सरसों की खेती की जब बात आती है तो राजस्थान का नाम सबसे पहले आता है. सरसों तेल की भी जब बात आती है तो राजस्थान का ही नाम आता है. इससे साफ है कि सरसों के लिए राजस्थान की धरती सबसे उपयुक्त है. ऐसे में हम यहां राजस्थान को ध्यान में रखते हुए सरसों की खेती के बारे में कुछ जरूरी जानकारी दे रहे हैं. हम आपको कुछ ऐसी किस्मों के बारे में बताएंगे जो लागत से चार गुना तक कमाई दे जाती हैं. साथ ही ये भी बताएंगे कि खाद-पानी का क्या हिसाब रखें कि सरसों लहलहा उठे, उसके दाने से तेल टपकने लगे.
सामान्य तौर पर सरसों 125-130 दिन में पककर तैयार हो जाती है. यानी सरसों चार-साढ़े चार महीने की फसल है, लेकिन कमाई भरपूर होती है. इसकी खेती बारानी और सिंचिंत, दोनों इलाकों में कर सकते हैं. एक्सपर्ट की मानें तो सरसों की खेती में बीज, खाद आदि को मिलाकर 30 से 35 हजार रुपये की लागत आती है. लेकिन अच्छी बात ये है कि इससे चार गुना तक लगभग एक से सवा लाख रुपये की पैदावार मिल जाती है. इससे साफ है कि चार महीने की फसल में किसान चार गुना तक कमाई कर सकते हैं.
आपको ध्यान रखना होगा कि वैसी किस्में लगाएं जो सरसों की बंपर की पैदावार दें. कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो सरसों की कुछ विशेष किस्मों जैसे कि गिरिराज, टी 59, आरएच 725 और 225, पूसा सरसों आरएच 30, पायनियर 45, एस 46, स्टार 10-15 हाइब्रिड, एग्रोस्टार नियॉन, पूसा सरसों 28 आदि से किसान बंपर उपज पा सकते हैं. किसान अगर समय पर इन किस्मों की खेती करें तो उन्हें बंपर उपज लेने से कोई नहीं रोक सकता.
एक्सपर्ट बताते हैं कि तिलहन फसल में लागत कम और आमदनी अधिक होती है. उचित समय पर बुवाई करने से पैदावार तो अधिक होती ही है, साथ ही रोग और कीटों का प्रकोप कम होता है. सरसों ऐसी फसल है जिसमें 4 या 5 सिंचाई कर दें तो उपज की टेंशन नहीं रहती. बुवाई के 35-40 दिन बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए. इसके एक-दो दिन बाद ही प्रति हेक्टेयर 35 किलो यूरिया, चार किलो जिंक और तीन किलो सल्फर या 10 किलो दानेदार सल्फर डालने से अच्छा उत्पादन मिलता है. फसल तैयार होने तक चार से पांच बार फव्वारा अथवा ड्रिप सिस्टम से साधारण सिंचाई की जाती है.
इस फसल में सफेद रोली, झुलसा, तना गलन सहित अन्य रोगों का प्रकोप होता है. इनसे बचाव के लिए ग्लाइफोसेट, मैंकोजेब, कार्बेडिज्म, एंडोसल्फॉनक्यूनालफॉस सहित अन्य दवाओं का उपयोग विशेष तौर पर किया जाता है. वहीं फसल को ठंड से बचाने के लिए सल्फर का प्रयोग करते हैं. अधिक उपज के लिए जमीन का पीएच मान 7.0 होना चाहिए. साथ ही बुवाई पहले जल निकासी का जरूर प्रबंध करना चाहिए.