सरसों की इन खास प्रजातियों से ज्यादा होगा तेल का उत्पादन, जानिए कब से मिलेगा बीज, यहां पढ़ें पूरी डिटेल

सरसों की इन खास प्रजातियों से ज्यादा होगा तेल का उत्पादन, जानिए कब से मिलेगा बीज, यहां पढ़ें पूरी डिटेल

Mustard Farming: डॉ महक सिंह कहते हैं कि सरसों का तेल स्वास्थ टानिक के रूप में, रक्त निर्माण में योगदान, स्वास्थ ह्रदय, मधुमेह पर नियंत्रण, कैंसर प्रतियोगी, जीवाणु फफूंदी प्रतिरोधी, ठंड और खांसी निवारक, जोड़ों के दर्द और घटिया उपचार तथा अस्थमा निवारक के रूप में प्रयोग किया जाता है. 

बढ़िया उपज और बंपर मुनाफे के लिए करें सरसों की बुवाई (Photo-Kisan Tak)बढ़िया उपज और बंपर मुनाफे के लिए करें सरसों की बुवाई (Photo-Kisan Tak)
नवीन लाल सूरी
  • Lucknow,
  • Oct 14, 2024,
  • Updated Oct 14, 2024, 5:22 PM IST

सात फीसदी अधिक तेल देने वाली सरसों की नई प्रजातियां आने वाले दिनों में किसानों को मालामाल कर देगी. इस प्रजाति में सिर्फ तेल की मात्रा ही अधिक नहीं है, बल्कि 7.81 फीसदी अधिक पैदावार भी होगी. मामले में कानपुर के चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) के तिलहन अनुभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ महक सिंह ने बताया कि राई सरसों महत्वपूर्ण फसल है. उन्होंने बताया की राष्ट्रीय कृषि अर्थव्यवस्था में तिलहनी फसलों का द्वितीय स्थान है. 

पीली सरसों में पीतांबरी प्रमुख प्रजाति

डॉ सिंह ने आगे बताया कि वैश्विक स्तर पर कनाडा और चीन के बाद भारत तीसरा मुख्य सरसों उत्पादक एवं सातवां सरसों के तेल का निर्यातक देश है. उत्तर प्रदेश में राई-सरसों का कुल क्षेत्रफल लगभग 7.53 लाख हेक्टेयर तथा कुल उत्पादन लगभग 11.53 लाख मैट्रिक टन है. विश्वविद्यालय द्वारा विकसित सरसों की प्रमुख प्रजातियां जैसे वरुणा, वैभव, रोहिणी, माया, कांति, वरदान, आशीर्वाद एवं बसंती हैं. जबकि पीली सरसों में पीतांबरी प्रमुख प्रजाति है.

बंपर मुनाफे के लिए करें सरसों की बुवाई

डॉ महक सिंह बताते हैं कि विश्वविद्यालय द्वारा राई की आजाद महक एवं सरसों की आजाद चेतना, गोवर्धन जैसी नवीन प्रजातियों का विकास किया गया है. जबकि वरुणा तथा वैभव जैसी प्रजातियां अर्ध शुष्क दशा में बुवाई के लिए उत्तम होती हैं. उन्होंने कहा कि बुवाई के लिए अक्टूबर माह का समय उचित रहता है, तथा विलंब की दशा में 1 नवंबर से 25 नवंबर उत्तम  रहता हैं.

वरुणा प्रजाति का दाना मोटा और तेल की मात्रा अधिक

डॉ सिंह ने बताया कि वैसे तो विश्वविद्यालय द्वारा विकसित राई सरसों की प्रजातियां पूरे देश में उगाई जा रही हैं. वहीं वरुणा प्रजाति सिंचित एवं असिंचित दोनों दशाओं के लिए संस्तुति है साथ ही साथ बदलती हुई जलवायु में तापक्रम के प्रति सहिष्णु हैं. अन्य प्रजातियों की तुलना में रोग व्याधियों कम लगती हैं. उन्होंने बताया कि वरुणा प्रजाति का दाना मोटा एवं तेल की मात्रा अधिक 39 से 41.8% होती है. सरसों के तेल का मानव स्वास्थ्य को कई प्रकार से लाभ पहुंचाता है.

पशुओं के चारा के लिए भी फायदेमंद

डॉ महक सिंह कहते हैं कि सरसों का तेल स्वास्थ टानिक के रूप में, रक्त निर्माण में योगदान, स्वास्थ ह्रदय, मधुमेह पर नियंत्रण, कैंसर प्रतियोगी, जीवाणु फफूंदी प्रतिरोधी, ठंड और खांसी निवारक, जोड़ों के दर्द और घटिया उपचार तथा अस्थमा निवारक के रूप में प्रयोग किया जाता है. उन्होंने बताया की सरसों से निकलने वाले आवशिष्ठ ठोस पदार्थ को खली कहते हैं खली में 38 से 40% प्रोटीन पाया जाता है जो कि पशु आहार में प्रयोग करते हैं जिससे कि पशुओं को लाभ होता है. बता दें कि सरसों को रबी की सबसे महत्वपूर्ण फसलों में माना जाता है.  

इतनी होगी उपज

अगर आप सरसों की खेती कर रहे हैं. इस दौरान जलवायु ठीक-ठाक रहती . किसी तरह की प्राकृतिक आपदा का संकट नहीं आता है. फसल रोग और खरपतवार मुक्त रहती है तो इससे 25-30 क्विंटल प्रति हैक्टर तक उत्पादन लिया जा सकता हैं.

 

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