बीटी कपास (BT Cotton) एक प्रकार का संश्लेषित कपास है जो कि जीनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा प्राप्त किया जाता है. इसमें एक या अधिक जीनेटिक विशेषताएं होती हैं, जो कि कीटों और कीट-जन्य रोगों के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रदान करती हैं. इसके अलावा, बीटी कपास में विशेष जीनेटिक परिवर्तनों के कारण पेड़ों को पोषक तत्वों को अधिकतम मात्रा में अवशोषित करने की क्षमता भी होती है. यह उत्तम उत्पादन और कीटों के प्रति प्रतिरक्षा प्रदान करने की दृष्टि से कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने में मदद करता है. ऐसे में आइए जानते हैं बीटी कपास की खेती करने का सही समय और खादों की जरूरत के बारे में.
यदि सिंचाई की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध हो तो कपास की फसल मई महीने में ही लगाई जा सकती है. यदि सिंचाई की पर्याप्त उपलब्धता नहीं है, तो पर्याप्त मानसूनी वर्षा होते ही कपास की फसल लगाई जा सकती है. कपास की फसल अच्छी भूरी मिट्टी तैयार करके लगानी चाहिए. सामान्यतः उन्नत जातियों के 2.5 से 3.0 कि.ग्रा. बीज (डी-फिलामेंटेड) संकर और बीटी किस्मों के 1.0 कि.ग्रा. बीज (रेशे रहित) प्रति हेक्टेयर बुआई के लिए उपयुक्त होते हैं. उन्नत किस्मों में चैफुली 45-60*45-60 सेमी. संकर और बीटी किस्मों में पंक्ति से पंक्ति और पौधे से पौधे के बीच की दूरी 90 से 120 सेमी होती है. और 60 से 90 सेमी तक रखे जाते हैं.
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कपास की सघन खेती में पंक्तियां 45 सेमी की दूरी पर और पौधे 15 सेमी की दूरी पर लगाए जाते हैं. इस प्रकार एक हेक्टेयर में 1,48,000 पौधे लगाए जाते हैं. बीज दर 6 से 8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखी जाती है. इससे उपज 25 से 50 प्रतिशत तक बढ़ जाती है. इसके लिए उपयुक्त किस्में इस प्रकार हैं:- एनएच 651 (2003), सूरज (2002), पीकेवी 081 (1989), एलआरके 51 (1992), एनएचएच 48 बीटी (2013), जवाहर ताप्ती, जेके 4, जेके 5 आदि.
पहली निराई-गुड़ाई अंकुरण के 15 से 20 दिन के अन्दर कोल्पा या डोरे से कर देनी चाहिए. खरपतवारनाशी में पाइरेटोब्रेक सोडियम (750 ग्राम/हेक्टेयर) या फ्लुओक्लोरिन/पेंडामेथालिन 1 किग्रा शामिल है. सक्रिय घटक का उपयोग बुआई से पहले किया जा सकता है.