छत्तीसगढ़ में धान की रोपाई अपने चरम पर है, मगर किसान खाद के गहराते संकट में फंस गए हैं. राज्य सरकार जहां पर्याप्त स्टॉक होने का दावा कर रही है, वहीं जमीनी स्तर पर किसान यूरिया और डीएपी की भारी कमी की शिकायत कर रहे हैं. अब इस कारण उन्हें ब्लैक से ऊंची कीमतों पर उर्वरक खरीदने पर मजबूर होना पड़ रहा है. राज्य के तमाम जिलों के किसान लंबी लाइनों में खड़े होने और अक्सर खाली हाथ लौटने की शिकायत कर रहे हैं. यूरिया, जिसकी आधिकारिक कीमत ₹266 प्रति बोरी है, वह खुले बाजार में ₹500-₹600 में बिक रही है.
दरअसल, छत्तीसगढ़ को अपने लगभग 48 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि के लिए सालाना लगभग 22 लाख टन उर्वरक की जरूरत होती है, लेकिन इस साल राज्य को केवल 17 लाख टन ही आवंटित किया गया है. ऐसे में लगभग 5 लाख टन खाद की कमी हो गई है. डीएपी की उपलब्धता में भारी गिरावट के कारण यह कमी और बढ़ गई है, जिसका लक्ष्य 3 लाख टन से घटाकर 2 लाख टन कर दिया गया है.
अखिल भारतीय किसान सभा के उपाध्यक्ष संजय पराते ने सरकार पर विश्वासघात का आरोप लगाया और कहा कि सरकार दावा करती है कि खाद की कोई कमी नहीं है, लेकिन सच्चाई यह है कि किसान कर्ज़ लेकर ब्लैक में खाद खरीद रहे हैं. अगर एक बोरी डीएपी की जगह 3 बोरी एसएसपी और एक बोरी यूरिया देनी है, तो अतिरिक्त 2 लाख टन यूरिया और 6 लाख टन एसएसपी कहां हैं? सिर्फ़ 3.5 लाख टन एसएसपी का इंतज़ाम किया गया है. यह कमी नहीं, लूट है."
पराते ने आगे कहा कि प्रतिस्थापन नीति से किसानों की लागत सीधे ₹1,000 प्रति एकड़ बढ़ेगी, जिससे राज्य भर में कुल बोझ लगभग ₹1,200 करोड़ हो जाएगा. पराते ने कहा कि यह वह पैसा है जो किसान 'पीएम किसान निधि' या बोनस के ज़रिए कभी वापस नहीं पा सकते. यह एक हाथ से देना और दूसरे हाथ से छीनना जैसा है."
वहीं इस संकट को स्वीकार करते हुए, कृषि मंत्री राम विचार नेताम के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ के सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल इस महीने की शुरुआत में केंद्रीय उर्वरक मंत्री जे.पी. नड्डा से मिलने दिल्ली गया था. बैठक के दौरान, नेताम ने बताया कि जुलाई तक 5.99 लाख टन यूरिया और 2.68 लाख टन डीएपी के आवंटन के मुकाबले छत्तीसगढ़ को केवल 4.63 लाख टन यूरिया और 1.61 लाख टन डीएपी ही मिला है. अगस्त में रोपाई अपने चरम पर होने के कारण, प्रतिनिधिमंडल ने मौजूदा योजना के अतिरिक्त 50,000 टन यूरिया और डीएपी की अतिरिक्त आपूर्ति का अनुरोध किया.
नड्डा से मिलने के बाद नेताम ने बताया कि कई संस्थाओं और किसानों की अनदेखी की गई है, जो अस्वीकार्य है. हमने केंद्र से अनुरोध किया है कि वह तुरंत 50,000 टन अतिरिक्त यूरिया और डीएपी जारी करे. केंद्रीय मंत्री ने हमें आश्वासन दिया है और अपने अधिकारियों को शीघ्र आवंटन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है.
हालांकि केंद्र सरकार ने हस्तक्षेप का वादा तो किया है, लेकिन किसान संगठन संशय में हैं. उनका तर्क है कि मोदी सरकार के अंतर्गत उर्वरक क्षेत्र के निजीकरण और निगमीकरण ने राज्य के नियंत्रण को कमज़ोर कर दिया है, जिससे किसान किल्लत और कीमतों में हेरफेर के शिकार हो रहे हैं. अखिल भारतीय किसान सभा के उपाध्यक्ष संजय पराते ने कहा कि छत्तीसगढ़ पहले से ही किसान आत्महत्याओं के मामले में शीर्ष राज्यों में शामिल है. यह उर्वरक संकट कृषि संकट को और गहरा करेगा, और अधिक किसानों को कर्ज और निराशा में धकेलेगा.
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