हर फसल के लिए अलग तरह की मिट्टी की जरूरत होती है. अगर वैसी मिट्टी नहीं मिली तो फिर उत्पादन सही नहीं मिलता और उपज की गुणवत्ता भी खराब हो जाती है. भारत में मुख्य तौर पर आठ प्रकार की मिट्टी पाई जाती है, जिनकी उर्वरक क्षमता अलग-अलग है. इसमें जलोढ़ मिट्टी, काली मिट्टी, लाल और पीली मिट्टी, जंगली मिट्टी, नमकीन मिट्टी, पीट मिट्टी, मरू मिट्टी और लैटेराइट मिट्टी शामिल हैं. दोमट या जलोढ़ मिट्टी जलोढ़ मिट्टी भारत में सबसे बड़े क्षेत्र में पाई जाने वाली और सबसे महत्वपूर्ण मिट्टी समूह है. देश के कुल भूमि क्षेत्र के करीब 35 प्रतिशत हिस्से में यही मिट्टी है. जलोढ़ मिट्टी वह मिट्टी होती है जिसे नदियां बहा कर लाती हैं.
इस मिट्टी में नाइट्रोजन और पोटाश की मात्रा कम होती है. लेकिन फॉस्फोरस और ह्यूमस की अधिकता होती है. जलोढ़ मिट्टी उत्तर भारत के पश्चिम में पंजाब से लेकर सम्पूर्ण उत्तरी विशाल मैदान से चलते हुए गंगा नदी के डेल्टा क्षेत्र तक फैली है. इस मिट्टी की यह खासियत है कि इसमें उवर्रक क्षमता बहुत अच्छी होती है. पुरानी जलोढ़ मिट्टी को बांगर और नई को खादर कहा जाता है. जलोढ़ मिट्टी में तंबाकू, कपास, चावल, गेहूं, बाजरा, ज्वार, मटर, लोबिया, काबुली चना, काला चना, जूट, मक्का, हरा चना, तिलहन फसलें, सोयाबीन, मूंगफली, सरसों, तिल, सब्ज़ियों और फलों की खेती होती है.
काली मिट्टी काली मिट्टी बेसाल्ट चट्टानों (ज्वालामुखीय चट्टानें) के टूटने और इसके लावा के बहने से बनती है. इस मिट्टी को रेगुर मिट्टी और कपास की मिट्टी भी कहा जाता है. इसमें लाइम, आयरन, मैग्नेशियम और पोटाश होते हैं लेकिन फॉस्फोरस, नाइट्रोजन और कार्बनिक पदार्थ इसमें कम होते हैं. इस मिट्टी का काला रंग टिटेनीफेरस मैग्नेटाइट और जीवांश (ह्यूमस) के कारण होता है.यह मिट्टी डेक्कन लावा के रास्ते में पड़ने वाले क्षेत्रों जैसे महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध प्रदेश और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में होती है. गोदावरी, कृष्णा, नर्मदा और ताप्ती नदियों के किनारों पर यह मिट्टी पाई जाती है. इसमें गन्ना, गेहूं, ज्वार, सूरजमुखी, अनाज की फसलें, चावल, खट्टे फल, सब्ज़ियां, तंबाखू, मूंगफली, अलसी, बाजरा व तिलहनी फसलें होती हैं.
लाल और पीली मिट्टी ये मिट्टी ये दक्षिणी पठार की पुरानी मेटामार्फिक चट्टानों के टूटने से बनती है. भारत में यह मिट्टी छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश के पूर्वी भाग, छोटानागपुर के पठारी क्षेत्र, पश्चिम बंगाल के उत्तरी पश्चिम जिलों, मेघालय की गारो खासी और जयंतिया के पहाड़ी क्षेत्रों, नागालैंड, राजस्थान में अरावली के पूर्वी क्षेत्र, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक के कुछ भागों में पाई जाती है. यह मिट्टी कुछ रेतीली होती है और इसमें अम्ल और पोटाश की मात्रा अधिक होती है. लाल और पीली मिट्टी में होने वाली फसलें चावल, गेहूं, गन्ना, मक्का, मूंगफली, रागी, आलू, तिलहनी व दलहनी फसलें, बाजरा, आम, संतरा जैसे खट्टे फल व कुछ सब्ज़ियों की खेती अच्छी सिंचाई व्यवस्था करके उगाई जा सकती हैं.
ये भी पढ़ें- Mandi Rate: टमाटर के दाम में भारी उछाल, सिर्फ 22 दिन में ही बदला बाजार का रुख, किसानों को मिला बंपर फायदा
लैटेराइट मिट्टी लैटेराइट मिट्टी पहाड़ियों और ऊंची चट्टानों की चोटी पर बनती है. मॉनसूनी जलवायु के शुष्क और नम होने का जो परिवर्तन होता है उससे इस मिट्टी को बनने में मदद मिलती है. मिट्टी में अम्ल और आयरन ज़्यादा होता है और ह्यूमस, फॉस्फोरस, नाइट्रोजन, कैल्शियम की कमी होती है. लैटेराइट मिट्टी तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, ओडिशा और असम में पाई जाती है. लैटेराइट मिट्टी में होने वाली फसलें लैटेराइट मिट्टी ज़्यादा उपजाऊ नहीं होती है लेकिन कपास, चावल, गेहूं, दलहन, चाय, कॉफी, रबड़, नारियल और काजू की खेती इस मिट्टी में होती है. इस मिट्टी में आयरन की अधिकता होती है इसलिए ईंट बनाने में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है.
शुष्क मिट्टी आरावली के पश्चिमी क्षेत्र में पाई जाने वाली शुष्क मिट्टी में रेत की मात्रा अधिक होती है और क्ले की मात्रा कम होती है. सूखे वाले क्षेत्रों में ह्यूमस और मॉइश्चर की कमी कारण भी ये मिट्टी शुष्क हो जाती है. ये मिट्टी क्षारीय होती है और इसमें नमक की मात्रा अधिक व नाइट्रोजन की मात्रा कम होती है. इस मिट्टी का रंग कुल लाल या भूरा होता है. शुष्क मिट्टी में होने वाली फसलें इस मिट्टी में गेहूं, मक्का, दलहन, मक्का, जौ, बाजरा आदि उगाया जा सकता है.
जंगली मिट्टी भारत के वन क्षेत्रों में पाई जाने वाली मिट्टी है. ऐसी मिट्टी अधिक बारिश वाले वनों में देखने को मिल जाएगी. घाटी के किनारों पर इस मिट्टी के बड़े कण देखने को मिलते हैं.
यह मिट्टी पूरी तरह से शुष्क मिट्टी होती है, जो कि शुष्क वातावरण में होती है. रेगिस्तानी इलाकों में आपको इस प्रकार की मिट्टी देखने को मिल जाएगी, वहीं, धरती का अधिकांश भाग इसी मिट्टी से बना है.
पीट मिट्टी को जैविक मिट्टी भी कहा जाता है, जो कि दलदली मिट्टी होती है. यह मिट्टी आपको उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और केरल में देखने को मिल जाएगी. इस मिट्टी में फॉसफॉरस और पोटाश की मात्रा अधिक नहीं होती है.
नमकीन मिट्टी में नमक की मात्रा अधिक होती है, हालांकि यह फसलों के लिए अच्छा नहीं है. क्योंकि, मिट्टी में नमक अधिक होने की वजह से फसलों पर बुरा प्रभाव पड़ता है. इस मिट्टी को कल्लर मिट्टी भी कहा जाता है, जिसमें नाइट्रोजन की मात्रा कम होती है.