
यूरोपीय संघ (EU) ने भारत समेत एशियाई देशों से होने वाले चावल आयात पर बड़ा नियंत्रण लगाने की दिशा में ठोस कदम बढ़ा दिए हैं. इस फैसले का सीधा असर आने वाले समय में भारत के बासमती और नॉन-बासमती चावल निर्यात पर पड़ सकता है. EU यह कदम अपने किसानों और राइस मिलर्स के हितों की सुरक्षा के नाम पर उठा रहा है. हैरानी की बात यह है कि इसी दौरान भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौते की बातचीत भी जारी है.
बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, यूरोपीय परिषद और संसद ने चावल आयात के लिए एक विशेष स्वचालित सेफगार्ड मैकेनिज्म लाने पर सहमति बना ली है. यह व्यवस्था बासमती और नॉन-बासमती दोनों किस्मों पर लागू होगी. इस नए सिस्टम के तहत टैरिफ रेट कोटा लागू किया जाएगा. अगर तय औसत से अधिक मात्रा में चावल का आयात होता है तो स्वतः अतिरिक्त शुल्क वसूला जाएगा.
इस प्रस्ताव को अंतिम मंजूरी मिलने के बाद इसे कानून का दर्जा दिया जाएगा. नया कानून 1 जनवरी 2027 से प्रभावी किया जाएगा. यानी भारतीय निर्यातकों के पास अब रणनीति बदलने के लिए सीमित समय रह गया है. उद्योग जगत इस फैसले को यूरोप की संरक्षणवादी नीति की ओर एक बड़ा कदम मान रहा है.
भारत और EU के बीच चल रही FTA वार्ता में अब तक 23 में से 11 अध्यायों पर सहमति बन चुकी है. इसके बावजूद चावल जैसे अहम कृषि उत्पाद पर कड़ा रुख अपनाया जाना विरोधाभासी माना जा रहा है. उद्योग से जुड़े जानकारों का कहना है कि यह एक तरह से एक हाथ से व्यापार खोलना और दूसरे हाथ से बंद करना जैसा है.
EU की एक आंतरिक रिपोर्ट के अनुसार, थर्ड वर्ल्ड देशों से चावल का आयात 15 लाख टन तक पहुंच सकता है. इस आयात का बड़ा हिस्सा भारत, पाकिस्तान, म्यांमार और कंबोडिया से आता है. EU को आशंका है कि सस्ते आयात से उसके स्थानीय मिलर्स और किसानों पर दबाव बढ़ रहा है. हालांकि, आंकड़े इस दावे पर कुछ अलग ही कहानी बयान करते हैं.
नई दिल्ली के कृषि विश्लेषक एस चंद्रशेखरन के अनुसार, यह फैसला यूरोपीय चावल बाजार को सीमित खिलाड़ियों के नियंत्रण में ले जा सकता है. उन्होंने कहा कि आने वाले समय में यूरोप का राइस मार्केट पूरी तरह मुक्त न रहकर कुछ बड़ी कंपनियों के इर्द-गिर्द सिमट सकता है. इसका सबसे बड़ा नुकसान भारत से पैक्ड और प्रोसेस्ड चावल का निर्यात करने वाली कंपनियों को हो सकता है. भारत से हर साल करीब 1.42 लाख टन चावल पैकेज्ड फॉर्म में यूरोपीय बाजार में पहुंचता है.
नई नीति से यूरोपीय मिलर्स को अपने ब्रांड्स को बढ़ावा देने का अतिरिक्त मौका मिलेगा. यह कदम केवल आयात नियंत्रण नहीं बल्कि ब्रांड वर्चस्व की रणनीति भी माना जा रहा है. यह पहली बार नहीं है जब EU ने चावल पर सेफगार्ड लागू किया हो. इससे पहले 2019 में म्यांमार और कंबोडिया से आने वाले चावल पर अतिरिक्त शुल्क लगाया गया था. वह व्यवस्था 2022 में समाप्त हो गई थी. वर्तमान प्रस्तावों पर विचार उसी के बाद शुरू हुआ था.
अगर पीछे जाएं तो 2004-05 में GATT के तहत हुए समझौते के समय EU का चावल आयात करीब 6 लाख टन था. अब यह बढ़कर लगभग 23 लाख टन तक पहुंच चुका है. उस समय कंबोडिया और म्यांमार वैश्विक बाजार में बड़े खिलाड़ी नहीं थे.
अब दोनों देश मिलकर सालाना करीब 10 लाख टन चावल निर्यात कर रहे हैं.
EU के दस्तावेजों में कुछ निर्यातक देशों पर मानवाधिकार उल्लंघन और प्रतिबंधित रसायनों के उपयोग के आरोप भी लगाए गए हैं. रिपोर्ट में बाल श्रम और खतरनाक कीटनाशकों के अधिक अवशेष की बात की गई है. ट्राइसाइक्लाजोल जैसे रसायन को लेकर विशेष चिंता जताई गई है. हालांकि, भारतीय निर्यातक इन आरोपों को तकनीकी और सामान्यीकरण वाला बताते हैं.
भारत और पाकिस्तान के सामने एक और बड़ी चुनौती निर्यात संरचना में आए बदलाव को लेकर है. 2004-05 में कुल निर्यात का 80 से 90 प्रतिशत हिस्सा ब्राउन या हस्क्ड राइस का होता था. अब यह घटकर करीब 50 प्रतिशत रह गया है. बाकी हिस्से में पूरी तरह मिल्ड चावल का दबदबा बढ़ गया है.
इसी दौरान भारत और पाकिस्तान के चावल निर्यात में पिछले दो दशकों में करीब पांच गुना बढ़ोतरी हो चुकी है. यही तेज बढ़ोतरी अब यूरोपीय नीति निर्माताओं को असहज कर रही है. जुलाई में हुई EU की सिविल डायलॉग ग्रुप बैठक में यह स्पष्ट संकेत दिया गया कि चावल एक अत्यंत संवेदनशील उत्पाद है. बैठक में भारत को साफ तौर पर बता दिया गया कि EU इस सेक्टर में कोई रियायत देने के पक्ष में नहीं है.
यूरोपीय परिषद ने कहा कि ऐसा कोई समझौता नहीं किया जाएगा जिससे स्थानीय चावल उद्योग कमजोर पड़े. दिलचस्प तथ्य यह है कि यूरोप में चावल की खेती मुख्य रूप से केवल इटली और स्पेन में ही सीमित है. कुल खेती का रकबा करीब 4 लाख हेक्टेयर पर वर्षों से स्थिर बना हुआ है. इसका मतलब यह हुआ कि आयात कई गुना बढ़ने के बावजूद किसानों के क्षेत्रफल पर कोई सीधा असर नहीं पड़ा है.
इसी बीच, EU ने EBA देशों यानी Everything But Arms श्रेणी के तहत आने वाले देशों पर भी नजर सख्त कर दी है. यूरोपीय राइस मिलर्स संगठन FERM ने सेमी मिल्ड और पूरी तरह मिल्ड चावल पर 416 यूरो प्रति टन शुल्क लगाने की सिफारिश की है. अगर यह प्रस्ताव लागू हुआ तो भारत, पाकिस्तान, म्यांमार और कंबोडिया को बड़ा झटका लगेगा.