हरियाणा के चावल मिल मालिकों के लिए राहत भरी खबर है. दरअसल, मिल मालिकों को राहत देते हुए भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने कस्टम-मिल्ड चावल (CMR) की डिलीवरी की अनुमति दे दी है, लेकिन डिलीवरी के लिए गोदामों के आवंटन और फोर्टिफाइड चावल कर्नेल (FRK) पर माल और सेवा कर (GST) से संबंधित अनसुलझे मुद्दों पर अभी भी बड़ी असमंजस बनी हुई है, जिससे मिल मालिक हिचकिचा रहे हैं.
करनाल के डीएफएससी अनिल कुमार ने कहा, "FCI ने मिल मालिकों को सीएमआर की डिलीवरी की अनुमति दे दी है. सभी खरीद एजेंसियों ने भौतिक सत्यापन लगभग पूरा कर लिया है और टीम के सदस्य डिलीवरी शुरू करने के लिए डीसी को सोमवार तक रिपोर्ट सौंप देंगे.
चावल मिलर्स ने एफसीआई द्वारा दी गई अनुमति का स्वागत किया, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि जब तक दो प्रमुख मुद्दों का समाधान नहीं हो जाता, तब तक डिलीवरी शुरू नहीं हो सकती. एफआरके पर जीएसटी शुल्क में असमानता और चावल की डिलीवरी के लिए गोदामों का आवंटन न होना. उन्होंने आरोप लगाया कि निर्माता एफआरके पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगाते हैं, जबकि सरकार मिलर्स को केवल 5 प्रतिशत ही देती है, जिससे वित्तीय बोझ बढ़ता है.
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करनाल राइस मिलर्स एंड डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सौरभ गुप्ता ने कहा, "हमें चावल की डिलीवरी की अनुमति दी गई है, लेकिन फिर भी हम दो बड़ी समस्याओं का सामना कर रहे हैं. हम 5,000 रुपये प्रति क्विंटल और 18 प्रतिशत जीएसटी के हिसाब से एफआरके खरीदते हैं, लेकिन केवल 5 प्रतिशत जीएसटी की प्रतिपूर्ति की जाती है. सरकार को पिछले साल की तरह 5 प्रतिशत जीएसटी वसूलना चाहिए."
उन्होंने कहा कि एक और मुद्दा डिलीवरी के लिए गोदामों का आवंटन न होना है. गुप्ता ने कहा, "हम मांग करते हैं कि एफसीआई को समय पर डिलीवरी की सुविधा और परिवहन लागत को कम करने के लिए आस-पास के इलाकों में गोदामों को मिलों से जोड़ना चाहिए. हालांकि, डीएफएससी अनिल कुमार ने कहा कि दोनों मुद्दों पर चर्चा की जा रही है और जल्द ही इनका समाधान हो जाएगा.
सीएमआर नीति के अनुसार, मिल मालिकों को दिसंबर के अंत तक कुल चावल का 25 प्रतिशत, जनवरी के अंत तक 20 प्रतिशत, फरवरी में 15 प्रतिशत, मार्च में 25 प्रतिशत और अप्रैल के अंत तक शेष चावल एफसीआई को देना होता है. गुप्ता ने कहा कि धान की खरीद 15 नवंबर तक पूरी हो गई थी, लेकिन एक महीने बाद भी मिल मालिक चावल नहीं दे पा रहे हैं.