उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानो के लिए सर दर्द बना पायरिला (Pyrilla) और टॉप बोरर कीट (Top borer pest) यानी अगोला बेधक कीट ने गन्ना किसानो की नींद हराम कर दी है. इसी क्रम में प्रदेश के गन्ना एवं चीनी आयुक्त प्रमोद कुमार उपाध्याय ने तत्काल वैज्ञानिकों की टीम गठित कर सत्यापन कराने के निर्देश जारी किए है. उन्होंने बताया कि प्रदेश की पेड़ी गन्ने एवं शरदकालीन बुआई के तहत बोई गई पौधा फसल में टॉप बोरर, पायरिला व अन्य कीटों तथा लाल सड़न, बिल्ट, पोक्का बोइंग आदि रोगों के बचाव व प्रभावी नियंत्रण हेतु त्रिस्तरीय टीम का गठन किया गया है.
प्रमोद कुमार उपाध्याय ने बताया कि परिक्षेत्रीय उप गन्ना आयुक्त अपने-अपने परिक्षेत्र हेतु गठित टीमों से समन्वय कर, परिक्षेत्र के प्रभावित क्षेत्रों का भ्रमण करेंगे और गठित टीमें अपने-अपने क्षेत्र में स्थलीय भ्रमण कर टॉप बोरर, पायरिला व अन्य कीटों तथा लाल सड़न, बिल्ट, पोक्का बोइंग आदि रोगों के बचाव व प्रभावी नियंत्रण के लिए 15 दिन के अंदर अपनी संस्तुति रिपोर्ट विभाग को भेजेंगे. उन्होंने बताया कि वैज्ञानिक संस्तुतियों के बाद रोग कीटों के प्रभावी नियंत्रण हेतु सभी आवश्यक कदम उठाये जाएंगे. आमतौर पर यह कीट अप्रैल से शुरू हो जाता है और सितंबर तक चलता है.
गन्ना एवं चीनी आयुक्त प्रमोद कुमार उपाध्याय बताते हैं कि टॉप बोरर के पहली और दूसरी स्टेज ब्रूड का समय है, इसी प्रकार पायरिला का भी असर देखा जा रहा है, इसके साथ उसका परजीवी कीट भी दिखाई दे रहा है और प्रभावी नियंत्रण इसके परजीवी कीट द्वारा हो सकता है जो स्वाभाविक रूप से पायरिला के साथ-साथ ही खेत में आ जाता है. वर्तमान समय में इनके उपचार के लिए भौतिक विधियां जैसे-लाइट एवं फैरोमोनट्रैप, रोगी पौधों को उखाड़कर नष्ट करना एवं प्रभावित पत्तियों को तोड़कर नष्ट करना ट्राइको कार्ड लगाकर जैसे उपायों को अपनाकर फसल को काफी हद तक बचाया जा सकता है.
लेकिन इनका कीटों का प्रभाव अधिक होने तथा परजीवी कीट,ट्राइको कार्ड की पर्याप्त उपलब्धता नहीं होने पर रासायनिक नियंत्रण आवश्यक हो जाता है. इसलिए गन्ना किसानों की फसल के रोग कीटों से समय रहते बचाव और नियंत्रण तथा अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए तत्काल वैज्ञानिकों की टीम गठित कर सत्यापन कराया जाएगा. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल में यह कीट तेजी से फैल रहा है और किसान परेशान हैं. कीट का प्रकोप वैरायटी को-0238 में अधिक होता है और जिले में 95 फीसद से अधिक फसल इसी वैरायटी की है. कीट का प्रकोप बढ़ने पर उत्पादन और गुणवत्ता प्रभावित होती ही है.
गन्ना एवं चीनी आयुक्त ने कहा, इन कीड़ों के गन्ने में लगने का कारण यह कि किसान फसल तैयार होने के बाद फसल को पूर्ण रूप से खत्म नहीं करते हैं. दूसरी फसल लेने के लिए जड़ों को छोड़ देते हैं इसलिए इस कीड़े की यह तीसरी पीढ़ी है. यह गन्ने की जड़ों में रह जाती है और एक बार फिर गन्ने की फसल पर काबिज हो जाती है. दूसरी वजह यह है कि किसान गन्ने के खेत की साफ सफाई नहीं करते हैं. बहुत संख्या में पत्तियां और खरपतवार होने के कारण भी यह कीड़ा आसानी से गन्ने में लग जाता है.
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