खरीफनामा: देश की प्रमुख फसलों में धान शामिल है, लेकिन धान की खेती में बढ़ती लागत किसानों के लिए बड़ी चिंता का कारण बन कर उभरी है. इसके कई कारण हैं. मजदूर संकट और महंगी मजदूरी ने किसानों की मुश्किलें बढ़ाई है. दरअसल धान की खेती करना किसानों के लिए काफी मेहनत भरा काम होता है. क्योंकि इसके लिए पहले किसान को धान की नर्सरी तैयार करनी होती है और फिर मुख्य खेत में एक-एक पौधे की रोपाई करनी होती है, जिसमें काफी वक्त और पैसा लगता है. अगर बेहतर उपज मिल जाती भी है तो अधिक लागत लगने के कारण धान की खेती में लाभ का दायरा घट जाता है, लेकिन अगर किसान धान की खेती में मशीनों का इस्तेमाल करते हैं तो उनकी राह आसानी हो सकती है. किसान तक की सीरीज खरीफनामा की इस कड़ी में किसानों की राह आसान बनाने वाली मशीन ड्रम सीडर पर पूरी रिपोर्ट..
ड्रम सीडर एक मानव चालित मशीन है. इसके माध्यम से अंकुरित धान की सीधी बुआई की जाती है. ड्रम सीडर के इस्तेमाल से किसान ना सिर्फ अपना समय बचा सकते हैं, बल्कि पैसो की भी बचत होती है. मसलन, जिन क्षेत्रों में बारिश हो रही है तो किसान ड्रम सीडर से धान की बुवाई करके लागत कम कर सकते हैं.
ICAR-RCIR पटना एग्रोनॉमी के प्रमुख कृषि वैज्ञानिक डॉ अनिल कुमार सिंह ने किसान तक से बातचीत में कहा कि अगर किसान रोपाई की जगह छिटकवां विधि (बुवाई के समय बीजों का छिड़काव ) से धान की बुआई करते हैं तो खेत में पौधे एक समान नहीं उगते हैं, जिससे अच्छी उपज भी नहीं मिलती है. वहीं ड्रम सीडर से बुआई करने से बीज एक समान अंकुरित होते हैं, जिससे उपज भी अच्छी मिलती है. इस तकनीक में खेतों में सीधी बुआई की जाती है, जिससे नर्सरी उगाने और रोपाई के काम न होने से पैसे की काफी बचत होती है.
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इस मशीन (पैडी ड्रम सीडर) की कीमत 5000-6000 रुपये है, एक बार इसकी खरीदारी करने पर ये कई सालों तक काम आती है. इसके अलावा बुआई के लिए किसान अपने जिले के कृषि विज्ञान केंद्र व जिला कृषि अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं. वहीं कई जगहों पर किसानों को सरकार से सब्सिडी मिलती है.
ICAR-RCER पटना एग्रोनॉमी के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ पीके सुंदरम ने किसान तक से बातचीत में कहा कि ड्रम सीडर 3-6 प्लास्टिक डब्बों से बनी हुई एक मशीन है. इस पर पास वाले छेदों की संख्या 28 औऱ दूर वाले छेदों की संख्या 14 होती है. छेदों का व्यास 9 मिलीमीटर तक होता है. डब्बों की लंबाई 25 सेंटीमीटर, और व्यास 18 सेंटीमीटर होता है. जमीन से डब्बों की ऊंचाई 18 सेंटीमीटर और एक डब्बे में बीज रखने की क्षमता 1.5-2 किलोग्राम तक होती है. चक्कों का व्यास 60 सेंटीमीटर और चौड़ाई लगभग 6 सेन्टीमीटर होती है. बिना बीज के यंत्र का भार 6-15 किलोग्राम होता है. इस मशीन से एक बार में 6 से लेकर 12 कतार में बीज की बुआई की जाती है.
