
रबी मौसम में सब्जी उत्पादकों के लिए प्याज एक अहम नकदी फसल है. सही समय पर रोपाई, संतुलित दूरी और समय रहते रोग-कीट प्रबंधन से उत्पादन और गुणवत्ता दोनों बेहतर की जा सकती है. इस बीच पूसा दिल्ली के कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए अहम सलाह जारी की है. किसानों को सलाह दी जाती है कि वे प्याज की रोपाई दिसंबर के अंत से 15 जनवरी तक जरूर पूरी कर लें, ताकि फसल को अनुकूल तापमान और बढ़वार का पूरा समय मिल सके.
रबी मौसम के लिए पूसा व्हाइट राउंड, पूसा माधवी, व्हाइट फ्लैट, पूसा रेड, अर्ली ग्रेनो, पूसा रतनार, एन-2-4-1 और एग्रीफाउंड लाइट रेड प्रमुख किस्में मानी जाती हैं. पहाड़ी क्षेत्रों में ब्राउन स्पैनिश और अर्ली ग्रेनो बेहतर परिणाम देती हैं. रोपाई के लिए 7-8 हफ्ते पुरानी स्वस्थ पौध का चयन करें. पंक्ति से पंक्ति की दूरी 15 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखें, ताकि बल्ब का विकास समान रूप से हो सके.
प्याज की फसल में शुरुआती अवस्था में खरपतवार बड़ा नुकसान पहुंचाते हैं. ऐसे में किसान रोपाई के दो से तीन दिन बाद पेण्डीमेथिलीन 3.5 लीटर मात्रा को 800-1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. ध्यान रहे कि यह छिड़काव सिंचाई से पहले किया जाए ताकि दवा का प्रभाव लंबे समय तक बना रहे.
इस मौसम में समय से बोई गई प्याज की फसल में थ्रिप्स का प्रकोप तेजी से बढ़ सकता है. इसलिए किसानों को सलाह दी जाती है कि वे नियमित निरीक्षण करते रहें और प्रारंभिक अवस्था में ही नियंत्रण उपाय अपनाएं.
साथ ही परपल ब्लोच रोग पर भी नजर रखना जरूरी है. रोग के लक्षण दिखाई देने पर डाइथेन एम-45 को 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में किसी चिपकने वाले पदार्थ जैसे टीपोल 1 ग्राम प्रति लीटर के साथ मिलाकर छिड़काव करें. समय पर नियंत्रण से पत्तियों की हरियाली और बल्ब का आकार सुरक्षित रहता है.
देर से बोई गई सरसों की फसल में विरलीकरण और खरपतवार नियंत्रण का कार्य करें. मौसम को देखते हुए सफेद रतुआ रोग और चेपा कीट की नियमित निगरानी जरूरी है. किसान चने की फसल में फली छेदक कीट की निगरानी के लिए 3-4 फीरोमोन प्रपंश प्रति एकड़ लगाएं और खेत में टी आकार के पक्षी बसेरे स्थापित करें.
गोभीवर्गीय फसलों में हीरा पीठ इल्ली, मटर में फली छेदक और टमाटर में फल छेदक की निगरानी के लिए भी 3-4 फीरोमोन प्रपंश प्रति एकड़ उपयोगी हैं. इस समय तैयार बंदगोभी, फूलगोभी और गांठगोभी की रोपाई मेड़ों पर की जा सकती है. पालक, धनिया और मेथी की बुवाई के लिए भी यह समय अनुकूल है. किसान पत्तों की बढ़वार के लिए 20 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ छिड़क सकते हैं.
किसानों को सलाह है कि वे आलू और टमाटर में झुलसा रोग की सतत निगरानी करें. लक्षण दिखने पर कार्बेंडाजिम 1 ग्राम या डाइथेन एम-45 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. मटर की फसल पर 2 प्रतिशत यूरिया घोल का छिड़काव करने से फलियों की संख्या बढ़ती है. वहीं, कद्दूवर्गीय सब्जियों की अगेती फसल के लिए पौध तैयार करने के लिए बीजों को छोटी पॉलिथीन थैलियों में भरकर पॉलीहाउस में रखें.