
देश में कृषि विकास, बदलती मांग और आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए नीति आयोग के सदस्य डॉ. रमेश चंद ने किसानों से आह्वान किया है कि वे ऐसी फसलों की ओर बढ़ें, जो सरकार की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रणाली के दायरे में नहीं आती. दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि अब वह दौर आ गया है जब किसानों की कमाई सिर्फ सरकारी दामों पर निर्भर नहीं रह सकती, बल्कि बाजार की मांग, वैल्यू चेन और नई खेती की दिशा ही असली लाभ का रास्ता खोलेगी.
चंद ने कहा कि MSP वाली फसलों में पिछले एक दशक में उत्पादन वृद्धि की दर मात्र 1.8% रही है, जबकि गैर-MSP फसलों की ग्रोथ 4% को पार कर चुकी है. इसी अवधि में देश की कृषि वृद्धि दर औसतन 4.6% रही, लेकिन घरेलू मांग सिर्फ 2% के आसपास है. ऐसे में उत्पादन बढ़ने पर सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इस अतिरिक्त उपज का किया क्या जाए.
नीति आयोग सदस्य ने कहा कि समाधान यही है कि किसान उन फसलों की तरफ जाएं, जिनकी बाजार में असली मांग है और जिनसे प्रीमियम कीमत मिल सकती है. उन्होंने कहा कि भारत में तेजी से ऐसा उपभोक्ता वर्ग तैयार हो रहा है, जिसकी क्रय क्षमता अधिक है और जो गुणवत्तापूर्ण, विविधतापूर्ण और वैल्यू एडेड कृषि उत्पादों पर खर्च करने को तैयार है.
अगर किसान उनकी मांग के अनुरूप फसलें अपनाते हैं और पूरी वैल्यू चेन तैयार की जाए तो किसानों की आमदनी कई गुना बढ़ सकती है. यही मॉडल अब वैश्विक कृषि योजना का आधार बन चुका है, जिसमें बीज से लेकर बाजार तक की पूरी प्रक्रिया को एकसाथ जोड़ा जाता है.
डॉ. चंद ने यह भी जोर दिया कि आत्मनिर्भर भारत तभी बनेगा जब किसान केंद्र में रहेंगे, नीतियां उन तक सीधे प्रभाव डालेंगी और कृषि में नवाचार, तकनीक और निवेश को बढ़ावा मिलेगा. चंद ने दलील दी कि सरकारी समर्थन महत्त्वपूर्ण है, लेकिन असली आत्मनिर्भरता तभी संभव है, जब खेती के फैसले किसान बाजार और अवसरों को देखकर खुद लें.
कार्यक्रम में KRIBHCO के उपाध्यक्ष और ICA एशिया-पैसिफिक के अध्यक्ष डॉ. चंद्रपाल सिंह ने भी कृषि क्षेत्र में सहकारिताओं की भूमिका को निर्णायक बताया. उन्होंने कहा कि PACS जैसी प्राथमिक समितियां अब किसानों को किफायती बीज, उर्वरक और लोन ही नहीं देतीं, बल्कि उनकी उपज की खरीद में भी मजबूत भूमिका निभा रही हैं.
IFFCO, KRIBHCO और NAFED जैसी सहकारी संस्थाएं आज इतनी सक्षम हैं कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को चुनौती दे सकती हैं. सिंह ने सुझाव दिया कि सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए भी सहकारिताएं सबसे प्रभावी चैनल बन सकती हैं.