कसावा पौधे की जड़ से बनता है साबूदाना, जानें कहां और कैसे होती है इसकी खेती

कसावा पौधे की जड़ से बनता है साबूदाना, जानें कहां और कैसे होती है इसकी खेती

उपवास वाले द‍िन भारतीय घरों में सबसे अध‍िक साबूदाना से बने व्यंजन बनते हैं. शुद्ध और सात्व‍िक माना जाना ये साबूदाना टैपिओका यानी कसावा पेड़ की जड़ से बनता है. आइये जानते हैं क‍ि इसकी खेती कहां और कैसे होती है.

इस पौधे से बनता है साबूदाना, जानें खेती करने की आसान तरीका, फोटो साभार: freepikइस पौधे से बनता है साबूदाना, जानें खेती करने की आसान तरीका, फोटो साभार: freepik
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Dec 28, 2022,
  • Updated Dec 28, 2022, 3:39 PM IST

भारत में साबूदाना से व्यंजनों का सबसे अधि‍क उपयोग व्रत यानी उपवास के द‍िन होता है. शुद्ध और सात्व‍िक माने जाने वाला साबूदाना एक बॉयो प्रोडक्ट है. जो कसवा (इसे टैपिओका भी कहा जाता है) की जड़ों से बनता है. असल में माना जाता है क‍ि टैप‍िओका की जड़ों में स्टार्च की भारी मात्रा होती है, जिसे साबूदाना बनाने में उपयोग किया जाता है. आइये जानते हैं क‍ि ट‍ैप‍िकोओ की खेती कैसे और क‍िस जलवायु में की जा सकती है. साथ ही ये भी जानते हैं क‍ि देश के क‍िन क्षेत्रों में इसकी खेती की जाती है और कैसे इससे साबूदाना बनाया जाता है. 

दक्ष‍िण भारत के साथ ही मध्य प्रदेश में खेती     

टैप‍िकोओ की खेती आमतौर पर पर दक्षिण भारत में की जाती है. ज‍िसमें तम‍िलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल प्रमुख है. वहीं अब मध्य प्रदेश में भी इसकी खेती होने लगी है. असल में इसकी खेती कम पानी और कम उपजाऊ म‍िट्टी में की जा सकती है. इस वजह से क‍िसान अब इसे ऐसी जगहों पर बोने लगे हैं.

 

खेती के लिए जलवायु और मिट्टी

अब बात करते हैं कसावा की खेती की. कसावा की खेती किसान हर तरह की मिट्टी में कर सकते हैं. इसके लिए जल निकासी वाली मिट्टी सबसे अच्छी होती है.यह फसल गर्म और नमी वाली जलवायु में अच्छी वृद्धि करती है. इसका पौधा एक बार लग जाने के बाद सूखा पड़ने पर भी उपज देता है.
 

रोपण का मौसम, रोपण विधि


कसावा की खेती साल भर में कभी भी रोपाई की जा सकती है. इसके लिए दिसंबर का महीना सबसे अच्छा माना जाता है. वहीं इसकी खेती करने की कई व‍िध‍ियां हैं.इसमें से तीन प्रमुख व‍िध‍ियों की जानकारी दे रहे हैं. 


टीला विधि- इस विधि का उपयोग उस मिट्टी में किया जाता है जिसकी जल निकासी अच्छी होती है. इसमें 25-30 सेमी की ऊंचाई के टीले तैयार किए जाते हैं और इन्ही टीलों में कसाब के कंद को रोपा जाता है.

रिज विधि- इस विधि का उपयोग बारिश वाले क्षेत्रों में ढलानदार भूमि में और सिंचित क्षेत्र में समतल भूमि में किया जाता है. इसमें रिज की ऊंचाई 25-30 सेमी तक रखी जाती है.

समतल विधि- अच्छी जल निकासी वाली समतल भूमि में इसका उपयोग किया जाता है.
 

कसावा की उन्नत किस्में

H-165, H-97, H-226, श्री विसखाम इसके अलावा श्री सहया, श्री प्रकाश, श्री हर्षा, श्री जया, श्री विजया मुख्य किस्म है केंद्रीय कंद फसल अनुसंधान संस्थान तिरुवनंतपुरम केरल द्वारा विकसित किया गया है. यह संस्थान इस फसल से संबंधित प्रशिक्षण भी देती है.
 

ऐसे बनता है साबूदाना 

तकनीकी रूप से साबूदाना किसी भी स्टार्च युक्त पेड़ पौधों के से बनाया जा सकता है. लेकिन, अधिक स्टार्च होने की वजह से कसावा साबूदाने के उत्पादन के लिए उपयुक्त पाया गया है. कसावा की जड़ों से साबूदाने का न‍िर्माण क‍िया जाता है. इसके ल‍िए पहले कसवा की जड़ोंं के छिलके की मोटी परत को उतारकर धो लिया जाता है. धुलने के बाद उन्हें कुचला जाता है. निचोड़कर इकठ्ठा हुए गाढे द्रव को छलनियों में डालकर छोटी-छोटी मोतियों सा आकार दिया जाता है उसके बाद धूप में सुखा लिया जाता है या एक अलग प्रक्रिया के तहत भांप में पकाते हुए एक और गरम कक्ष से गुजारा जाता है. सूखने के बाद साबूदाना तैयार हो जाता है.

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