिट्टी को पुनर्जीवित करने और किसानों को समृद्ध बनाने की क्षमता रखता है.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा का एग्रोनॉमी डिवीजन इस खाद पर व्यापक रूप से रिसर्च कर रहा है. एग्रोनॉमी डिवीजन के हेड डॉ संजय सिंह राठौर का कहना है कि एफओएम खाद एक विशेष प्रक्रिया से तैयार की गई जैविक खाद है. इसे बनाने के लिए पशुओं के गोबर, कृषि अपशिष्ट (जैसे पराली), गन्ने की खोई, सब्जियों के छिलके और अन्य जैविक कचरे का उपयोग किया जाता है. इस कचरे को एक बड़े बंद टैंक, जिसे 'डाइजेस्टर' कहते हैं, में डाला जाता है. यहां ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में लाखों-करोड़ों सूक्ष्मजीव (bacteria) इस कचरे को विघटित करते हैं. इस प्रक्रिया को किण्वन (Anaerobic Digestion) कहा जाता है.
इस प्रक्रिया के दो मुख्य उत्पाद होते हैं. बायोगैस यानी CBG जो एक स्वच्छ और हरित ऊर्जा स्रोत. दूसरा, पोषक तत्वों से भरपूर घोल जिसे सेलरी कहते हैं. गैस निकलने के बाद जो गाढ़ा तरल पदार्थ बचता है, उसे ही संसाधित कर ठोस और तरल एफओएम बनाया जाता है. यह किण्वन प्रक्रिया ही एफओएम को पारंपरिक कंपोस्ट से कहीं ज़्यादा शक्तिशाली बनाती है. इस प्रक्रिया में, जटिल कार्बनिक यौगिक सरल रूपों में टूट जाते हैं जिससे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व पौधों के लिए तुरंत और आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), पूसा के एग्रोनॉमी डिवीजन के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह के अनुसार, एफओएम पर हो रहा व्यापक शोध इसके असाधारण लाभों की पुष्टि करता है. यह मिट्टी के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. यह मिट्टी को भुरभुरा, मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ाता है, और मिट्टी में केंचुए और अन्य लाभकारी सूक्ष्मजीवों की संख्या को बढ़ाता है जो पौधे के लिए बेहद लाभकारी है. इससे मिट्टी का कटाव कम होता है. यह मिट्टी के पीएच (pH) स्तर को संतुलित करता है, जिससे अत्यधिक अम्लीय या क्षारीय मिट्टी भी उपजाऊ बन जाती है. यह 100% प्राकृतिक उत्पाद है, जिसमें कोई हानिकारक रसायन नहीं होता, जो मिट्टी, फसल और मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाए.
डॉ सिंह के अनुसार स्वस्थ मिट्टी का सीधा लाभ फसलों को मिलता है. एफओएम पौधों को एक संतुलित और लंबे समय तक चलने वाला पोषण प्रदान करता है. रासायनिक उर्वरकों के विपरीत, जो एक बार में सारा पोषण देकर खत्म हो जाते हैं, एफओएम धीरे-धीरे पोषक तत्व छोड़ता है, जिससे पौधे लगातार और समान रूप से बढ़ते हैं. इससे न केवल पौधों की जड़ें गहरी और मजबूत होती हैं, बल्कि उनकी बीमारियों और कीटों से लड़ने की प्राकृतिक क्षमता भी बढ़ती है. इन सभी फायदों का अंतिम परिणाम फसल की पैदावार और गुणवत्ता (जैसे स्वाद, आकार और पोषक मूल्य) में महत्वपूर्ण सुधार के रूप में सामने आता है.
भारतीय बायोगैस एसोसिएशन (IBA) के अनुसार, एफओएम का सही इस्तेमाल भारत को उर्वरक आयात पर खर्च होने वाले लगभग लगभग 12,500 करोड़ रुपये बचाने में मदद कर सकता है. यह देश की उर्वरक आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम है. इसके अलावा, एफओएम का उत्पादन सीधे तौर पर संपीड़ित बायोगैस (CBG) संयंत्रों से जुड़ा है. ये संयंत्र पराली जलाने और जैविक कचरे के प्रबंधन जैसी गंभीर समस्याओं का स्थायी समाधान प्रदान करते हैं. इस प्रकार, जो कचरा कल तक एक बोझ था, आज वह ऊर्जा और खाद, दोनों का स्रोत बन गया है, जो एक चक्रीय अर्थव्यवस्था का बेहतरीन उदाहरण है.
वर्तमान में, भारत लगभग 10 लाख मीट्रिक टन एफओएम का उत्पादन करता है. लेकिन यह तो बस शुरुआत है. देश में लगभग 97 बायोगैस प्लांट पहले से ही काम कर रहे हैं और 570 से अधिक प्लांट निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं. IBA का अनुमान है कि जब ये सभी प्लांट पूरी क्षमता से काम करने लगेंगे, तो अकेले ठोस एफओएम का बाजार 2.6 अरब डॉलर का हो सकता है. अगर तरल एफओएम (LFOM) को भी मिला दिया जाए, तो यह क्षमता कई गुना बढ़ सकती है.
सरकार इसको गति देने के लिए गंभीर प्रयास कर रही है. गोबरधन योजना के तहत, सरकार एफओएम पर ₹1500 प्रति टन की सब्सिडी दे रही है, ताकि यह किसानों तक सस्ती दरों पर पहुंच सके. कृषि विज्ञान केंद्रों और विश्वविद्यालयों के माध्यम से किसानों के बीच इसके फायदों का प्रदर्शन किया जा रहा है. फरवरी 2025 में, कृषि मंत्रालय ने एक ऐतिहासिक संशोधन करते हुए बायोगैस संयंत्रों से बनी जैविक खादों को उर्वरक की श्रेणी में शामिल कर लिया है, जिससे इसके विपणन और स्वीकार्यता का मार्ग प्रशस्त हुआ है. रिलायंस, एचपीसीएल, आईपीएल और मारुति सुजुकी जैसी बड़ी कंपनियां भी इस क्षेत्र में उतर चुकी हैं, जो इस क्रांति के औद्योगिक पैमाने का संकेत है.