हाल के वर्षों में राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के अंतर्गत मृदा के करोड़ों नमूनों की जांच की गई और इनके परिणाम काफ़ी चिंताजनक देखने में आए हैं. उदाहरण के लिए हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और तमिलनाडु आदि राज्यों में 95-99 प्रतिशत मृदा नमूनों में जैविक कार्बन की मात्रा बहुत कम पाई गई. भारतीय मृदाओं में मोटे तौर पर कम से कम 1.30 प्रतिशत जैव पदार्थ होना चाहिए. इसके लिए सबसे पहले विभिन्न जैविक स्रोतों, जैव उर्वरकों, फसल विविधीकरण, संरक्षण कृषि, संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन और अन्य सस्य विधियों से मृदा में जैव पदार्थ की मात्रा बढ़ाई जानी जरूरी है. इसके साथ ही मृदा से होने वाली जैव पदार्थ की हानि को कम करने का गंभीर प्रयास भी किया जाना चाहिए.
आईसीएआर के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, भारत सरकार ने देश की मृदा उर्वरता और स्वास्थ्य के विश्लेषण के लिए साल 2014-15 में राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना को आरंभ किया था. इस योजना के अंतर्गत मृदा जांच के दो चक्र पूर्ण हो चुके हैं और इन दो चक्रों में 5.27 करोड़ मृदा नमूनों की जांच की गई. इस जांच में मृदाओं के अंदर उपस्थित जैव कार्बन और खनिज पोषक तत्वों की जांच की गई. इन मृदा नमूनों की जांच से पता चला है कि केवल 15 प्रतिशत मृदाओं में जैव कार्बन की पर्याप्त मात्रा 0.75 प्रतिशत से अधिक थी, जो बेहतर मानी जाती है. जबकि 85 प्रतिशत नमूनों में जैव कार्बन की मात्रा 0.75 प्रतिशत से कम थी, जो मध्यम उर्वरा शक्ति वाली मृदा मानी जाती है. कुछ राज्यों में 95 प्रतिशत से अधिक मृदा नमूनों में जैव कार्बन की पर्याप्त मात्रा मौजूद नहीं थी. जबकि 0.80 प्रतिशत जैविक कार्बन वाली मृदा बेहतर उर्वरा शक्ति वाली मानी जाती है.
देश की मृदाओं की उर्वरता और स्वास्थ्य का स्तर काफ़ी चिंताजनक स्थिति में आ चुका है. देश के कई प्रमुख राज्यों में जैविक कार्बन का स्तर काफी गिर चुका है. वर्तमान में सबसे स्वस्थ और उर्वर शक्ति वाली मृदा सिक्किम में है क्योंकि यहां केवल 3 प्रतिशत मृदा नमूनों में ही 0.75 प्रतिशत से कम जैविक कार्बन मात्रा थी, जबकि हरियाणा और पंजाब में जैविक कार्बन का स्तर 99 प्रतिशत मृदा नमूनों में कम पाया गया है. यानी देश की मृदाओं की उर्वरता और मृदा स्वास्थ्य की स्थिति काफ़ी चिंताजनक है.
देश की मृदा में मुख्य पोषक तत्वों की भी कमी पाई गई है. नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की कमी क्रमशः 95 फीसदी, 94 फीसदी, और 48 फीसदी है. जबकि पोषक तत्व उपयोग क्षमता नाइट्रोजन में 30-50 प्रतिशत, फॉस्फोरस में 15-20 प्रतिशत और पोटैशियम में 60-70 प्रतिशत ही है. कृषि में अधिक उर्वरक के उपयोग की तुलना में उर्वरक/पोषक तत्वों की उपयोग क्षमता में सुधार करना बेहद जरूरी है.
सूक्ष्म पोषक तत्व मानव स्वास्थ्य के लिए जरूरी हैं. वे पुरानी बीमारियों और स्टंटिंग को रोकने में योगदान करते हैं, हमारी प्रतिरक्षा और प्रजनन प्रणाली को मजबूत करते हैं और हमारी शारीरिक और मानसिक क्षमताओं को बढ़ाते हैं, जो हमारी मृदा से फसलों में आती हैं. लेकिन आज के वक्त में देश की मृदा में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होने लगी है. इसकी कमी से फसलों में कई तरह की समस्याएं आती हैं. मृदा में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी भी गंभीर है. जिंक की कमी सबसे अधिक पाई गई है.
मुख्य़ पोषक तत्व एनपीओ के बाद मैक्रोन्यूट्रिएंट्स में जिंक सबसे अहम सूक्ष्म पोषक तत्व है. जिंक सामान्य विकास और प्रजनन के लिए जरूरी है. जिंक दुनिया में सबसे अधिक सामान्य रूप से कमी वाला सूक्ष्म पोषक तत्व है. प्रमुख कृषि क्षेत्रों में जिंक की कमी वाली मिट्टी की उच्च कृषि उत्पादकता को गंभीर रूप से प्रभावित करती है. जिंक पौधों को सूखे, गर्मी के तनाव और रोगजनक संक्रमणों के प्रति लड़ने की क्षमता का विकास करता है. अगर जिंक की कमी हो जाती है तो पत्तियों का आकार छोटा, पत्तियां पीले धब्बे वाली बन जाती हैं. जिंक की कमी से धान और गेहूं में पत्तियों का पीला पड़ना, मक्का और ज्वार में ऊपरी पत्तियां सफेद होना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं.
जैव पदार्थ की मात्रा बढ़ाने के लिए जैविक स्रोतों और जैव उर्वरकों का अधिक से अधिक उपयोग किया जाना चाहिए. फसल विविधीकरण और संरक्षण कृषि को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि मृदा की जैविक गुणवत्ता बढ़ाई जा सके. संतुलित पोषक तत्व प्रबंधन को अपनाकर मृदा में पोषक तत्वों की कमी को दूर किया जा सकता है. मृदा जांच प्रयोगशालाओं की स्थापना और मजबूती से मृदा की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है.
सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे जिंक, सल्फर, बोरान, आयरन आदि का समुचित उपयोग सुनिश्चित किया जाना चाहिए. उर्वरक के संतुलित उपयोग और मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन के बारे में किसानों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए. राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना और अन्य कृषि संबंधी योजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन करके मृदा की उर्वरता और स्वास्थ्य में सुधार किया जा सकता है. यह भी जरूरी है कि मृदा की जैविक और पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाया जाए.