
देश में फॉस्फेटिक और पोटैशिक (पी एंड के) खाद की बढ़ती मांग और आयात पर बहुत ज्यादा निर्भरता को देखते हुए संसद की स्थायी समिति ने सरकार को घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाने को कहा है. साथ ही कई अन्य सिफारशें भी की हैं. समिति ने सोमवार को अपनी विस्तृत रिपोर्ट पेश की, जिसमें उर्वरक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने और आयात बोझ कम करने के लिए आवश्यक उपायों पर जोर दिया गया है.
रिपोर्ट के अनुसार, देश में P&K उर्वरकों के उत्पादन के लिए जरूरी कच्चे माल में भारी आयात निर्भरता बनी हुई है. समिति ने बताया कि भारत अपनी फॉस्फेट की लगभग 95 प्रतिशत जरूरतें विदेशों से पूरी करता है. वहीं पोटाश के मामले में स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि इसकी 100 प्रतिशत आपूर्ति आयात के जरिए ही होती है.
समिति ने चेतावनी दी कि वैश्विक कीमतों में उतार-चढ़ाव, विदेशी मुद्रा विनिमय दरों में बदलाव और अंतरराष्ट्रीय सप्लाई चेन में व्यवधान का सीधा असर घरेलू उत्पादन लागत पर पड़ता है. इससे किसानों के लिए उर्वरकों की उपलब्धता और सरकार पर सब्सिडी का दबाव दोनों प्रभावित होते हैं.
रिपोर्ट में कहा गया कि देश में P&K उर्वरकों (डीएपी और एनपीके) की सालाना घरेलू उत्पादन क्षमता 160 लाख टन है. जबकि कुल जरूरत 240 लाख टन के आसपास पहुंच चुकी है. आने वाले वर्षों में मांग और बढ़ने का अनुमान है और 2035-36 तक इसका स्तर 305 लाख टन तक पहुंच सकता है.
समिति ने बताया कि इस मांग-आपूर्ति अंतर को कम करने के लिए कुछ नए संयंत्रों की स्थापना और मौजूदा इकाइयों के विस्तार का काम चल रहा है. हालांकि, इन परियोजनाओं को तय समयसीमा में पूरा करना आवश्यक है. समिति ने उर्वरक विभाग को निर्देश दिया कि शुरू किए गए प्रोजेक्ट्स में देरी न हो और अन्य प्लांट्स की क्षमता बढ़ाने पर भी तेजी से कदम उठाए जाएं. इससे घरेलू उत्पादन में बढ़ोतरी होगी और आयात पर निर्भरता कम होगी.
इस बीच, एक दूसरी रिपोर्ट में दवा क्षेत्र से जुड़े मुद्दों पर भी समिति ने चिंता जताई है. विशेष रूप से हृदय रोगियों के लिए जरूरी स्टेंट की कीमत को लेकर समिति ने राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) को अधिक सख्ती बरतने का सुझाव दिया है. समिति ने कहा कि स्टेंट की कीमतें तय सीमा से ऊपर नहीं जानी चाहिए.
समिति ने एनपीपीए और संबंधित विभाग को यह भी निर्देश दिया कि अगर किसी अस्पताल या संस्था द्वारा अत्यधिक कीमत वसूली की शिकायत मिले तो उस पर कड़ी कार्रवाई की जाए. इससे मरीजों पर आर्थिक बोझ कम होगा और स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित होगी. (पीटीआई)