सिक्किम, भारत के नॉर्थ-ईस्ट का एक अहम हिस्सा है और यहां की आबादी का एक बड़ा हिस्सा खेती पर निर्भर है. सिक्किम ने साल 2016 से पूरी तरह से ऑर्गेनिक खेती को अपना लिया है. यहां पर किसान जैविक खेती के जरिये मक्का, चावल, कुट्टू, चाय और बड़ी इलायची जैसी फसलों की खेती करते हैं. लेकिन अब यहां के किसान ऑर्गेनिक तरीके से अदरक उगाकर भारी मुनाफा कमा रहे हैं. यहां के पूर्वी जिले के नंदोक-नैतम गांव के किसान इसी तरह से खेती करके ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं.
नंदोक-नैतम गांव में लोअर नंदोक के अध्यक्ष निम त्शेरिंग लेपचा ने इसी तरह से खेती करके मुनाफा कमाया है और अब वह बाकी के किसानों को भी प्रेरणा दे रहे हैं. शुरुआत में लेपचा एक्स्ट्रा इनकम के लिए बेमौसमी सब्जियों की खेती, बड़ी इलायची की खेती, मछली पालन, मुर्गी पालन और डेयरी जैसे कई कामों को करते थे. लेकिन इन कामों में मेहनत करने के बाद भी उम्मीद के मुताबिक फायदा नहीं मिल रहा था.
उनके गांव में कई और किसान अदरक की खेती जैविक तरीके से करना चाहते थे लेकिन उनके पास सही जानकारी और तकनीकी संसाधनों का अभाव था. निम त्शेरिंग लेपचा भी थोड़े समय के लिए इस फसल में फायदे को लेकर कन्फ्यूज थे क्योंकि उन्हें उत्पादन और बिक्री की प्रक्रिया के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं थी. लेकिन फिर उन्हें कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) और आईसीएआर के वैज्ञानिकों का साथ मिला और फिर न सिर्फ उनकी, बल्कि पूरे गांव के किसानों की जिंदगी बदल गई.
यह भी पढ़ें-विदेश से लौटे दो भाई... और शुरू की यह खेती, आज कर रहे बंपर कमाई, जानें कैसे
पूर्वी सिक्किम के आईसीएआर केवीके के वैज्ञानिकों ने नंदोक गांव का दौरा किया. वैज्ञानिकों ने यहां के किसानों को जैविक अदरक की खेती के बारे में विस्तार से जानकारी दी. साल 2013-14 में निम त्शेरिंग लेपचा को 200 किलोग्राम उच्च गुणवत्ता वाले अदरक के प्रकंद दिए गए. इसके बाद, उन्होंने जैविक तरीकों से अदरक की खेती की और यह पूरी तरह से सफल रही. इस प्रक्रिया में वैज्ञानिकों ने निम त्शेरिंग लेपचा को खेती के सही तकनीक के बारे में बताया. साथ ही खेत में प्रदर्शन के जरिए उन्हें नए तरीकों से वाकिफ कराया. इस तकनीक को अपनाकर उन्होंने अपने खेतों में शानदार परिणाम हासिल किए.
निम त्शेरिंग लेपचा ने अदरक की फसल लगाई जो आठ से नौ महीने में पूरी तरह से तैयार हो गई. उन्होंने प्रति हेक्टेयर 137.13 क्विंटल अदरक की उपज ली और प्रति हेक्टेयर 2,84,905 रुपये का नेट प्रॉफिट कमाया. यह सफलता न केवल निम त्शेरिंग लेपचा के लिए, बल्कि उनके पूरे गांव के किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी. अब नंदोक गांव के ज्यादातर किसान इस जैविक अदरक की खेती में शामिल हो चुके हैं. गांव के लोग भी इस उच्च लाभ वाली खेती के तकनीकों को अपनाकर अपनी आय बढ़ा रहे हैं.
यह भी पढ़ें-Trump Tariff War: कश्मीर में सेब, अखरोट के किसानों को क्यों सता रही अपने भविष्य की चिंता?
निम त्शेरिंग लेपचा के खेत में 0.10 हेक्टेयर में शुरू हुई जैविक अदरक की खेती अब 1.0 हेक्टेयर से भी ज्यादा क्षेत्र तक फैल चुकी है. नंदोक गांव में अब आठ हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर अदरक की खेती हो रही है. यहां तक कि मक्का उगाने वाले किसान भी इस तकनीक को अपनाकर अच्छा-खासा मुनाफा कमा रहे हैं. अब ये किसान अदरक को सिंगल क्रॉप यानी एकल फसल के तौर पर उगाने लगे हैं.
यह सफलता केवल नंदोक तक सीमित नहीं रही, बल्कि आसपास के गांवों जैसे थानजिंग, ऊपरी खामडोंग, यांगथांग, थंका और लिंगटम में भी अदरक की खेती का विस्तार हो चुका है. अब इन गांवों में करीब 50 हेक्टेयर क्षेत्र में अदरक की खेती हो रही है. इसकी खेती से न सिर्फ उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है, बल्कि उन्होंने खुद को एक सफल किसान के रूप में साबित भी किया है. यह तकनीक अब आदिवासी किसानों के बीच एक आदर्श बन चुकी है, और वे इसे अपनाकर अपने जीवन स्तर को ऊंचा कर रहे हैं.