गेहूं समेत रबी फसलों की बुआई का मौसम चल रहा है, लेकिन उत्तर प्रदेश में किसानों के सामने आज सबसे बड़ा संकट डीएपी खाद का खड़ा हो गया है. इस बीच राज्य के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही उर्वरक की कालाबाजारी और जमाखोरी रोकने के लिए अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए. उन्होंने खाद सप्लायर कंपनियां के प्रतिनिधियों को निर्देश देते हुए कहा कि खाद कंपनियों द्वारा थोक और फुटकर उर्वरक विक्रेताओं को उर्वरक पहुंचाने की प्रक्रिया में किसी प्रकार से देरी नहीं करेंगे. साथ ही कोई भी उर्वरक कंपनियां कोई अन्य उत्पाद को टैगिंग और होल्डिंग नहीं करेंगी. उन्होंने कहा कि प्रदेश के समस्त उर्वरक बिक्री केन्द्रों पर उर्वरक का विक्रय बोरी में दर्ज अधिकतम मूल्य से अधिक दर पर बिक्री न कर रहे हो.
इसी कड़ी में कृषि मंत्री ने अधिकारियों को सख्त निर्देश देते हुए कहा कि कालाबाजारी/अधिक मूल्य पर बिक्री/उर्वरकों की होल्डिंग तथा टैगिंग से संबंधित मामला सामने आता है तो तत्काल सम्बन्धित के विरुद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज कराते हुए उर्वरक विक्रय प्राधिकार पत्र को भी निरस्त करते हुए कड़ी कार्रवाई की जाएं. शाही ने कहा कि किसानों को फसल बुवाई में किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा. प्रदेश के किसानों को उनकी आवश्यकता के अनुसार उर्वरकों की पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराना प्रदेश सरकार का दायित्व है.
कृषि मंत्री ने बताया कि शासन की तरफ से बड़ा फैसला किसानों के लिए लिया गया है. अब साधन सहकारी/सहकारिता क्षेत्र को प्राथमिकता देने के दृष्टिगत निजी क्षेत्र के उर्वरक कम्पनियों की जनपद में लगने वाली उर्वरक रैक में 30% से बढ़ाकर 50% किये जाने का निर्णय लिया गया है. प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने आगे बताया कि वर्तमान में भारत सरकार द्वारा 127 फास्फेटिक उर्वरकों की रैंक डिस्पैच की गई है, जिसमें से 86 रैक पहुंच चुकी हैं तथा बाकी 41 फास्फेटिक रैक रास्ते में है, जिनके आगामी 2 से 3 दिन के भीतर पहुंचने की संभावना है.
गौरतलब है कि खाद को लेकर यह संकट किसी गांव या जिले का नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश का है. रबी की बोआई का पीक सीजन है. किसान खाद के लिए परेशान हैं. पूरी-पूरी रात लाइन में लग रहे हैं, लेकिन खाद नहीं मिल रही. यह हाल तब है जब अक्टूबर से बोआई शुरू हो गई है. सबसे पहले सितंबर में अगैती और फिर अक्टूबर में पिछैती आलू की बोआई शुरू हो जाती है. अभी तक तो आलू किसान ही परेशान थे, लेकिन अब नवंबर महीना बीतने को है. इस समय गेहूं, सरसों और आलू की बोआई का भी सीजन है. सबको खाद चाहिए, लेकिन उतनी मात्रा में खाद मिल नहीं रहा, जितनी जरूरत है. वजह यह है कि जरूरत के मुताबिक खाद उपलब्ध ही नहीं है. वहीं किसान सुबह-सुबह सहकारी समितियों के केंद्र पर खाद पाने के लिए लाइन में खड़े हो रहे हैं.
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