Paddy type: ऊसर भूमि के साथ सामान्य भूमि में भी धान की यह किस्म है खूब कामयाब, जानें इसकी खासियत

Paddy type: ऊसर भूमि के साथ सामान्य भूमि में भी धान की यह किस्म है खूब कामयाब, जानें इसकी खासियत

लखनऊ स्थित केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान के द्वारा खरीफ सीजन में बोई जाने वाली धान की चार ऐसी किस्मों को विकसित किया गया है .  लवणीय भूमि में धान की किस्में उत्पादन देने में कामयाब हैं जबकि सामान्य भूमि में भी यह किसने भरपूर पैदावार दे रही हैं. ऐसी ही एक किस्म है सी.एस.आर-46 इस किस्म का धान को 9.8 पीएच मान वाली लवणीय भूमि में भी उगाया जा सकता है

धान की सी.एस.आर-46  क़िस्म धान की सी.एस.आर-46 क़िस्म
धर्मेंद्र सिंह
  • lucknow ,
  • Jun 26, 2023,
  • Updated Jun 26, 2023, 10:15 AM IST

ऊसर भूमि में फसल उगा कर उत्पादन लेना आसान नहीं होता है. ऊसर भूमि में लवणता ज्यादा होती है जिसके चलते पौधों की वृद्धि नहीं हो पाती है. ऐसे में लखनऊ स्थित केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान के द्वारा खरीफ सीजन में बोई जाने वाली धान की चार ऐसी किस्मों को विकसित किया गया है .  लवणीय भूमि में धान की किस्में उत्पादन देने में कामयाब हैं जबकि सामान्य भूमि में भी यह किसने भरपूर पैदावार दे रही हैं. ऐसी ही एक किस्म है सी.एस.आर-46 इस किस्म का धान को 9.8 पीएच मान वाली लवणीय भूमि में भी उगाया जा सकता है. अच्छी भूमियों में इस किस्म का उत्पादन तो अच्छा है ही जबकि उसर भूमि में भी इसका उत्पादन उम्मीद से बेहतर है.

धान की किस्म (Paddy type) सी.एस.आर-46 की खासियत

ऊसर भूमि में धान की पैदावार के लिए केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान के द्वारा अलग-अलग तरह की 4 किस्में विकसित की गई है जिनमें सी.एस.आर-46 ऐसी किस्म है जिसका उत्पादन लवणीय भूमि में भी अच्छा है. धान की यह किस्म 130 दिन में तैयार हो जाती है. वही पौधे की रोपाई के बाद 100 से 105 दिन बाद फूल आना शुरू होते हैं. इस किस्म के पौधे की लंबाई 115 सेंटीमीटर होती है. वही यह किस्म दूसरी किस्मों के मुकाबले काफी अच्छी पैदावार है. उसर भूमि में इस किस्म से 46 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार ली जा सकती है जबकि सामान्य भूमि में 70 क्विंटल  प्रति हेक्टेयर तक पैदावार देने में यह किस्म सक्षम है.

रोग प्रतिरोधी है यह किस्म

धान की यह किस्म रोग प्रतिरोधी है. लीफ ब्लास्ट, नैक ब्लास्ट, शीथ रॉट, बैक्टीरियल लीफ ब्लास्ट, ब्राउन स्पॉट रोगों को सहने में सक्षम है. और साथ ही लीफ फोल्डर और वाइट बैक्ड प्लांट हॉपर नामक कीटों के प्रकोप को सहने में सक्षम है. धान में लगने वाली इन बीमारियों से फसल को काफी नुकसान होता है. वही किसानों को बचाव के लिए कीटनाशक का उपयोग करना पड़ता है जिससे उनकी फसल लागत में वृद्धि होती है.

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ऊसर भूमि में हो रहा है सुधार

उत्तर प्रदेश में पिछले एक दशक में उसर भूमि सुधार कार्यक्रम के जरिए लवणीय भूमि को सुधारा गया है.  वर्तमान में प्रदेश में 10 लाख हेक्टेयर से भी कम उसर भूमि का क्षेत्रफल बची है जो पहले कभी 14 लाख हेक्टेयर तक था. केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान के द्वारा उत्तर भूमि में पैदा होने वाली धान, गेहूं और दलहनी फसलों की किस्मों को विकसित करने का काम भी किया जा रहा है.

 

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