'सब्जियों की खेती में नहीं होगी कीटों की एंट्री', IIVR वाराणसी के वैज्ञानिकों ने उठाया ये बड़ा कदम

'सब्जियों की खेती में नहीं होगी कीटों की एंट्री', IIVR वाराणसी के वैज्ञानिकों ने उठाया ये बड़ा कदम

Varanasi News: प्रधान वैज्ञानिक डॉ. गोविन्द पाल ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि ड्रोन से निकलने वाली दवाओं की सूक्ष्म बूंदें अत्यंत बारीकी से पूरे खेत में फैल जाती हैं. इससे फसल पर रोग और कीटों का असर शीघ्र नियंत्रित किया जा सकता है. उन्होंने इसे खेती के भविष्य के लिए अत्यंत आवश्यक और उपयोगी तकनीक बताया.

भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान ने एक और उपलब्धि की ओर कदम बढ़ा लिया है.भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान ने एक और उपलब्धि की ओर कदम बढ़ा लिया है.
नवीन लाल सूरी
  • LUCKNOW,
  • Sep 09, 2025,
  • Updated Sep 09, 2025, 9:34 AM IST

भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (आईआईवीआर) वाराणसी ने एक बड़ी पहल की है. संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा पनियारा गांव की फसलों पर ड्रोन तकनीक के माध्यम से कीटनाशक एवं पोषक तत्वों का छिड़काव किया है. संस्थान की यह पहल गांव स्तर पर आधुनिक कृषि तकनीकों के प्रचार-प्रसार की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम मानी जा रही है. आपको बता दें कि आईआईवीआर की स्थापना से लेकर अब तक कुल 138 सब्जी प्रजातियों को मंजूरी मिल चुकी है. यह संस्थान की उल्लेखनीय उपलब्धि है. साथ ही किसानों के लिए गुणवत्तापूर्ण बीजों की उपलब्धता सुनिश्चित करने में मदद कर रही है.

इस अवसर पर प्रधान वैज्ञानिक एवं विभागाध्यक्ष, फसल उत्पादन विभाग डॉ. अनंत बहादुर ने बताया कि पारंपरिक तरीके से जहां एक एकड़ खेत में छिड़काव करने में कई घंटे लग जाते हैं, वहीं ड्रोन के माध्यम से यह कार्य कुछ ही मिनटों में पूरा हो जाता है.

उन्होंने बताया कि इससे न केवल समय और श्रम की बचत होती है, बल्कि दवाओं का समान एवं सटीक वितरण भी सुनिश्चित होता है. परिणामस्वरूप फसलों पर रोग एवं कीट नियंत्रण अधिक प्रभावी ढंग से संभव हो पाता है तथा उत्पादकता और गुणवत्ता दोनों में सुधार होता है. डॉ. अनंत बहादुर ने आगे कहा कि ड्रोन तकनीक खेती में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है, जो किसानों की लागत घटाने और श्रम समस्या के समाधान में सहायक है.

वहीं, प्रधान वैज्ञानिक डॉ. गोविन्द पाल ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि ड्रोन से निकलने वाली दवाओं की सूक्ष्म बूंदें अत्यंत बारीकी से पूरे खेत में फैल जाती हैं. इससे फसल पर रोग और कीटों का असर शीघ्र नियंत्रित किया जा सकता है. उन्होंने इसे खेती के भविष्य के लिए अत्यंत आवश्यक और उपयोगी तकनीक बताया.

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