कृषि वैज्ञानिक डॉ पीके सुंदरम ने किसान तक से बातचीत में कहा कि ड्रम सीडर से अंकुरित धान की सीधी बुआई मानसून आने से पहले ही जून महीने की शुरुआत में ही कर लेनी चाहिए. ऐसा नहीं होने पर अगर मानसून आ जाता है तो खेत में जरूरत से ज्यादा जल भराव होने से धान के बीज का समुचित विकास नहीं हो पाता है. वैसे जून के अंतिम सप्ताह तक इस मशीन से धान की बुआई की जा सकती है. दो आदमी इस मशीन से एक दिन यानी 7-8 घंटे में 2.5 एकड की बुआई कर सकते हैं. इसके लिए बीज को पानी में 12 घंटे के लिए भिगोएं. इसके बाद इसे जूट के बोरे से ढक कर बीज को 24 घंटे के लिए रख कर अंकुरित करें. इस बात का खयाल रखें कि बीज का अंकुरण ज्यादा ना होने पाए. हालांकि बीज को मशीन में डालने से पहले, आधा घंटा छांव में सुखाएं.
कृषि वैज्ञानिक डॉ अनिल कुमार सिंह ने किसान तक से बातचीत में कहा कि ड्रम सीडर से धान की बुआई के लिए मध्यम या नीची जमीन उपयुक्त है. बुआई से एक महीने पहले खेत में गोबर की सड़ी खाद 2 टन प्रति एकड़ की दर से डालें. बुआई से 15 दिन पहले खेत की सिंचाई और कदवा करें, ताकि खरपतवार सड़ जाएं. बुआई के एक दिन पहले खेत को फिर कदवा करें और समतल बना लें. जरूरत से ज्यादा पानी निकाल दें. बुआई के वक्त कदवा किए खेत में पानी जमा नहीं रहना चाहिए. उन्होंने बताया कि ड्रम सीडर से लगाए गए धान में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश क्रमश 32, 16 और 10 किलो की प्रति एकड़ की दर से किस्मों के अनुसार डालें. फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा खेत में पानी निकलने के बाद और अंतिम पाटा चलाने से पहले डालें. नाइट्रोजन की आधी मात्रा 10 दिन के बाद और बाक़ी आधी मात्रा दो बराबर हिस्सों में बांटकर कल्ले फूटने और बाली निकलने पर डालें.
कृषि वैज्ञानिक डॉ अनिल कुमार सिंह ने किसान तक से बातचीत में कहा कि ड्रम सीडर से बुवाई कम लागत में हो जाती है और इससे अधिक उपज मिलती है. तो वहीं बुवाई में प्रति एकड़ कम आदमी की जरूरत होती है. इसी तरह नर्सरी के लिए खेत के तैयारी की जरूरत नहीं होती है और कम सिंचाई की जरूरत होती है. उन्होंने बताया कि छिटकवां विधि की तुलना में 15 फीसदी ज्यादा उपज की प्राप्ति इससे होती है. इसी तरह बीज को कतार से बोने की सुविधा मिल जाती है. इससे अच्छी फसल की बढ़वार होती है. वहीं पंक्ति में बोने से खर पतवार का नियंत्रण कोनो वीडर द्वारा किया जा सकता है, जबकि फसल रोपे गए धान से 10 दिन पहले पक जाती है, बीज की बचत होती है.
कृषि वैज्ञानिक डॉ पीके सुंदरम के किसान तक से बातचीत में कहा कि जहां पारम्परिक तरीके से धान लगाने के लिए 20-25 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज की जरुरत पड़ती है, वहीं ड्रम सीडर द्वारा बुआई में 10-12 किलोग्राम प्रति एकड़ की जरुरत होती है. उन्होंने कहा कि पांरपरिक तरीके से धान की रोपनी में मजदूरी का खर्च करीब 3000 रुपया प्रति एकड़ आता है. वहीं ड्रम सीडर द्वारा करीब 400 रुपया आता है. वहीं ड्रम सीडर द्वारा धान लगाने से कम से कम एक पटवन (पानी) की बचत होती है, जबकि समय पर धान की रोपनी होने से धान की कटाई भी समय पर हो जाती है , जिससे की अगली फसल समय पर लगाया जा सकता है. इससे पुरे फसल चक्र में भी फसल उत्पादन बढ़ता है.
कृषि वैज्ञानिक डॉ पीके सुंदरम ने कहा कि ड्रम सीडर के डब्बों को किसी हालत में दो तिहाई से ज्यादा ना भरें. ज्यादा भरने से मशीन के छेद से बीज ठीक से नहीं निकल पाते हैं. जब ड्रम अपनी क्षमता के 1/4 भाग तक पहुंच जाए तो उसमें फिर से बीज भर दें और कार्य जारी रखें. ड्रम के छिद्रों और ढक्कन पर निरंतर निगरानी रखनी चाहिए. जिससे की बीज आसानी से गिरते रहे.