खाद्य फसलों में मक्के का विशेष स्थान है. उत्पादन की दृष्टि से गेहूं और धान के बाद मक्के का स्थान तीसरा है. मक्के का उपयोग अनाज, दाना और चारे के रूप में किया जाता है. वर्तमान समय में मक्के की विभिन्न प्रजातियों का उपयोग अलग-अलग तरीके से किया जा रहा है, जैसे पॉपकॉर्न, स्वीटकॉर्न, ग्रीनकॉर्न, बेबीकॉर्न आदि. जहां बेबीकॉर्न को सब्जी के रूप में उपयोग किया जा रहा है, वहीं स्वीटकॉर्न को उबालकर नाश्ते के रूप में उपयोग किया जाता है. भुने हुए हरे मक्के खाने का स्वाद लोगों को काफी पसंद हैं. जिस वजह से इसकी मांग लगातार बढ़ती जा रही है. यही कारण है कि आज के समय में हर जगह बच्चे और बुजुर्ग लोग पॉपकॉर्न खाते नजर आ जाते हैं. जिस वजह से मकके कि खेती कर रहे किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है. साथ ही इसकी खेती कर रहे किसानों को यह भी ध्यान रखने कि जरूरत है कि मकई में बाली निकलते वक्त कितना दें पानी और खाद की सही मात्रा क्या है.
मक्के की खेती कर आढ़े किसानों को इस बात का खास खयाल रखना चाहिए कि मक्के में पानी की कमी न हो. विशेषकर बाली और बाली निकलने का समय महत्वपूर्ण होता है. बुआई से लेकर मक्का निकलने तक मौसम के अनुसार चार सिंचाईयों की आवश्यकता होती है, प्रत्येक सिंचाई 5 सेमी. पानी पर्याप्त है. वहीं खाद के सही मात्रा कि बात करें तो बुवाई से पहले किसान 4 से 6 तन प्रति एकड़ के हिसाब से सड़ी हुई गोबर खाद का इस्तेमाल कर सकते हैं.
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उचित मृदा प्रबंधन के साथ मक्के की खेती विभिन्न प्रकार की भूमियों में की जा सकती है, लेकिन अधिक उत्पादन के लिए अधिक कार्बनिक पदार्थ, अच्छी जल निकासी और वायु परिसंचरण वाली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है.
मक्के की अच्छी वृद्धि के लिए अच्छी धूप की आवश्यकता होती है. बुआई के समय वायुमंडलीय तापमान 18-20°C होना चाहिए. यदि तापमान 9-10°C है तो मक्के का अंकुरण प्रभावित हो सकता है. मक्के की वृद्धि के लिए 25-30°C का तापमान उपयुक्त होता है. पकने के लिए गर्म और शुष्क वातावरण उपयुक्त होता है.