उत्तर प्रदेश सरकार अब पंजाब और हरियाणा के बाद धान की जगह मक्का की खेती बढ़ाने पर जोर दे रही है. राज्य सरकार का लक्ष्य 2027 तक मक्का का उत्पादन दोगुना कर 27.30 लाख मीट्रिक टन तक पहुंचाने का है. इस लक्ष्य को पाने के लिए "त्वरित मक्का विकास योजना" के तहत न केवल मक्का के रकबे में वृद्धि की जाएगी, बल्कि प्रति हेक्टेयर उत्पादन को भी बढ़ावा दिया जाएगा. वित्तीय वर्ष 2023-2024 में इस योजना के लिए 27.68 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है.
गंगा मैदानी राज्यों में धान आधारित फसल का प्रचलन है. धान के उत्पादन के लिए सिंचाई जल की जरूरत होती है, जिससे भूजल का अधिक दोहन होता है. धान-गेहूं फसल चक्र की वजह से अधिक रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और पानी के उपयोग से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में उपजाऊ भूमि के ऊसर भूमि बनने का खतरा बढ़ गया है. धान की खेती के लिए बुहुत अधिक सिंचाई जल की जरूरत होती है, जिससे भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है.
धान की खेती से कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी गैसों का उत्सर्जन होता है, जो ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देती हैं. इन समस्याओं के समाधान के रूप में मक्का एक बेहतर विकल्प के रूप में उभर रहा है. दूसरी तरफ धान की तुलना में आधे से भी कम सिंचाई जल की जरूरत होती है. इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सरकारें अब धान की तुलना में मक्का को अधिक प्राथमिकता दे रही हैं, क्योंकि धान-गेहूं फसल चक्र वाले क्षेत्रों के लिए मक्का की खेती लंबे समय के लिए बेहतर विकल्प हो सकता है.
हरित क्रांति से पहले मक्का की वृद्धि दर धान से अधिक थी, लेकिन हरित क्रांति के बाद मक्का की खेती का प्रभाव कम हो गया. कर्नाटक के केंद्रीय विश्वविद्यालय कलबुर्गी के स्कूल ऑफ बिजनेस स्टडीज के आर्थिक अध्ययन के अनुसार हरित क्रांति से पहले मक्का का संयोजित वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) धान और गेहूं से अधिक था, जो कि 6.39 फीसदी था. लेकिन हरित क्रांति के बाद यह प्रवृत्ति बदल गई, क्योंकि यह मुख्य रूप से गेहूं और धान उत्पादन पर केंद्रित थी. 1966 से 1991 के बीच, मक्का का क्षेत्र 1.17 लाख हेक्टेयर प्रति वर्ष की दर से बढ़ा, जबकि धान का क्षेत्र 2 लाख हेक्टेयर बढ़ा. लेकिन, 1991 के बाद घरेलू और निर्यात बाजारों में मक्के की मांग में तेजी आई और किसान इस फसल को तेजी से अपनाने लगे.
खरीफ की मक्के की बात करें तो 2023 के आंकड़ों के अनुसार धान की खेती लगभग 412 लाख हेक्टेयर में की गई थी, जबकि खरीफ मक्के की खेती केवल 86 लाख हेक्टेयर में की गई थी. सिंचाई सुविधाओं के बढ़ने से अन्य फसलों की जगह पर धान की खेती ने अपनी जगह बना ली, लेकिन पर्यावरण और किसानों की आय के दृष्टिकोण से मध्यम और ऊंचे भूमि क्षेत्रों में धान की जगह मक्का की खेती एक बेहतर विकल्प हो सकती है. यह फसल हर जगह उगाई जा सकती है और विभिन्न पारिस्थितिक स्थितियों के अनुकूल होती है.
