लोकसभा चुनाव के दो फेज की वोटिंग के बाद अनुमान लगाया जा रहा है कि इस साल का चुनाव ना केवल सबसे खर्चीला होगा बल्कि इस बार 2019 के चुनाव के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा रकम खर्च हो सकती है. पहले 2 फेज में जिस तरह से प्रत्याशियों ने खर्च किया है उसे देखते हुए बाकी बचे 5 फेज में भी अनुमान से ज्यादा खर्च होने की संभावना है.
चुनावों में होने वाले खर्च पर बीते करीब 35 साल से नजर रखने वाले NGO संगठन सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज यानी CMS के मुताबिक इस लोकसभा चुनाव में अनुमानित खर्च 1.35 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है. जबकि, 2019 में लोकसभा चुनावों में करीब 60 हजार करोड़ रुपये खर्च किए गए थे. इस खर्च में राजनीतिक दलों और संगठनों, उम्मीदवारों, सरकार और निर्वाचन आयोग समेत चुनावों से जुड़ा हुआ हर तरह का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष खर्च शामिल है.
इसके पहले CMS ने 2024 के लोकसभा चुनावों में 1.2 लाख करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया था. लेकिन पहले फेज में जिस तरह से चुनाव से जुड़ी हर गतिविधि पर खर्च बढ़ा है उससे अनुमान है कि इस बार चुनावों में कुल 1.35 लाख करोड़ रुपये खर्च हो सकते हैं.
अधिक खर्च की कई वजहें बताई जा रही हैं, जिसके तहत चुनावों में नेता घर घर जाकर प्रचार करने की जगह पब्लिक मीटिंग्स वगैरह को प्राथमिकता देते हैं जिसमें ज्यादा रकम खर्च होती है. ऐसे में 2014 से चुनावी खर्च काफी तेजी से बढ़ रहा है क्योंकि अब कार्यकर्ताओं पर ज्यादा रकम खर्च की जाती है. अगर नेता स्थानीय नहीं है और बाहरी है तो फिर खर्च काफी ज्यादा बढ़ जाता है.
CMS के मुताबिक चुनाव के ऐलान से पहले ही खर्चे होने शुरू हो जाते हैं. इनमें राजनीतिक रैलियों, ट्रांसपोर्ट, कार्यकर्ताओं की हायरिंग पर बड़ी रकम खर्च की जाती है. चुनावों के मैनेजमेंट के लिए इलेक्शन कमीशन का बजट कुल खर्च अनुमान का 15 परसेंट तक होने का अनुमान है. वहीं, भारत में 96.6 करोड़ मतदाताओं के साथ, प्रति मतदाता खर्च करीब 1400 रुपये होने का अनुमान है. यही नहीं अक्सर पार्टियां चुनाव आयोग को कम खर्च दिखाती हैं जबकि असल खर्च काफी ज्यादा होता है.
ऐसे में माना जा रहा है कि 2024 का भारत का आम चुनाव दुनिया के अबतक के सबसे महंगे चुनावों में से एक हो सकता है. (आदित्य के राणा)