सोयाबीन एक प्रमुख तिलहन फसल है. इसकी खेती सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में होती है. यह राज्य के प्रमुख खरीफ फसलों में से एक है. वर्तमान में सोयाबीन का इस्तेमाल सिर्फ खाने का तेल निकालने के लिए ही नही हो रहा बल्कि इससे कई अन्य उत्पाद जैसे सोया दूध, सोया पनीर, इत्यादि बनाए और इस्तेमाल किए जा रहे हैं जो कि स्वास्थ्य की लिए काफी फायदे मंद माने जा रहे हैं. लेकिन इस साल इसका किसानों को काफी कम दाम मिल रहा है, जिससे वो निराश हैं. अब कृषि वैज्ञानिक कह रहे हैं कि ज्यादा पैदावार होगी तो ज्यादा कमाई होगी. इसलिए किसान भरोसेमंद जगहों से बीज खरीदें. प्रमाणित बीज खरीदें और संतुलित खाद का इस्तेमाल करें. इन सभी बातों को हम जानते हैं.
सोयाबीन के समुचित उत्पादन के लिए पोषक तत्वों की अनुशंसित की गई मात्रा 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60-80 किलोग्राम स्फुर, 50 किलोग्राम पोटाष एवं 20 कि.ग्रा गंधक / हेक्टेयर उपयोग किया जाना चाहिए. इसको प्रदाय करने के लिए 43 किलोग्राम यूरिया, 375-400 किलोग्राम सुपर फास्फेट, एवं 150-200 किलोग्राम म्युरेट आफ पोटाश एवं 150-200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर जिप्सम डालना चाहिए. उपरोक्त सभी मात्रा खेत मे अंतिम जुताई से पूर्व डालकर भलि-भांति मिट्टी मे मिला दें. रासायनिक खादों के संतुलित उपयोग के साथ वर्मी कम्पोस्ट, नाडेप खाद, गोबर खाद, कार्बनिक संसाधनो का अधिक उपयोग करें.
1. जिले की सभी बीज सोसायटी पर.
2. कृषि विज्ञान केन्द्र से.
3. बीज निगम डिपो से.
4. कृषि युनिवर्सिटी के कृषि तकनिकी सूचना केन्द्र पर.
पूर्ण रूप से पक जाने पर सोयाबीन की फलियों का रंग भूरा हो जाता है. यह समय फसल की कटाई के लिए उपयुक्त है और इस समय कटाई कर लेने से चटकने पर दाने बिखरने से होने वाली हानि में समुचित कमी लाई जा सकती है.फलियों के पकने की उचित अवस्था पर (फलियों का रंग बदलने या हरापन पूर्णतया समाप्त होने पर) कटाई करनी चाहिए. कटी हुई फसल को धूप मे 2-3 दिन सुखाकर थ्रेसर से धीमी गति (300-400 आर.पी.एम.) पर बुवाई करनी चाहिए. थ्रेसर की गति मे कमी लाने हेतु बड़ी पुल्ली का उपयोग करें तथा इस बात का ध्यान रखें कि गहाई के समय बीज का छिलका न उतरे एवं बीज में दरार न पड़े .
फसल सुरक्षा हेतु एकीकृत कीट नियंत्रण के उपाय जैसे नीम तेल व लाईट ट्रैप्स, फेरोमेन ट्रैप्स, बर्ड पर्चर एवं अन्य जैविक कम लागत की तकनीकों द्वारा नियंत्रित करे. इल्लियो एवं रस चूसक कीटो के नियंत्रण हेतू प्रोफेनोफास 50 ई.सी. 500 एम.एल. प्रति एकड़ तथा रसचूसक कीटों के लिए इमिडाक्लोरोपिड 17.8 एस.एल. 100 एम.एल. प्रति एकड़ का छिड़काव करें. प्रभावित एवं क्षतिग्रस्त पौधों को निकालकर खेत के बाहर मिट्टी मे दबा दें एवं कीटनाशको के छिड़काव हेतु 7-8 टंकी (15 लीटर पानी) प्रति बीघा के मान से पानी का उपयोग करना अति आवश्यक है.
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