Banana Cultivation: पद्मश्री किसान के अनुभव से जानें केले की खेती से बंपर कमाई का तरीका, यहां पढ़ें टिप्स

Banana Cultivation: पद्मश्री किसान के अनुभव से जानें केले की खेती से बंपर कमाई का तरीका, यहां पढ़ें टिप्स

पद्मश्री किसान राम सरन वर्मा के अनुभव से जानें केले की वैज्ञानिक खेती. इसमें उन्नत तकनीकें जैसे टिश्यू कल्चर पौधे का उपयोग, ड्रिप सिंचाई से पानी-खाद की बचत की जाती है. यह विधि उन्नत तकनीक और लागत कम कर प्रति एकड़ लाखों की बंपर कमाई देती है.

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क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • Jul 04, 2025,
  • Updated Jul 04, 2025, 6:40 AM IST

केले की खेती भारतीय कृषि में एक अहम स्थान रखती है. यह न केवल किसानों के लिए अत्यधिक लाभदायक है, बल्कि देश की बढ़ती फलों की मांग को पूरा करने में भी सहायक है. केले की खेती देश के नए क्षेत्रों में भी इसका विस्तार हो रहा है. इसका मुख्य कारण केले की खेती से होने वाली शानदार आय है, जो प्रति एकड़ 2.5 लाख से 3 लाख रुपये तक पहुंच सकती है. यदि इसमें अंतर-फसल (intercropping) को भी शामिल किया जाए, तो लागत कम करके आय को और भी बढ़ाया जा सकता है. केले की खेती के लिए सबसे अहम है सही स्थान का चुनाव. खेत समतल होना चाहिए और उसमें जलभराव की समस्या नहीं होनी चाहिए. जलभराव केले के पौधों के लिए बेहद हानिकारक होता है.

टिश्यू कल्चर के पौधे बेहतर

केले की खेती में पौधे का चुनाव एक निर्णायक भूमिका निभाता है. पद्मश्री किसान बारबंकी के राम सरन वर्मा का कहना है कि पारंपरिक रूप से कंद या शकर्स से केले के पौधे लगाने से कई बीमारियां एक खेत से दूसरे खेत में फैल सकती हैं. टिश्यू कल्चर विधि से तैयार पौधे 100 फीसदी वायरस-मुक्त होते हैं और उनमें किसी भी तरह की बीमारी नहीं होती. भारत में मात्र 36 पंजीकृत लैब हैं, जिनमें से अधिकांश आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में हैं, जो टिश्यू कल्चर पौधे तैयार करती हैं. छोटे पौधे लाने के बाद उन्हें ग्रीन नेट हाउस में उपयुक्त तापमान में विकसित किया जाना चाहिए. रोपण के लिए 9 इंच ऊंचा और चार-पांच पत्तियों वाला पौधा बेहतर माना जाता है.

सही समय और सही तरीके से करें रोपाई

पद्मश्री किसान राम सरन वर्मा के अनुसार, केले के पौधों की रोपाई का उचित समय 20 जुलाई तक होता है. खेत तैयार करते समय गोबर की खाद डालना उचित होगा, यह मिट्टी की उर्वरता में सुधार करती है. पौधे से पौधे की दूरी और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 6 फुट होनी चाहिए. यह पर्याप्त जगह प्रदान करता है जिससे पौधा अच्छी तरह विकसित होता है और खेत में आवागमन भी आसान रहता है. रोपण के 13 से 14 महीने में फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है.

ड्रिप सिंचाई से बेहतर पैदावार, कम लागत

आज के समय में पानी की समस्या को देखते हुए ड्रिप सिंचाई (Drip Irrigation) केले की खेती के लिए बेहद अहम हो गई है. महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश में अधिकतर किसान केले की खेती ड्रिप विधि से कर रहे हैं. इस ड्रिप सिंचाई से पानी की 25 से 30 फीसदी तक बचत होती है. उर्वरकों के बेहतर उपयोग को भी सुनिश्चित करती है, जिससे इनपुट लागत में कमी आती है.

केले की फसल में कब और कैसे दें खाद

विशेषज्ञों के अनुसार केला एक लंबी अवधि की फसल है और इसे अच्छी तरह से तैयार करना होता है. एक केले के पौधे को अपने पूरे जीवन चक्र में यूरिया 434 ग्राम, एसएसपी 625 ग्राम, पोटाश (MOP) 500 ग्राम की जरूरत होती है. खाद एक साथ नहीं दी जाती, बल्कि इसे विभाजित खुराकों (स्प्लिट डोज) में दिया जाता है. सबसे पहले यूरिया और फास्फोरस को बेसल खाद के रूप में दें. पहले महीने से 4 महीने तक लगभग 60 ग्राम यूरिया और 125 ग्राम सुपर फॉस्फेट दें. इसके बाद हर महीने लगभग 100 ग्राम यूरिया और पोटाश की खुराक दें. इस प्रकार, पूरे साल खाद दें. पौधा पोषक तत्वों का अच्छी तरह से उपयोग करें, जिससे उत्पादन अधिक और क्वालिटी का केला मिलता है.

केले की खेती में मुनाफे का गणित 

केले की खेती, विशेष रूप से टिश्यू कल्चर पौधों के उपयोग, ड्रिप सिंचाई और उचित खाद और रोग प्रबंधन के साथ प्रति एकड़ 3.5 लाख रुपये तक की शुद्ध आमदनी दे सकती है. 1.20 लाख रुपये प्रति एकड़ के खर्च के साथ, यह एक अधिक लाभदायक खेती है. जानकारी के अभाव में होने वाले नुकसान से बचने के लिए किसानों को पौधा और खेत के चयन में सावधानी बरतनी चाहिए और कृषि विशेषज्ञों की सलाह का पालन करना चाहिए. सुरक्षित और वैज्ञानिक तरीके अपनाकर ही हम केले के उत्पादन को अधिकतम ले सकते हैं.

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