बाढ़ से बर्बादी पर मुआवजा ₹20,000, पराली जलाई तो क‍िसान पर जुर्माना लगेगा ₹30,000...रेड एंट्री का दंड अलग

बाढ़ से बर्बादी पर मुआवजा ₹20,000, पराली जलाई तो क‍िसान पर जुर्माना लगेगा ₹30,000...रेड एंट्री का दंड अलग

एक तरफ सरकार ने पंजाब में बाढ़ से हुई फसल नुकसान पर किसानों को 20 हजार रुपये प्रति एकड़ का मुआवजा देने का ऐलान किया है, तो वहीं दूसरी तरफ खेतों में पराली जलाने पर 30 हजार रुपये प्रति एकड़ का जुर्माना लगा रही है. किसानों का कहना है कि यह सीधा अन्याय है और सरकार किसानों के साथ दोहरी मार कर रही है.

stubble burning stubble burning
स्वयं प्रकाश निरंजन
  • Noida,
  • Sep 25, 2025,
  • Updated Sep 25, 2025, 9:45 AM IST

पंजाब में पिछले 8 दिनों में पराली जलाने की 39 घटनाएं हुईं और इसके ल‍िए आरोपी किसानों के खिलाफ 14 एफआईआर दर्ज की गईं हैं. अक्टूबर और नवंबर में धान की कटाई के बाद दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए अक्सर पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने को जिम्मेदार ठहराया जाता है. मगर किसानों के लिए सरकार की नीतियां विरोधाभास से भरी नजर आती हैं. क्योंकि एक तरफ सरकार ने पंजाब में बाढ़ से हुई फसल नुकसान पर किसानों को 20 हजार रुपये प्रति एकड़ का मुआवजा देने का ऐलान किया है, तो वहीं दूसरी तरफ खेतों में पराली जलाने पर उससे 30 हजार रुपये तक का जुर्माना वसूला जाएगा. किसानों का कहना है कि यह सीधा अन्याय है और सरकार किसानों के साथ दोहरी मार कर रही है.

पराली जलाने पर पिछले साल यानी 2024 से पहले तक जुर्माने की राशि अध‍िकतम 15 हजार रुपये ही हुआ करती थी. मगर 2024 के गजट के अनुसार, पराली पर जुर्माने की राशि सीधे दोगुनी कर दी गई है. इस गजट के मुताबिक, 2 एकड़ तक के क्षेत्र में पराली जलाने पर 5,000 रुपये, 5 एकड़ तक के लिए 10,000 रुपये और 5 से अधिक एकड़ में पराली जलाने के लिए 30,000 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा. इतना ही नहीं पराली जलाने वाले किसान पर एफआईआर दर्ज करके कानूनी कार्रवाई की जाएगी और सरकार के किसान डेटाबेस में रेड एंट्री भी की जाएगी.

जबकि आकंड़े इस बात की गवाही देते हैं कि पराली जलाने की घटनाएं साल दर साल लगातार कम होती जा रही हैं फिर भी सरकार किसानों के साथ इतनी सख्ती से पेश आ रही है. पंजाब में 2024 में पराली जलाने की 10,909 घटनाएं हुईं, जबकि 2023 में यह संख्या 36,663 थी, यानी ऐसी घटनाओं में 70 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई. इसी तरह, पंजाब में 2022 में 49,922, 2021 में 71,304, 2020 में 76,590, 2019 में 55,210 और 2018 में 50,590 घटनाएं दर्ज की गईं. 

अपना लिखित वादा तक भूली सरकार

अगर वक्त और याददाश्त में पीछे जाएंगे तो याद आता है कि 9 दिसंबर 2021 को सरकार ने किसानों को एक पत्र लिखकर किसानों से कुछ वादे किए थे. ये पत्र तब तत्कालीन कृषि सचिव संजय अग्रवाल ने लिखा था. इस पत्र के 5वें प्वाइंट पर पराली के मुद्दे पर एक वादा किया गया था, जिसमें लिखा है कि भारत सरकार ने जो कानून पारित किया है उसकी धारा 14 एवं 15 में क्रिमिलन लाइबिलिटी से किसान को मुक्ति दी है. जबक‍ि हकीकत यह है क‍ि इस साल भी पराली जालने वाले क‍िसानों पर एफआईआर दर्ज करने में सरकार पल भर नहीं हिचकी. 

हाल ही में आए पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) के आंकड़ों के अनुसार, पंजाब में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 223 के तहत खेतों में लगी आग के खिलाफ अमृतसर में मिलाकर 14 एफआईआर दर्ज की गई हैं, जो एक लोक सेवक द्वारा विधिवत रूप से घोषित आदेश की अवज्ञा से संबंधित है. पीपीसीबी के अनुसार, फसल अवशेषों को आग लगाने वाले किसानों पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति के रूप में 1.25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है, जिसमें से 50,000 रुपये वसूल किए जा चुके हैं. राज्य प्राधिकारियों ने दोषी किसानों के भूमि अभिलेखों में 15 रेड एंट्री भी की हैं, जिसके बाद ये किसान ना तो अपनी जमीन पर लोन ले सकेंगे और ना ही उसे बेच सकते हैं. 

मीलॉर्ड भी मांगे किसानों की गिरफ्तारी

सुप्रीम कोर्ट ने 17 सितंबर को पंजाब सरकार से पूछा था कि वायु प्रदूषण में प्रमुख योगदान देने वाले पराली जलाने में संलिप्त कुछ किसानों को क्यों न गिरफ्तार किया जाए, ताकि एक कड़ा संदेश दिया जा सके. बता दें कि बेंच उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों में रिक्त पदों को भरने से संबंधित एक स्वतः संज्ञान याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इसी दौरान मीलॉर्ड को 'मिसाल पेश' करने के लिए किसानों की गिरफ्तारी सबसे आसान समाधान लगी.

आग का दरिया है और फूंक के जाना है...

पराली जलाना किसानों के लिए कोई विकल्प नहीं है, बल्कि खराब मजबूरी है, जिसका हल गिरफ्तारी नहीं बल्कि सरकारी मदद से ही आएगा. चूंकि खरीफ सीजन में धान की कटाई के बाद रबी की फसल - गेहूं - की बुवाई का समय बहुत कम होता है, इसलिए किसान अगली फसल की बुवाई के लिए पराली को जल्द से जल्द साफ करने के लिए अपने खेतों में आग लगा देते हैं. 

समझने वाली बात ये है कि पंजाब और हरियाणा में धान की कटाई और गेहूं की बुआई के बीच मुश्किल से 20–25 दिन का ही वक्त बचता है. अब इतने कम समय में पराली का प्रबंधन करते हुए खेत को अगली बुवाई के लिए तैयार करना नामुमकिन है. इसलिए किसान ये जानते हुए भी कि आग लगने से खेत की उर्वरा शक्ति खत्म हो जाती है, पराली जलाकर खेत तुरंत खाली कर देते हैं. धान की एक एकड़ फसल से करीब 25 से 30 क्विंटल पराली निकलती है. छोटे किसानों के पास इसे इकट्ठा करने, ले जाने और इसका आधुनिक तरीके से प्रबंधन करना लगभग असंभव है. हार कर किसानों को अपने खेत फूंकने पड़ते हैं.

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