
अक्सर कहा जाता है कि खेती घाटे का सौदा है, लेकिन नालंदा जिले के सुजीत पटेल इस सोच को लगातार बदल रहे हैं. 9 से 5 बजे की नौकरी वाली जिंदगी छोड़कर उन्होंने खेती को न सिर्फ अपनाया, बल्कि आधुनिक तकनीक और सही फसल चयन के ज़रिये इसे एक सफल व्यवसाय में बदल दिया. बीते पाँच वर्षों से सुजीत खेती के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं. पारंपरिक फसलों से हटकर उन्होंने विदेशी फसल ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की, जो आज उनकी सफलता की सबसे बड़ी वजह बन चुकी है.
30 वर्षीय सुजीत पटेल ने बीसीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद बेंगलुरु की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी शुरू की थी. नौकरी के दौरान उन्होंने दक्षिण भारत के कई इलाकों में ड्रैगन फ्रूट की खेती देखी, जिससे उन्हें इस फसल के प्रति रुचि पैदा हुई. कोविड महामारी के बाद जब वह गांव लौटे, तो उन्होंने तय किया कि अब बाहर नौकरी करने के बजाय गांव में रहकर खेती के क्षेत्र में कुछ नया किया जाए.
सुजीत बताते हैं कि कोविड काल ने उन्हें यह सिखाया कि चाहे दुनिया की हर गतिविधि रुक जाए, लेकिन खाद्य व्यवसाय कभी बंद नहीं होता. इसी सोच के साथ उन्होंने अच्छी तनख्वाह और सुरक्षित नौकरी छोड़कर गांव में खेती शुरू करने का फैसला लिया.
सुजीत पटेल बताते हैं कि शुरुआत में उन्होंने एक एकड़ जमीन में ड्रैगन फ्रूट की खेती की. नौकरी छोड़कर खेती करने के उनके फैसले से शुरुआती दौर में उनके पिता भी नाराज थे. लेकिन जब खेत में फल आने लगे और आमदनी शुरू हुई, तो पिता भी उनके इस प्रयास में साथ जुड़ गए.
आज सुजीत ने अपनी खेती का विस्तार करते हुए दो एकड़ में ड्रैगन फ्रूट के साथ-साथ फिश फार्मिंग और पपीता की खेती भी शुरू कर दी है. इसके अलावा उन्होंने वेयरहाउस के लिए संबंधित विभाग में आवेदन भी किया है. पिछले दो वर्षों से ड्रैगन फ्रूट में फलन शुरू हो चुका है और इस साल पिछले वर्ष की तुलना में बेहतर उत्पादन हुआ है.
सुजीत पटेल बताते हैं कि जब उन्होंने बेंगलुरु की नौकरी छोड़ी थी, तब उनका सालाना पैकेज करीब 3 लाख 65 हजार रुपये था, जो महानगर के हिसाब से काफी कम था. आज वह ड्रैगन फ्रूट की खेती से इतनी कमाई महज 2 से 3 महीनों में कर लेते हैं. उनके अनुसार, इस साल उन्होंने लगभग 4 लाख रुपये के ड्रैगन फ्रूट की बिक्री की है. फिलहाल आधे एकड़ में ही ड्रैगन फ्रूट लगा है, जिससे करीब 4 लाख रुपये तक की आमदनी हो रही है. आने वाले समय में उत्पादन और आय दोनों बढ़ने की उम्मीद है.
नालंदा जिले के नगरनौसा प्रखंड के चौरासी गांव निवासी सुजीत पटेल का कहना है कि सरकार को विदेशी फलों की बिक्री के लिए ठोस बाजार व्यवस्था करनी चाहिए. पढ़े-लिखे युवा तो किसी तरह बाजार खोजकर फल बेच लेते हैं, लेकिन कम शिक्षित किसानों के लिए यह आसान नहीं है. बिहार में सबसे बड़ी समस्या फल मंडियों की कमी है.
जिला स्तर पर सब्जी मंडियों की तरह फल मंडियां नहीं होने के कारण किसानों को अपनी उपज बेचने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. यदि बेहतर बाजार व्यवस्था हो जाए, तो यहां के किसान देश के अन्य राज्यों में भी ड्रैगन फ्रूट की आपूर्ति कर सकते हैं. सुजीत बताते हैं कि उन्होंने सी वैरायटी का ड्रैगन फ्रूट लगाया है, जिसकी उपज और गुणवत्ता दोनों काफी अच्छी है.