मक्के की खाद्य और चारे के विभिन्न उपयोगों के कारण इसकी मांग 21वीं सदी में काफी बढ़ी है. मक्का को कम खाद, पानी और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से अधिक दाम मिलने के कारण, यह फसल हर दृष्टि से धान की खेती से बेहतर है. मक्का का उत्पादन 2023-24 में 33.21 कुंतल प्रति हेक्टेयर था, जबकि धान का 28.73 कुंतल प्रति हेक्टेयर था. इस प्रकार मक्का की पैदावार धान की तुलना में 4.52 कुंतल अधिक है. उत्पादन लागत की बात करें तो 2022-23 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मक्का की प्रति कुंतल उत्पादन लागत 1308 रुपए है, उत्पादन लागत की बात करें धान की 1360 रुपए है. मक्का की बढ़ती मांग के कारण मंडियों में इसके भाव MSP से ऊपर चल रहे हैं, केंद्र सरकार ने मक्का का MSP 2023-24 फसल सीजन के लिए 2090 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया है. देश की विभिन्न मंडियों में मक्का का भाव 2300 रुपए प्रति क्विंटल के आसपास चल रहा जो इसे एक मुनाफे की फसल बनाता है.
वहीं, 2010-11 से 2020-21 के बीच मक्का के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में वार्षिक वृद्धि दर चावल और गेहूं की तुलना में अधिक रही, जो कि 7 फीसदी थी जबकि चावल की 6.01 फीसदी और गेहूं की 5.30 फीसदी थी. देश के अधिकांश राज्यों में मक्का हर जलवायु में उपयुक्त है और इसे तीनों मौसमों में उगाया जा सकता है. इसमें पराली की समस्या जैसी भी नहीं होती वहीं विपरीत, मक्का धान की तुलना में कम सिंचाई जल के साथ अधिक उत्पादन दे सकता है जहां पानी की कमी है और ऊंचे भूमि क्षेत्र हैं. इससे किसान पानी और पराली की समस्या से निजात पा सकते हैं और कम उंचे और मध्यम जमीन में लागत में प्रति एकड़ बेहतर आय कमा सकते हैं.
मक्का की इस तेजी का कारण यह है कि इसे पशुधन, मुर्गीपालन, और मछली पालन क्षेत्र में आहार के रूप में और प्रसंस्करण उद्योगों में बड़े पैमाने पर उपयोग में लिया जाता है. दूसरी और इथेनॉल बनाने से मक्का की कीमतों में तेजी आई है. भारत में इस फसल की मांग हर साल बढ़ रही है और भविष्य में भी खान-पान की बदलती आदतों के कारण इसकी मांग और अधिक बढ़ने के आसार हैं. शहरी क्षेत्रों में मक्का की बेबी कॉर्न, स्वीट कॉर्न, पॉप कॉर्न आदि का समावेश एक लाभदायक और व्यावहारिक विकल्प है जो किसानों की आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित करता है.
मक्का उत्पादन में अमेरिका सबसे आगे है, जो वैश्विक उत्पादन का 30 फीसदी हिस्सा करता है. इसके बाद चीन, ब्राजील,अर्जेंटीना और यूक्रेन का स्थान आता है, जो वैश्विक मक्का उत्पादन का 71 फीसदी हिस्सा करते हैं. भारत दुनिया का छठा सबसे बड़ा मक्का उत्पादक है, जो वैश्विक उत्पादन का 2.71फीसदी करता है.
भारतीय जलवायु परिस्थितियों के कारण मक्का को तीनों मौसमों में उगाया जा सकता है. उत्तर भारत के राज्यों में मक्का की खेती को बढ़ावा दिया जाए, तो कई तरह की समस्याओं का समाधान हो सकता है. इसके लिए कुछ क्षेत्रों में कार्य करने की जरूरत है, जैसे मक्का के मूल्यवर्धित उत्पादों की उत्पादन इकाइयों को क्लस्टर स्तर पर स्थापित करना, कटाई के बाद प्रबंधन के लिए मक्का ड्रायर का उपयोग बढ़ाना और भारत की निर्यात क्षमता का उपयोग करना. भारत मुख्य आयातक देशों जैसे बांग्लादेश अरब देश जापान, कोरिया भारत के निकट है, जबकि अमेरिका, ब्राजील और अर्जेंटीना काफी दूर हैं, जिससे भारत के लिए मक्का का निर्यात एक बड़ा अवसर हो सकता है.