रबीनामा: देश में नकदी फसल के रूप में आलू की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. यह तृप्ति देने वाली फसल है, इसलिए आलू को गरीबों का मित्र कहा जाता हैं. लेकिन बात जब आलू की खेती की आती है तो आलू में भी कई बीमारियां लग जाती हैं, जिससे पूरी की पूरी फसल बर्बाद हो जाती है. आलू की बीमारियों में सबसे खतरनाक रोग पछेती झुलसा है. यह बीमारी आने से 60-90 फीसदी तक का नुकसान पाया जाता है. इसके अलावा, आलू में अगेती झुलसा रोग और भूरा सड़न रोग से आलू की फसल को काफी नुकसान होता है. इसके लिए सबसे ज़रूरी है कि बीमारी की पहचान की जाए, क्योंकि जब तक इसकी पहचान नहीं होगी, तब तक इसका प्रबंधन भी मुश्किल है. आइए जानते हैं इस रबीनामा सीरीज में आलू में लगने वाले रोगों की पहचान और रोकथाम के बारे में.
केवीके हेड नरकटिया गंज, बिहार और फसल रोग विशेषज्ञ डॉ. आर.पी. सिंह ने किसान तक को बताया कि आलू की फसल में अधिक ठंड पड़ने के आसपास बादल और कोहरा होने के कारण पिछेती झुलसा रोग की समस्या देखी जाती है. अगर इस रोग का सही से नियंत्रण नहीं किया जाता है तो यह रोग खड़ी फसल को नष्ट कर सकता है. शुरुआती अवस्था में, जब वातावरण में नमी 80 प्रतिशत से अधिक होती है, और कम रोशनी, बादल छाए रहते हैं, तापमान 100-200 सेल्सियस है और रुक-रुक कर बारिश हो रही है, तो यह बीमारी तेजी से फैलती है.
इस रोग का कारण फाइटोप्थोरा नामक कवक है जो आलू की पत्तियों, शाखाओं और कंदों को संक्रमित करता है. शुरुआत में पत्तियों के किनारे पर हल्के पीले गीले धब्बे होते हैं जो अनुकूल वातावरण में तेजी से बढ़ते हैं. धीरे-धीरे ये धब्बे काले या भूरे रंग के हो जाते हैं. इसके बाद, पत्तियों की डंठलों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं और फिर तेजी से पौधे सड़ने लगते हैं. इससे पौधों पर दुर्गंध आती है और दूर से ऐसा लगता है कि फसल में आग लगा दी गई है. आलू के कंद पर भी हल्के लाल या भूरे रंग का सूखा पित्त पाया जाता है, जो कंद की सतह के भीतर अनियमित रूप से फैल जाता है और गूदे में अनियमित रूप से फैल जाता है. इससे गूदा गहरे भूरे रंग का हो जाता है.
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खेत में रोग के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए फसल की बुवाई के 45 दिन बाद मैंकोजेब 1 किलोग्राम प्रति एकड़ का सुरक्षात्मक छिड़काव करना चाहिए. रोग के लक्षणों के दिखने पर 15-15 दिन के अंतराल पर मेटालेक्सिल 1 किग्रा प्रति एकड़ दर से छिड़काव करना चाहिए. अगर अभी बुवाई नहीं किए हैं तो पहले कंदों का ईगालाल या मैन्कोज़ैब 0.25 प्रतिशत या ट्राइकोडर्मा पाउडर से उपचार जरूर करें. अगर रोग की गंभीरता 75 प्रतिशत से अधिक हो तो तने को काटकर गड्ढों में दबा दें.
डॉ. सिंह ने कहा कि यह रोग एक प्रकार के कवक के कारण होता है और मिट्टी में पाया जाता है. इस रोग में आलू मुख्य रूप से नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश के असंतुलित उपयोग से प्रभावित होता है. यह रोग पहले लक्षण में निचली पत्तियों पर 1-2 मिमी के होते हैं, जिनमें गोल, अंडाकार या कोणीय धब्बे होते हैं, जो भूरे रंग के होते हैं. धीरे-धीरे ये धब्बे ऊपरी पत्तियों पर फैल जाते हैं. जब रोग की गंभीरता बढ़ जाती है, तो यह पूरी पत्ती को घेर लेता है. इससे रोगग्रस्त पौधे मर जाते हैं. पत्तियां सूखकर कागज़ की तरह हो जाती हैं. तापमान कम और आर्द्रता अधिक होने पर यह रोग तेजी से फैलता है.
अगेती झुलसा रोग के खिलाफ भी किसानों को सतर्क रहना चाहिए. रोग के प्रकोप को कम करने के लिए खेत में संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करें और संक्रमित पौधों को एकत्र कर जला दें. आलू की बुआई के 40-45 दिन बाद मैंकोजेब 1 किलोग्राम प्रति एकड़ का सुरक्षात्मक छिड़काव करें. सिमोक्सानिल 8% और मैन्कोजेब 64% का घोल 1.5 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में छिड़काव करें.आलू की फसल के पास तंबाकू, टमाटर, मिर्च और बैंगन की फसल नहीं लगानी चाहिए क्योंकि ये फसलें बीमारी की वाहक होती हैं.
फसल रोग विशेषज्ञ के अनुसार, इस रोग का कारण जीवाणु राल्सटोनिया सोलानासियेरम है. इसके प्रकोप से पौधे प्रारम्भिक अवस्था में मुरझा जाते हैं. प्रकोप होने पर 2-3 दिन के अंदर पौधा सूख जाता है और जीवाणु जड़ से पौधे के ऊपर तक पहुंच जाते हैं. प्रभावित कंद को काटने पर उसमें बाहरी भाग में एक गोला रिंग बना रहता है और इसको काटकर दबाने पर सफेद रस निकलता है. यह रोग कारक संक्रमित पौध अवशेषों पर मिट्टी में बना रहता है. इस जीवाणु का वर्षा भार सिंचाई जल के माध्यम से होता है और इसे खेत के कुछ ही हिस्सों में पाया जाता है. मिट्टी में इसके जीवाणु जीवंत रहते हैं.
डॉ सिंह के अनुसार, भूरा रोग की रोकथाम में बीज बोने से पहले बीज उपचार करते समय 30 मिनट तक 0.02 प्रतिशत स्ट्रैप्टोसाइक्लिन की मात्रा का उपयोग करना चाहिए. गुड़ाई करते समय उर्वरकों के साथ ब्लीचिंग पाउडर 5-6 किग्रा प्रति एकड़ या खेत की तैयारी करते समय इसका प्रयोग करने से रोग के प्रकोप को कम किया जा सकता है. खड़ी फसल में रोग के लक्षण दिखाई देने पर, स्ट्रैप्टोमाइसिन सल्फेट 9% की 5-6 ग्राम दवा को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए या एग्रिमाइसिन 75 ग्राम दवा को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए.
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आप कोशिश करें कि आप स्वस्थ बीज लें. दूसरी बात यह है कि अगर एक ही खेत में आलू की खेती कर रहे हैं और बीमारी लग रही है तो फसल चक्र अपनानी पड़ेगी. इसके लिए रोग ऱोधी प्रजातियों की बुवाई करें. खेत की जुताई गर्मी के दौरान करनी चाहिए. खेत में पड़े अवशेषों को एकत्र कर नष्ट कर देना चाहिए.