सेहत को अच्छा रखने के लिए सब्जियों को काफी फायदेमंद माना जाता है. इसलिए लोग अलग-अलग प्रकार की सब्जी खाना पसंद करते हैं. ऐसे में कई सब्जियों की ऐसी किस्में हैं जो उनकी खासियत को बढ़ा देते हैं. ऐसी ही एक सब्जी की किस्म है ‘पर्पल टॉप वाईट ग्लोब’. ये बाजार में लगभग सालों भर मिलने वाली सब्जी शलजम की एक खास किस्म है. शलजम की इस किस्म की किसानों में खूब डिमांड रहती है. किसान इसकी खेती कर बेहतर उपज और कमाई करते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं पर्पल टॉप वाईट ग्लोब वैरायटी की क्या खासियत है. साथ ही इसके उन्नत किस्मों के बारे में भी जान लेते हैं.
पर्पल टॉप वाईट ग्लोब: ये शलजम की एक खास वैरायटी है. पर्पल टॉप वाईट ग्लोब किस्म आकार में सामान्य से बड़ी होती है, जिसका ऊपरी भाग बैंगनी और गूदा सफेद होता है. इसे तैयार होने में 60 से 65 दिन का समय लगता है. वहीं, इसका उत्पादन 150 से 180 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है.
सफेद-4 किस्म: सफेद-4 किस्म की खेती किसान बड़े पैमाने पर करते हैं. इस किस्म की खेती दिसंबर के अंत में करते हैं. इसे तैयार होने में 50 से 55 दिन का समय लगता है. इसकी उपज 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. वहीं, ये शलजम सफेद रंग की होती है.
स्नोवाला किस्म: ये शलजम की एक हाइब्रिड किस्म है. स्नोवाला किस्म सफेद रंग की होती है. इसका आकार गोल होता है. गूदा नरम और मीठा होने के कारण इसे सलाद में खूब उपयोग किया जाता है. इसे तैयार होने में 55 से 60 दिन का समय लगता है.
लाल-4 किस्म: शलजम की यह किस्म सर्दी के दिनों में उगाई जाने वाली किस्म है. इसे तैयार होने में 60 से 70 दिन का समय लगता है. इसकी खासियत यह है कि इसमें निकलने वाली जड़ों का आकार सामान्य और गोल होता है. वहीं, यह अधिक पैदावार देने वाली किस्म है.
पूसा स्वेती किस्म: ये शलजम की एक अगेती किस्म है. इस किस्म की खासियत ये है कि इसकी जड़ें सबसे कम टाइम में पकती हैं. इनके तैयार होने में महज 45 दिन का समय लगता है. ये किस्म भी पैदावार के लिए बेहतर है.
शलजम की खेती के लिए बलुई, दोमट या रेतीली मिट्टी बेस्ट होती है. शलजम की जड़ें भूमि के अंदर होती हैं, इसलिए इसे नर्म जमीन की जरूरत होती है. यह ठंडी जलवायु वाली फसल है. इसके लिए 20 से 25 सेंटीग्रेड तापमान चाहिए. वहीं इसकी खेती करने से पहले खेत की जुताई करें. फिर उसमें गाय का सड़ा हुआ गोबर 60-80 क्विंटल प्रति एकड़ डालें और खेत की तैयारी के समय मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएं. इसके बाद शलजम की बुवाई पंक्तिबद्ध तरीके से करें. पौधे से पौधे की दूरी 8 से 10 सेमी की होनी चाहिए.