
भारतीय इलायची सेक्टर के लिए साल 2025 एक तरह से रिकवरी का साल बनकर उभरा है. पिछले कुछ सालों की अनिश्चितता और मौसम की मार के बाद इस मसाले ने फिर से रफ्तार पकड़ी है. उत्पादन, कीमत और निर्यात तीनों मोर्चों पर हालात किसानों के पक्ष में जाते दिखे हैं. यही वजह है कि इसे इलायची उद्योग की मजबूत वापसी के तौर पर देखा जा रहा है. उद्योग से जुड़े जानकारों के मुताबिक इस साल इलायची की कीमतों में असामान्य मजबूती देखी गई. पूरे सीजन में भाव औसतन 2,400 रुपये प्रति किलो से ऊपर बने रहे.
कई उत्पादक क्षेत्रों में किसानों को प्रति एकड़ 300 रुपये प्रति किलो से ज्यादा का रिटर्न मिलने लगा है, जो आने वाले महीनों में 400 से 500 रुपये तक पहुंच सकता है. यह स्थिति लंबे समय बाद बनी है जब इलायची उत्पादकों को लागत के मुकाबले संतोषजनक मुनाफा मिला है.
इस सुधार के पीछे सबसे बड़ी वजह मौसम को माना जा रहा है. मार्च 2025 से लगातार और संतुलित बारिश ने इलायची बागानों को बड़ा सहारा दिया. पौधों पर न तो सूखे का दबाव पड़ा और न ही अत्यधिक नमी से नुकसान हुआ. इसका सीधा असर फसल की गुणवत्ता और स्थिर पैदावार पर दिखा.
केसीपीएमसी लिमिटेड से जुड़े पी. सी. पुनूज ने ‘बिजनेसलाइन’ से बातचीत में कहा कि इस साल उत्पादन भले ही बहुत ज्यादा न बढ़ा हो, लेकिन इसकी निरंतरता के कारण बाजार स्थिर रहा. एक और अहम फैक्टर यह रहा कि 2023-24 में कमजोर उत्पादन के कारण बाजार में कोई पुराना स्टॉक मौजूद नहीं था.
न किसानों के पास और न ही बड़े उपभोक्ता केंद्रों में इलायची का भंडार बचा था. इससे सप्लाई चेन पूरी तरह साफ रही और नई फसल आते ही उसकी मांग बनी रही. इसी कारण बिक्री में रुकावट नहीं आई और कीमतें दबाव में नहीं रहीं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत को फायदा मिला.
भारतीय इलायची के बड़े प्रतिस्पर्धी ग्वाटेमाला में पिछले दो सीजन में फसल को भारी नुकसान हुआ है. इसका असर वैश्विक बाजार पर पड़ा और भारतीय इलायची की मांग बढ़ी. निर्यातकों को नए ऑर्डर मिले और भारत की हिस्सेदारी मजबूत हुई. हालांकि, ऊंचे दामों के बावजूद मजदूरों की कमी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, जिससे तुड़ाई और प्रोसेसिंग प्रभावित हो रही है.
आगे की तस्वीर पर नजर डालें तो 2026 को लेकर उम्मीद और सतर्कता दोनों है. दक्षिण-पश्चिम और पूर्वोत्तर मॉनसून के सामान्य रहने की संभावना जताई जा रही है, जिससे उत्पादन को सहारा मिल सकता है. बेहतर कीमतों के चलते किसान अपने बागानों की देखभाल पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं, जिससे उत्पादन आधार मजबूत हो रहा है.
इडुक्की के किसान एस. बी. प्रभाकर के मुताबिक, 2025 ने पिछले साल के अल नीनो से मिले झटके की भरपाई की है. मौसम के सामान्य होने और मार्च 2026 तक अच्छी प्री-मॉनसून बारिश की उम्मीद से किसानों का भरोसा लौट रहा है.
हालांकि, कीमतों को लेकर पूरी तस्वीर ग्वाटेमाला के उत्पादन पर निर्भर करेगी. वहां अगले सीजन उत्पादन 20,000 टन तक पहुंच सकता है, जबकि भारत में 30,000 से 35,000 टन की उम्मीद है. अगर दोनों देशों में फसल अच्छी रहती है तो कीमतें कुछ नरम होकर 1,800 रुपये से 2,000 रुपये प्रति किलो तक आ सकती हैं.
वैश्विक मांग फिलहाल मजबूत बनी हुई है. मध्य पूर्व और यूरोप में भारतीय इलायची की खपत बढ़ रही है. खासकर खाद्य और स्वास्थ्य उत्पादों में यह मजबूती देखने को मिल रही है. इसके अलावा अमेरिका द्वारा अतिरिक्त शुल्क हटाए जाने से भारतीय निर्यात को नई गति मिलने की उम्मीद है.