रबी सीजन वाले प्याज की रोपाई हो चुकी है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि इस मौसम में प्याज की समय से बोयी गई फसल में थ्रिप्स के आक्रमण की आशंका रहती है. इसलिए इसकी निरंतर निगरानी करते रहें. प्याज में परपल ब्लोस रोग की भी निगरानी करते रहें. रोग के लक्षण पाये जाने पर डाएथेन- एम-45 @ 3 ग्राम प्रति लीटर पानी किसी चिपकने वाले पदार्थ जैसे टीपोल आदि (1 ग्रा. प्रति एक लीटर घोल) में मिलाकर छिड़काव करें. दरअसल, थ्रिप्स कीट पत्तियों का रस चूसते हैं, जिसके कारण पत्तियों पर चमकीली चांदी जैसी धारियां या भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं. ये बहुत छोटे पीले या सफेद रंग के कीट होते हैं जो मुख्य रूप से पत्तियों के आधार या पत्तियों के मध्य में घूमते हैं.
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार इसके नियंत्रण के लिए नीम तेल आधारित कीटनाशियों का छिड़काव करें या इमीडाक्लोप्रिन कीटनाशी 17.8 एस.एल. दवा की मात्रा 125 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. प्याज की फसल में माइट कीट भी लगते हैं. इस कीट के प्रकोप के कारण पत्तियों पर धब्बों का निर्माण हो जाता हैं और पौधे बौने रह जाते हैं. इसके नियंत्रण के लिए डाइमेथोएट दवा का छिड़काव करें.
अगर खरीफ मौसम की फसल की बात करें तो रोपण के तुरन्त बाद सिंचाई करना चाहिए. अन्यथा सिंचाई में देरी से पौधे मरने की संभावना बढ़ जाती हैं. खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली प्याज की फसल को जब मॉनसून चला जाता है उस समय सिंचाईयां आवश्यकता अनुसार करना चाहिए. इस बात का ध्यान रखा जाए कि शल्क कन्द निर्माण के समय पानी की कमी नहीं होना चाहिए. क्योंकि यह प्याज फसल की क्रान्तिक अवस्था होती है. क्योंकि इस अवस्था में पानी की कमी के कारण उपज में भारी कमी हो जाती है. यदि अधिक वर्षा या अन्य कारण से खेत में पानी रुक जाए तो उसे शीघ्र निकालने की व्यवस्था करना चाहिए. सिंचाई रोक देनी चाहिए. अन्यथा फसल में फफूंदी जनित रोग लगने की संभावना बढ़ जाती हैं.
प्याज ठंडे मौसम की फसल है, लेकिन इसे खरीफ में भी उगाया जा सकता है. कंद निर्माण के पूर्व प्याज की फसल के लिए लगभग 210 सेंटीग्रेट तापक्रम उपयुक्त माना जाता है. जबकि शल्क कंदों में विकास के लिए 150 से. ग्रे. से 250 से. ग्रे. का तापक्रम उत्तम रहता है.
प्याज की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है. प्याज की खेती के लिए उचित जलनिकास एवं जीवाषयुक्त उपजाऊ दोमट तथा वलूई दोमट भूमि जिसका पी.एच. मान 6.5-7.5 के मध्य हो सर्वोत्तम होती है. प्याज को अधिक क्षारीय या दलदली मृदाओं में नही उगाना चाहिए.
प्याज के सफल उत्पादन में भूमि की तैयारी का विशेष महत्व है. खेत की प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिए. इसके उपरान्त 2 से 3 जुताई कल्टीवेटर या हैरा से करें. प्रत्येक जुताई के पश्चात पाटा अवश्य लगाएं. जिससे नमी सुरक्षित रहे. तथा साथ ही मिट्टी भुर-भुरी हो जाए. भूमि को सतह से 15 सेमी उंचाई पर 1.2 मीटर चौड़ी पट्टी पर रोपाई की जाती है इसलिए खेत को रेज्ड-बेड सिस्टम से तैयार किया जाना चाहिए.
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