खरीफ फसलों का सीजन अब खत्म होने वाला है और रबी फसल का सीजन शुरू होने वाला है. इस सीजन में किसान धान की फसल काटने के बाद गेहूं की रोपाई शुरू कर देंगे. पिछले दो-तीन वर्षों से देखा जा रहा है कि गेंहू की खेती में किसानों को अच्छा मुनाफा हो रहा है. पर पिछले कुछ वर्षों के दौरान यह भी देखा जा रहा है कि खराब मौसम के कारण गेहूं की पैदावार पर असर हो रहा है. इससे किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ रहा है. किसानों की इस परेशानी को देखते हुए कृषि वैज्ञानिक ऐसे मौसम परिवर्तन के दौरान अच्छी पैदावार देने वाली उन्नत किस्मों को विकसित कर रहे हैं जो रोग प्रतिरोधी भी है.
इसी के तहत कृषि वैज्ञानिकों ने हाल में एक गेहूं की एक नई वेरायटी विकसित की है जिसका नाम एचडी 3385 रखा गया है. गेहूं की यह किस्म अधिक उपज देने वाली किस्म है. अगर समय पर इस गेहूं की बुवाई की जाती है तो गेहूं अनुकूल परिस्थितियों में प्रति हेक्टेयर 80-100 क्विंटल तक की पैदावार देती है. गेहूं की यह किस्म उत्तर पश्चिमी और उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्र के खेतों के लिए उपयुक्त मानी जाती है. गेहूं की इस बेहतरीन किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान करनाल के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है.
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इन नई किस्म का प्रसार देश के सभी गेहूं उत्पादक राज्यों में किया जाएगा. गेहूं की यह किस्म मौसम परिवर्तन रोधी होने के साथ-साथ रतुआ रोधी भी है. इसके अलावा अन्य रोगों के प्रति भी इसमें प्रतिरोधक क्षमता है. इस किस्म का औसत उत्पादन लगभग 60 क्विटल प्रति हेक्टेयर है. जबकि सामान्य परिस्थितियों में इसकी उपज क्षमता बढ़कर 73.3 क्विटंल प्रति हेक्टेयर तक होती है. इस किस्म की अधिकतम उपज क्षमता 80-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. हालांकि जब अलग-अलग स्थानों और जलवायु परिस्थितियों में इसका परीक्षण किया गया तब इसकी उपज क्षमता 75 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक रही.
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गेहूं की इस किस्म में करनाल बंट नामक रोग नहीं लगता है, साथ ही यह अधिक तापमान को भी बर्दाश्त कर सकता है. इसके पौधे की ऊंचाई 98 सेंटीमीटर तक होती है. गेहूं की नई किस्म एचडी 3385 में टिलरिंग की समस्या नहीं आती है. इसके साथ ही इसमें येलो, ब्राउन और ब्लैक रस्ट की समस्या नहीं आती है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आईएआरआई करनाल के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. शिवकुमार यादव ने बताया कि के इस किस्म की बुवाई पंजाब हरियाणा, हरियाणा, यूपी और दिल्ली एन. सी. आर. में किसान अकटूबर के अंत और नवंबर के पहले सप्ताह में इसकी बुवाई कर सकते हैं.