भारत में प्रमुखता से तिलहन फसलों की खेती की जाती है. ऐसे में किसानों को आस रहती है कि उन्हें फसल का वाजिब दाम मिले, लेकिन कई बार बाहर से आयात होने वाले सस्ते तेल के चक्कर में किसानों को सही दाम नहीं मिला पाता. ऐसे में सरकार ने किसानों को इस संकट से बचाने के लिए खाद्य तेलों (कच्चे और रिफाइन्ड) दोनों पर पिछले महीने आयात शुल्क बढ़ाया था. केंद्र सरकार ने कच्चे खाद्य तेल पर आयात शुल्क 5.5% से बढ़ाकर 27.5% कर दिया है और परिष्कृत तेल (रिफाइन्ड ऑयल) पर आयात शुल्क 12.5% से बढ़ाकर 32.5% कर दिया है. इसके बावजूद भी इस महीने भी खाद्य तेल आयात बढ़ने का अनुमान है.
त्याेहार के समय सरकार की ओर से आयात शुल्क बढ़ाए जाने से आम जनता को खाद्य तेल (सोयाबीन, सरसों, सूरजमुखी) महंगे दाम पर मिल रहे हैं. हालांकि, सरकार उद्योगों पर जोर दे रही है कि पहले से स्टॉक में रखे हुए तेल को महंगे दाम पर न बेचा जाए. पिछले कुछ महीनों से लगातार वैश्विक बाजार में तेल महंगा होता जा रहा है. खाद्य तेलों (Edible Oil) के आयात शुल्क बढ़ाने के पीछे सरकार का इरादा है कि इससे आयात घटेगा और इस पर निर्भरता घटेगी, जबकि घरेलू उद्योग और किसानों को इससे फायदा पहुंचेगा, लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है.
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'बिज़नेस स्टैंडर्ड' की रिपोर्ट के मुताबिक, आयात शुल्क बढ़ने के बाद भी चालू महीने में खाद्य तेल का आयात ज्यादा ही रहने वाला है. खाद्य तेल कारोबारियों की मानें तो अक्टूबर महीने में वनस्पति तेल का आयात 13.50 लाख टन तक पहुंचेगा, जो अक्टूबर माह में वनस्पति तेल के आयात के करीब 9 साल के उच्चतम स्तर को छू सकता है.
अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर के मुताबिक, रिफाइंड तेल का आयात पिछले साल के 2.88 लाख टन के मुकाबले डबल हो सकता है. वहीं, पाम ऑयल का आयात 7.50 लाख टन पहुंच सकता है. इसी महीने यानी अक्टूबर का पिछले साल (2023) का आंकड़ा देखें तो 6.95 लाख लीटर पाम ऑयल इंपोर्ट किया गया था. उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, पूरे भारत में एक महीने में सोयाबनी, सूरजमुखी, पाम ऑयल के औसत खुदरा मूल्य में प्रति लीटर 10 से 13 रुपये की बढ़ोतरी हुई है.
बता दें कि भारत में खाद्य तेल आपूर्ति का एक बड़ा हिस्सा विदेशों से आयात किया जाता है. ऐसे में आयात शुल्क बढ़ाने से किसानों को फसल के सही दाम मिलने से थोड़ी राहत रहेगी, लेकिन आम जनता की जेब पर इसका असर पहले जैसा रहने की संभावना है या यह और ज्यादा बढ़ भी सकता है.