दूध हो या चिकन-अंडा, या फिर बात हो मछली की, तीनों को ही बाजार में सही दाम नहीं मिल पाता है. ये शिकायत है डेयरी-पोल्ट्री फार्मर और मछली पालक की. सरकार का भी मानना है कि ये तीनों ही सेक्टर संगठित ना होने के चलते पशुपालकों को कहीं ना कहीं परेशानी का सामना करना पड़ता है. यही वजह है कि सरकार डेयरी-पोल्ट्री और मछली पालन में किसान उत्पादक संगठन (FPO) बनाने को बढ़ावा दे रही है. पशुपालक और किसान ही नहीं, बहुत सारे युवा भी इसमे अपनी किस्मत आजमा सकते हैं. खास बात ये है कि तीनों ही सेक्टर के प्रोडक्ट की घरेलू बाजार से लेकर एक्सपोर्ट मार्केट तक में खूब डिमांड है.
लेकिन यहां ये भी जरूरी है कि एफपीओ का गठन इस तरह से किया जाए कि उसे सरकार भी मदद करे और वो मुनाफा कमाने वाला हो. इसी को ध्यान में रखते हुए गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनीमल साइंस यूनिवर्सिटी (गडवासु), लुधियाना एफपीओ को तकनीकी मदद दे रही है. एफपीओ संचालित करने के लिए 10 पाइंट पर आधारित टिप्से जारी किए गए हैं.
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गडवासु के वाइस चांसलर डॉ. इन्द्र्जीत कुमार सिंह का कहना है कि मुश्काबाद एफएएम डेयरी प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड के नाम से डेयरी का एफपीओ अच्छा काम कर रहा है. हमारी यूनिवर्सिटी इस एफपीओ को तकनीकी मदद देती है. ये एफपीओ ब्लॉक समराला में चालू है और भारतीय कंपनी अधिनियम के तहत रजिस्टर्ड है. इस एफपीओ में 100 से ज्यादा सदस्य हैं. एफपीओ भारत सरकार की मुख्य परियोजनाओं में से एक है. एफपीओ किसानों को समूहों में संगठित होने में मदद करते हैं.
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अगर पशुपालक एफपीओ बनाते हैं तो वो इसके माध्यम से अच्छीं कमाई कर सकते हैं. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि एक एफपीओ शुरू करते वक्त कुछ खास बातों का ख्यासल रखा जाए. जैसे वैज्ञानिक तरीके से डेयरी फार्मिंग की जाए. नस्ल विशेषता पर जोर दें, पशु की पहचान, पशु का रिकॉर्ड रखना, चारा संरक्षण, संतुलित आहार, आवास प्रबंधन, टीकाकरण, बीमारियों की रोकथाम और नियंत्रण, प्रजनन मैनेजमेंट और डेयरी वेस्ट मैनेजमेंट पर खास ध्यान देना होगा. गौरतलब रहे हाल ही में यूनिवर्सिटी ने "एफपीओ-आधारित वैज्ञानिक डेयरी फार्मिंग" नाम से आयोजित एक कार्यक्रम में युवाओं को एफपीओ के बारे में जानकारी दी थी.