
बिहार के नवादा जिले के छोटे से गांव 'अमावा' की रहने वाली डॉली कुमारी ने खेती की एक मिसाल पेश की है. उन्होंने पारंपरिक खेती के महंगे रसायनों को छोड़कर उन्होंने अपनी सूझबूझ से एक ऐसा इको-फ्रेंडली प्लांट ग्रोथ प्रमोटर तैयार किया है, जो मिट्टी की जान वापस लौटा रहा है. डॉली जी का यह नुस्खा पूरी तरह प्राकृतिक है और इसे किसान अपने घर पर ही बहुत कम खर्च में बना सकते हैं.
यह घोल जो न केवल पौधों को तेजी से बढ़ाता है, बल्कि उन्हें बीमारियों से भी बचाता है. जहां आज का किसान महंगे रसायनों और खाद के बोझ तले दबा जा रहा है, वहीं डॉली जी का यह घरेलू नुस्खा मिट्टी की सेहत सुधारने और खेती की लागत कम करने में मील का पत्थर साबित हो रहा है. उनकी यह पहल न केवल पर्यावरण को बचा रही है, बल्कि किसानों की आमदनी बढ़ाने का एक सशक्त जरिया भी बन गई है.
डॉली का यह जैविक घोल पूरी तरह प्राकृतिक है और इसे घर पर ही आसानी से बनाया जा सकता है. इसे बनाने के लिए उन्होंने 20 लीटर ताजा पानी, 100 ग्राम बेसन, 100 ग्राम गुड़, 1 लीटर गौमूत्र और 1 किलो गाय के गोबर का इस्तेमाल किया है. इन सब सामग्रियों को मिलाकर 48 से 72 घंटों तक किण्वन के लिए छोड़ दिया जाता है. यह जादुई मिश्रण जब तैयार होता है, तो इसमें मिट्टी के लिए जरूरी सूक्ष्म पोषक तत्व और मित्र बैक्टीरिया की भरमार होती है. इसकी लागत मात्र 11 से 15 रुपये प्रति लीटर आती है, जो बाजार में मिलने वाली महंगी दवाओं के मुकाबले नगण्य है.
इस घोल का इस्तेमाल मुख्य रूप से धान और सब्जियों की खेती में वरदान साबित हो रहा है. डॉली जी बताती हैं कि 100 मिलीलीटर घोल को 1 किलो बीज में मिलाकर उसे टाट के बोरों से ढक दिया जाता है, जिससे बीजों का अंकुरण बहुत शानदार होता है. इतना ही नहीं, जब इस घोल को 2 क्विंटल वर्मीकम्पोस्ट में मिलाकर खेत में छिड़का जाता है, तो यह मिट्टी को नई जान देता है. गोभी, टमाटर और बैंगन जैसी फसलों में लगने वाली जानलेवा बीमारी 'डैम्पिंग ऑफ यानी पौधों का गलना इससे लगभग खत्म हो जाती है, जिससे पौधों की मृत्यु दर बहुत कम हो गई है.
इस नवाचार का सबसे बड़ा फायदा किसानों की आर्थिक स्थिति पर पड़ा है. इस तकनीक को अपनाने से प्रति एकड़ खेती की लागत में लगभग 3000 रुपये की कमी आती है. वहीं दूसरी ओर, फसल की गुणवत्ता और पैदावार बढ़ने से किसानों की आय में हर सीजन 7 से 8 हजार रुपये का इजाफा होता है. यह घोल न केवल दालों जैसे मसूर और चना में लगने वाले उकठा रोग को रोकता है, बल्कि मिट्टी के प्राकृतिक स्वरूप को भी बहाल करता है. यह पूरी तरह से रासायन मुक्त है, जिससे फसल खाने वालों की सेहत पर भी बुरा असर नहीं पड़ता.
डॉली कुमारी की इस सफलता ने जैविक खेती की राह देख रहे छोटे किसानों को एक नई उम्मीद दी है. इस घोल को 10 से 12 दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है, जो इसे इस्तेमाल में बहुत आसान बनाता है. अब जरूरत है वैज्ञानिक प्रमाणीकरण की ताकी इस तकनीक को गांव-गांव तक पहुंचाया जा सके. इसे एक बेहतरीन 'रेडी-टू-यूज़' उत्पाद के रूप में बाजार में उतारा जा सकता है. किसान डॉली ने साबित कर दिया कि खेती में असली बदलाव लैब से नहीं, बल्कि खेत और घर के अनुभवों से आता है.