
मोंथा चक्रवाती तूफान का असर बिहार से भले ही पूरी तरह से खत्म हो चुका है, लेकिन इस चक्रवात के दौरान राज्य में हुई बारिश ने उस समय जितना खेती पर असर डाला, उससे कहीं ज्यादा इसका प्रभाव विशेष तौर पर धान की खड़ी फसलों पर देखने को मिल रहा है. चक्रवाती तूफान की वजह से हुई वर्षा के कारण धान की फसल में फॉल्स स्मट रोग का प्रभाव तेजी से बढ़ा है.
बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर की ओर से जारी एडवाइजरी में बताया गया है कि बीते दिनों हुई वर्षा से वातावरण में सापेक्षिक आर्द्रता 80 से 90% तक बढ़ गई है. साथ ही तापमान 28–30°C (दिन) और 22–24°C (रात) और हल्की हवा की गति (3–6 किमी/घंटा) देखी जा रही है. ऐसी मौसमीय परिस्थितियां धान में फॉल्स स्मट (कोलिया/लक्ष्मीनिया रोग) के तीव्र संक्रमण के लिए अत्यंत अनुकूल मानी जाती हैं.
बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के वैज्ञानिकों ने बताया कि हाल के समय में राज्य के अधिकांश जिलों में देर से रोपी गई धान की फसलें फूल निकलने, दुग्धावस्था और दाना भरने की अवस्था में हैं, जो Ustilaginoidea virens नामक कवक के संक्रमण के लिए अत्यधिक संवेदनशील चरण होता है. यह फफूंद परागण काल के दौरान बालियों पर संक्रमण कर दानों को पीले, नारंगी या हरे-काले रंग के मखमली गोलों (Smut Balls) में परिवर्तित कर देती है. संक्रमण के बाद दाने भर नहीं पाते, जिससे धान की उत्पादकता, क्वालिटी और बाजार मूल्य में गिरावट देखी जाती है.
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, धान की खड़ी फसल में इस समय फॉल्स स्मट रोग का खतरा रहता है. हालांकि बारिश की वजह से इसका खतरा और तेजी से बढ़ा है. इस रोग के तहत संक्रमित बालियों पर 1–2 या अधिक दाने हरे, पीले या नारंगी रंग के मखमली गोलों में बदल जाते हैं.
साथ ही रोग के बढ़ते प्रभाव के साथ ये गोलियां गहरे हरे या काले रंग की हो जाती हैं. वहीं, दानों में बीज नहीं बन पाता और वे हल्के और खोखले हो जाते हैं. जब फसल पक जाती है तो बाली का वजन घट जाता है. इसके लिए कहा गया है कि हाल के समय में किसान धान की फसलों की निगरानी करते रहें.
बीएयू के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार अगर फॉल्स स्मट रोग का असर बालियों पर दिखाई दे तो उन्हें सावधानीपूर्वक तोड़कर खेत से बाहर गाड़ दें या जला दें. वहीं, खेतों में जलजमाव न होने दें क्योंकि स्थायी नमी और ठहरा हुआ पानी रोग के प्रसार को तेजी से बढ़ाने में मदद करता है.
निदेशक अनुसंधान, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के डॉ. अनिल कुमार सिंह कहते हैं कि चक्रवाती वर्षा के बाद खेतों में बनी उच्च नमी और मध्यम तापमान फॉल्स स्मट संक्रमण के लिए सबसे अधिक अनुकूल परिस्थितियां हैं. ऐसे में किसानों को चाहिए कि वे इस अवधि में सतर्क रहें और फूल निकलने की अवस्था में अनुशंसित कवकनाशी का छिड़काव कर अपनी फसल की रक्षा करें.