
भारत में चना रबी मौसम की एक प्रमुख दलहनी फसल है. कम लागत और अच्छी बाजार मांग के कारण देश के लगभग सभी राज्यों में इसकी खेती की जाती है. हालांकि, चने की फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाली बीमारियों में चना विल्ट शामिल है. यह बीमारी अगर समय रहते नियंत्रित न की जाए तो कुछ ही दिनों में पूरी फसल को बर्बाद कर सकती है, जिससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. चना विल्ट एक फफूंद जनित रोग है, जिसे वैज्ञानिक रूप से Fusarium oxysporum कहा जाता है. यह रोग मिट्टी में लंबे समय तक जीवित रहता है और पौधों की जड़ों के माध्यम से फसल को संक्रमित करता है.
संक्रमण होने पर पौधे की पानी और पोषक तत्व लेने की क्षमता प्रभावित हो जाती है, जिससे पौधा धीरे-धीरे सूखने लगता है. इस बीमारी के लक्षण फसल की शुरुआती या मध्य अवस्था में दिखाई देने लगते हैं. संक्रमित पौधों की पत्तियां पहले पीली पड़ती हैं और दिन के समय पौधा मुरझाया हुआ नजर आता है. धीरे-धीरे तना नीचे से सूखने लगता है और जड़ें सड़ जाती हैं. कई बार पौधा हरा दिखाई देता है, लेकिन अचानक पूरी तरह सूख जाता है. जब ऐसे पौधे के तने को काटकर देखा जाता है तो अंदर की नसें भूरे या काले रंग की नजर आती हैं, जो विल्ट रोग की स्पष्ट पहचान है.
चना विल्ट फैलने के पीछे कई कारण होते हैं. संक्रमित बीजों का इस्तेमाल, एक ही खेत में बार-बार चने की खेती करना, खेत में जल निकासी की खराब व्यवस्था और भारी या अधिक नमी वाली मिट्टी इस बीमारी को बढ़ावा देती है. इसके अलावा अधिक तापमान और मौसम में अचानक बदलाव भी इस रोग के फैलाव में अहम भूमिका निभाते हैं. अगर चना विल्ट पर समय रहते नियंत्रण न किया जाए तो यह बीमारी 30 से 60 प्रतिशत तक उपज को नुकसान पहुंचा सकती है. गंभीर स्थिति में पूरा खेत प्रभावित हो जाता है, जिससे किसानों को लागत निकालना भी मुश्किल हो जाता है. इसलिए इस बीमारी से बचाव बेहद जरूरी है.
चना विल्ट से बचाव के लिए सबसे पहले रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए. बुवाई से पहले बीजों का उपचार करना भी बहुत जरूरी होता है. इसके लिए रासायनिक फफूंदनाशकों या जैविक विकल्पों का इस्तेमाल किया जा सकता है. साथ ही, एक ही खेत में लगातार चना बोने से बचें और फसल चक्र अपनाएं, जिससे मिट्टी में रोग का दबाव कम होता है. खेत में पानी जमा न होने दें, क्योंकि अधिक नमी विल्ट रोग को तेजी से फैलाती है. यदि खेत में संक्रमित पौधे दिखाई दें तो उन्हें जड़ सहित उखाड़कर खेत से बाहर नष्ट कर देना चाहिए, ताकि बीमारी दूसरे पौधों तक न पहुंचे. इसके अलावा खेत में नीम खली और सड़ी हुई गोबर की खाद डालने से मिट्टी में मौजूद रोगजनक फफूंद की संख्या कम की जा सकती है.
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