
कश्मीर में कीटनाशक (पेस्टिसाइड) से जुड़े कैंसर के मामलों को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच, अधिकारी इस क्षेत्र के बागों और खेतों में केमिकल के इस्तेमाल को कम करने के लिए ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के प्रयास तेज कर रहे हैं.
कृषि मंत्री जावेद अहमद डार ने कहा कि सरकार ने होलिस्टिक एग्रीकल्चर डेवलपमेंट प्रोग्राम (HADP) के तहत ऑर्गेनिक खेती के लिए 75,000 हेक्टेयर जमीन की पहचान की है. यह पांच साल का एक प्रोग्राम है जिसका मकसद जम्मू और कश्मीर के कृषि और उससे जुड़े सेक्टरों को बदलना है.
सोमवार को श्रीनगर में फूड सेफ्टी एंड हेल्थ कॉन्क्लेव 2025 में बोलते हुए, डार ने कहा कि सरकार बायोडायवर्सिटी और फूड सेफ्टी को बढ़ावा देने के लिए मौजूदा 20,000 हेक्टेयर बागों को भी इको-फ्रेंडली, कम नुकसान पहुंचाने वाले खेती के तरीकों में बदल रही है. उन्होंने कहा, "लक्ष्य इंसानी स्वास्थ्य की रक्षा करना और टिकाऊ कृषि विकास सुनिश्चित करना है."
यह कदम घाटी के सेब के बागों में एग्रोकेमिकल्स के ज्यादा इस्तेमाल को लेकर बढ़ती चिंता के बीच उठाया गया है, जिसे कैंसर के मामलों में बढ़ोतरी से जोड़ा गया है.
पिछले बजट सत्र के दौरान, स्वास्थ्य मंत्री सकीना इटू ने जम्मू और कश्मीर विधानसभा को बताया कि 2018 से केंद्र शासित प्रदेश में 64,000 से ज्यादा कैंसर के मामले सामने आए हैं. इनमें से 50,551 मामले घाटी से थे.
इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल एंड पीडियाट्रिक ऑन्कोलॉजी (IJMPO) में 2010 में छपे एक स्टडी में पाया गया कि 2005 और 2008 के बीच कश्मीर में प्राइमरी मैलिग्नेंट ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित 90 प्रतिशत से अधिक (432 में से 389) मरीज या तो बागों में काम करने वाले मजदूर थे, बागों के पास रहने वाले निवासी थे, या ऐसे बच्चे थे जो अक्सर बागों में खेलते थे.
शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (SKIMS) में भर्ती मरीजों के डेटा का एनालिसिस करने के बाद रिसर्च किया गया. इस रिसर्च ने पेस्टिसाइड्स के 10 से 20 साल तक लंबे समय तक संपर्क में रहने और ब्रेन ट्यूमर के विकास के बीच एक मजबूत संबंध के बारे में बताया.
विशेषज्ञों का कहना है कि कश्मीर की एग्रोकेमिकल्स पर निर्भरता चिंताजनक स्तर तक पहुंच गई है. जम्मू और कश्मीर में सालाना इस्तेमाल होने वाले 4,080 मीट्रिक टन पेस्टिसाइड्स में से 90 प्रतिशत से ज्यादा कीटों और बीमारियों को कंट्रोल करने के लिए सेब के बागों पर स्प्रे किया जाता है.
यह क्षेत्र देश भर में कुल पेस्टिसाइड्स की खपत में चौथे स्थान पर है और प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल में सबसे आगे है, जिसमें किसान फसल सुरक्षा पर उत्पादन लागत का लगभग 55 प्रतिशत खर्च करते हैं. शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी, कश्मीर के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. तारिक रसूल ने कहा, "ऑर्गेनिक सेब की खेती में बीमारियों और कीड़ों को मैनेज करना सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है."
"हालांकि कॉपर, सल्फर और बाइकार्बोनेट सॉल्ट जैसे कुछ कंपाउंड्स को दुनिया भर में बीमारियों को कंट्रोल करने के लिए इजाजत है, फिर भी ऑर्गेनिक तरीके से उगाए गए सेब की पैदावार और उसकी दिखावट पारंपरिक तरीकों से उगाए गए सेब से कम होती है."