ब‍ीकानेर में क‍िसान ने ब‍िना म‍िट्टी उगाई घास, अब साल भर पशुओं को ख‍िला रहा हरा चारा

ब‍ीकानेर में क‍िसान ने ब‍िना म‍िट्टी उगाई घास, अब साल भर पशुओं को ख‍िला रहा हरा चारा

क्या कोई घास बिना मिट्टी के लगाई जा सकती है? जवाब है हां. बिना मिट्टी के घास लगाने के तरीके को कहते हैं हाइड्रोपॉनिक सिस्टम. इस हाइड्रोपॉनिक सिस्टम से टैरिस गार्डन में सब्जी उगती हुई हम सबने देखी होंगी, लेकिन बीकानेर जिले के बज्जू में बेरासर गांव में एक किसान ने घर में हाइड्रोपॉनिक सिस्टम से घास उगाना शुरू किया है.

हाइड्रोपॉनिक तकनीक से पुरखाराम ने उगाई है घर में घास. फोटो- सनप्रीत सिंहहाइड्रोपॉनिक तकनीक से पुरखाराम ने उगाई है घर में घास. फोटो- सनप्रीत सिंह
माधव शर्मा
  • Jaipur,
  • Feb 17, 2023,
  • Updated Feb 17, 2023, 11:29 AM IST

क्या कोई घास बिना मिट्टी के लगाई जा सकती है? जवाब है हां... बिना मिट्टी के घास लगाने के तरीके को हाइड्रोपॉनिक सिस्टम कहते हैं. इस हाइड्रोपॉनिक सिस्टम से टैरिस गार्डन में सब्जी उगती हुई हम सबने देखी होंगी. लेकिन, बीकानेर जिले के बज्जू में बेरासर गांव में एक किसान ने घर में हाइड्रोपॉनिक सिस्टम से घास उगाना शुरू किया है. इससे उनकी हरे चारे की समस्या खत्म हो गई. अब वे सालभर हरा चारा अपनी मवेशियों को खिला रहे हैं. ज‍िससे उन्हें दोहरा फायदा म‍िल रहा है. एक तरफ जहां हरे चारे के इंतजाम के झंझट से मुक्त‍ि म‍िली है. वहीं साल भर हरा चारा मि‍लने से मवेशी भी अध‍िक दूध दे रहे हैं.  

ऐसे शुरू हुआ  क‍िसान पुरखाराम का सफर  

बीकानेर जिले की बज्जू तहसील में बेरासर गांव में रहने वाले इस किसान पुरखाराम की ढाणी में किसान तक पहुंचा. पुरखाराम ने अपने बुजुर्गों की खेती के जमीन पर घर बनाकर रह रहे हैं. इनके 19 बीघा खेती है और 11 मवेशी हैं. इनमें 10 गाय और एक बैल है. 19 बीघा खेती में से 15 बीघा चना और चार बीघा में गेहूं उगा रखे हैं. यह पूरी खेती ऑर्गेनिक है. 

पुरखाराम बताते हैं क‍ि पहले मुझे गायों को हरा चारा खिलाने में काफी परेशानी आती थी. क्योंकि सालभर हरा चारा हमारे रेगिस्तानी क्षेत्र में पैदा नहीं होता. वहीं, यहां से निकल रही नहर में भी कई बार गर्मियों में पानी की बंदी कर दी जाती है. इसलिए सिर्फ बरसात के दिनों में ही पशुओं को हरी घास नसीब हो पाती है. वहीं, अगर हम अपने खेतों में हरा चारा उगाएं तो फिर मुख्य फसलों के लिए जोत कम हो जाती है.” 

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वे आगे जोड़ते हैं क‍ि हमारे बज्जू क्षेत्र में उरमूल सीमांत समिति काफी लंबे समय से डेयरी संबंधित काम कर रही है. उन्होंने फिर  हाइड्रोपॉनिक तकनीक की जानकारी दी और इस तकनीक के बारे में ट्रेनिंग भी दिलाई गई. पुरखाराम बताते हैं क‍ि ट्रेनिंग के बाद उन्होंने अपने घर में ही पूरा सिस्टम लगवा लिया, ज‍िसे देखकर अब घर के अन्य सदस्य भी इसे चलाना सीख गए हैं. क्योंकि इसे सीखना बेहद आसान है. 

15 दिन में तैयार हो जाती है घास

पुरखाराम कहते हैं क‍ि हाइड्रोपॉनिक में हम फिलहाल चारा उगा रहे हैं. इसमें गेहूं को एक रात पहले बोरी में भिगोकर रख देते हैं. फिर अगले दिन ट्रे में रखकर उसमें हर रोज ड्रिप सिस्टम से पानी दिया जाता है. 24 घंटे बाद ही यह अंकुरित होने लगता है. एक प्लेट या ट्रे में 400-500 ग्राम तक गेहूं होता है. मेरे पास 32 ट्रे हैं. इस तरह एक बार में 16 किलो गेहूं से मैं घास बनाता हूं. 15 दिन में 6-7 इंच ऊंचाई तक घास बड़ी हो जाती है.

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घास तैयार हो जाने पर एक ट्रे में पांच किलो तक घास तैयार हो जाती है. गाय इस घास को बहुत ही चाव से खाती हैं. इसके साथ ही गेहूं की घास की जड़ों को भी पशु खाते हैं. इस तरह इस घास की जड़ भी काम में आती है. यह काफी पौष्टिक होती है. इससे दूध की मात्रा बढ़ती है.”

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दूध बढ़ा तो बढ़ी आमदनी

इस घास को पशु सालभर तक हरा घास खाते हैं. पुरखाराम बताते हैं कि घास के खाने से मेरी गायों का एक लीटर तक दूध बढ़ा है. इससे हमारी आमदनी भी बढ़ी है. क्योंकि पहले जो हम पशु आहार खिलाते थे, अब उसमें कमी आई है. साथ ही गेहूं हमारे खेत में पैदा होते हैं तो उसी में से हम हरा चारा बना लेते हैं. 

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