आमतौर पर मधुमक्खियों को हम उनक मीठे शहद के लिए जानते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन छोटे जीवों के पास एक और अनमोल खजाना छिपा है? यह है मधुमक्खी के डंक का जहर, जिसे बी-वेनम भी कहा जाता है. हैरान करने वाली बात यह है कि ये ज़हर शहद से कहीं गुना ज़्यादा कीमती है और आपकी आय को कई गुना बढ़ा सकता है. इसकी अधिक कीमत, बढ़ती मांग और अनगिनत औषधीय उपयोगों के कारण यह क्षेत्र किसानों और उद्यमियों के लिए एक नई राह खोल रहा है. अगर सही ज्ञान, आधुनिक तकनीक और धैर्य के साथ इस कार्य को किया जाए, तो यह छोटा सा जीव आपको करोड़पति बनने का भी साधन बन सकता है.
मधुमक्खी का ज़हर एक प्राकृतिक तरल है जो मधुमक्खियों के डंक से निकलता है. यह कई जटिल तत्व जिनमें मेलिटिन, एपामिन, हिस्टामीन, हाइलूरोनिडेस, फॉस्फोलिपेज-ए2 और एमसीडी पेप्टाइड जैसे जैव सक्रिय तत्व शामिल हैं. इन्हीं तत्वों के कारण बी-वेनम औषधीय गुणों से भरपूर होता है. बी वेनम की मांग वैश्विक बाज़ारों में तेज़ी से बढ़ रही है. एक ग्राम मधुमक्खी के ज़हर की कीमत ₹30,000 से ₹1,00,000 तक हो सकती है, जो इसे सोने से भी ज़्यादा मूल्यवान बनाता है. इसकी इतनी ऊंची कीमत का कारण इसके अद्भुत औषधीय गुण हैं, जिनका उपयोग कई गंभीर बीमारियों के इलाज में किया जाता है. वर्तमान में बी-वेनम का वैश्विक व्यापार 378 करोड़ अमेरिकी डॉलर से भी अधिक है और यह आंकड़ा हर साल बढ़ता जा रहा है.
आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय अयोध्या एसोसिएट प्रोफेसर और मधुमक्खी पालन विशेषज्ञ डॉ. आर, पी. सिंह का कहना है कि मधुमक्खी के शरीर में एक विशेष ग्रंथि होती है जो ज़हर उत्पन्न करती है. यह ज़हर मुख्य रूप से आत्मरक्षा के लिए होता है, लेकिन मनुष्यों के लिए यह एक शक्तिशाली औषधि के रूप में काम करता है. कई शोधों में यह साबित हो चुका है कि मधुमक्खी का ज़हर कई बीमारियों के इलाज में सहायक हो सकता है. गठिया, मल्टीपल, स्केलेरोसिस, ल्यूपस, पीठ दर्द और मांसपेशियों का खिंचाव, टेनिस एल्बो और न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर्स के इलाज में इसका उपयोग होता है.
डॉ. आर, पी. सिंह के अनुसार बी-वेनम निकालने के लिए एक विशेष उपकरण का उपयोग किया जाता है जिसे बी-वेनम कलेक्शन डिवाइस कहते हैं. इस उपकरण में एक ग्लास प्लेट लगी होती है, जिस पर हल्की विद्युत तरंगें प्रवाहित की जाती हैं. जब मधुमक्खियां इस प्लेट के संपर्क में आती हैं, तो वे डंक मारती हैं और जहर छोड़ देती हैं. यह ज़हर प्लेट पर जमा हो जाता है, जिसे बाद में इकट्ठा कर लिया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया में मधुमक्खियों को मारा नहीं जाता, जिससे वे जीवित रहती हैं और शहद तथा अन्य उत्पादों का उत्पादन जारी रखती हैं.
गोरखपुर के प्रगतिशील मधुमक्खी पालक राजू सिंह ने बताया कि भारत में ऐपीथेरेपी नामक चिकित्सा पद्धति में मधुमक्खी के ज़हर का उपयोग सदियों से किया जा रहा है. यह प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में और पहले से होती रही है. उन्होंने बताया हमारे पास बहुत से गठिया के बीमारी से ग्रसित लोग आते हैं. गठिया से ग्रसित लोग मधुमक्खी से अपने शरीर में डंक मरवाते हैं, जिससे उन्हें गठिया के दर्द में आराम मिलता है. उन्होंने बताया कि मधुमक्खी पालन और बी-वेनम उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं. हमारे देश की विविध जलवायु और फूलों की प्रचुरता इस उद्योग के विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियां प्रदान करती हैं. सरकार भी इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है, जैसे राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन एवं शहद मिशन (NBHM), जिसके तहत किसानों को प्रशिक्षण और जरूरी उपकरणों के लिए सहायता प्रदान की जाती है.
अगर आप मधुमक्खी पालन के साथ-साथ बी-वेनम उत्पादन शुरू करने की सोच रहे हैं, तो कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है. यह कार्य केवल प्रशिक्षित व्यक्तियों की देखरेख में ही करें. मधुमक्खी पालने की तकनीक और उनके व्यवहार की पूरी जानकारी रखें. ज़हर निकालने के उपकरणों का सही तरीके से उपयोग करना सीखें. स्थानीय कृषि विभाग या कृषि विश्वविद्यालयों से जानकारी प्राप्त करें.
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