Sugarcane Farming: बढ़ते तापमान और कम बारिश ने गन्ना किसानों की चिंता बढ़ाई, कृषि वैज्ञानिक ने बताए उपाय

Sugarcane Farming: बढ़ते तापमान और कम बारिश ने गन्ना किसानों की चिंता बढ़ाई, कृषि वैज्ञानिक ने बताए उपाय

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण तापमान बढ़ता जा रहा है और बारिश में कमी आ रही है. इन स्थितियों के चलते गन्ना उत्पादन और चीनी रिकवरी में गिरावट दर्ज की जा रही है. ऐसे में कृषि वैज्ञानिक ने किसानों को कुछ टिप्स बताएं हैं जिन पर अमल करके किसान गन्ना की अच्छी पैदावार हासिल कर सकते हैं.

 बढ़ता तापमान गन्ने के लिए घातक - सांकेतिक फोटो सौजन्य- ICAR बढ़ता तापमान गन्ने के लिए घातक - सांकेतिक फोटो सौजन्य- ICAR
जेपी स‍िंह
  • नई दिल्ली,
  • Jun 09, 2024,
  • Updated Jun 09, 2024, 6:49 PM IST

नकदी फसल गन्ना को दुनिया की सबसे मूल्यवान कृषि वस्तुओं में से एक माना जाता है. गन्ने की खेती और प्रसंस्करण 120 देशों में 10 करोड़ से अधिक लोगों को आजीविका प्रदान करता है. भारत में चीनी उद्योग एक महत्त्वपूर्ण कृषि आधारित उद्योग है, जो लगभग 5 करोड़ गन्ना किसानों और चीनी मिलों में सीधे कार्यरत लगभग 5 लाख श्रमिकों की ग्रामीण आजीविका को प्रभावित करता है. लेकिन, बढ़ते तापमान और अनियमित वर्षा ने देश भर में गन्ना खेतों पर दबाव डाला है, जिससे गन्ने की वृद्धि के लिए जरूरी बेहतर परिस्थितियां बदल रही हैं.

अधिक तापमान गन्ने के लिए घातक

गन्ना विशेषज्ञों के अनुसार गन्ना 27-32 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर पनपता है. इन परिस्थितियों में विकास और शर्करा चरम पर होती है. बेहतर विकास के लिए इसे नियमित वर्षा की भी जरूरत होती है क्योंकि औसतन 1 किलोग्राम चीनी उत्पादन के लिए लगभग 1,500 से 2,500 लीटर पानी की जरूरत होती है. अधिक तापमान गन्ने के विकास को बाधित करता है, इसमें चीनी उत्पादन और गुणवत्ता दोनों में कमी आती है क्योंकि अधिक गर्मी और सूखे से पौधे में प्रकाश में कमी, विकास में रुकावट और चीनी की मात्रा में गिरावट होती है. हाल के दो-तीन वर्षों में तापमान बढ़ने के कारण गन्ना में नमी कम हो जाती है. इससे गन्ने की खेती अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाती है. सिंचाई की मांग बढ़ जाती है और किसानों की लागत भी बढ़ जाती है.

गन्ने में ज्यादा रस के लिए जरूरी तापमान

कृषि विज्ञान केंद्र नरकटियागंज बिहार के हेड डॉ. आरपी सिंह के अनुसार गन्ना की फसल बारिश और तापमान में अधिक बदलाव के चलते बुरी तरह प्रभावित होती है. गन्ने को जलवायु परिवर्तन से बचाने के लिए फसल के पर्याप्त जमाव तथा उचित बढ़वार के लिए खेत की मृदा में नमी का स्तर सर्वाधिक अहम है. उन्होंने बताया कि गन्ने की वृद्धि एवं विकास के लिए 20-35 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान जरूरी है, तब उत्पादन एवं चीनी का रिकवरी अधिक मिलती है. गन्ने की बुआई के लिए तापमान 20 से 32 डिग्री सेल्सियस तथा अच्छे जमाव और बेहतर लाभकारी उपज के लिए पर्याप्त संख्या में कल्लों की संख्या जरूरी है, जिसके लिए तापमान 30 से 35 डिग्री सेल्सियस और शुष्क मौसम चाहिए. जलवायु परिवर्तन से कीट व रोगों की संभावना भी बढ़ जाती है. मौसम में लंबे समय तक होने वाले बदलाव से कई कीटों और रोगों में वृद्धि होती है.

उत्पादन और चीनी रिकवरी में गिरावट

गन्ना मूल रूप से एक समान तापमान वाले क्षेत्रों की फसल है. पश्चिम चम्पारण एक समान तापमान वाले क्षेत्रों में आता है और यहां का तापमान 4-5 डिग्री सेंटीग्रेट से लेकर 40-45 डिग्री सेंटीग्रेट तक रहता है. तापमान में बदलाव के कारण गन्ने की फसल उत्पादन और चीनी पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. जब तापमान कम हो जाता है तो गन्ने का विकास बहुत धीमा होता है और कल्लों की संख्या कम हो जाती है. तापमान अधिक होने से भी कल्लों की संख्या कम हो जाती है और गन्ने में फूल आ जाता है. बदलते जलवायु परिवर्तन का प्रभाव गन्ने की फसल पर दिखाई दे रहा है, जिससे 1-2 प्रतिशत तक चीनी परता में कमी और उत्पादन 15-25 प्रतिशत तक प्रभावित हो सकता है.

बेमौसम बारिश गन्ना के लिए ठीक नहीं 

डॉ. सिंह ने कहा कि इस साल बारिश कम हुई है, तापमान अधिक दिनों तक बना रहा है और जब बारिश हुई भी तो उसमें एकरूपता नहीं थी. डॉ. सिंह ने बिहार के पश्चिम चम्पारण का उदाहरण देते हुए बताया कि उनके जिले के कुछ क्षेत्रों में कम या अधिक और अनियमित रूप से वर्षा हुई है. जिससे यह जल्दी परिपक्व हो जाता है.

  1. पानी की कमी के कारण गन्ने का उत्पादन घट जाता है और उसकी लंबाई व मोटाई भी कम हो जाती है.
  2. तापमान अधिक होने से सुक्रोज (चीनी) पौधे में जमा नहीं हो पाता, जिससे चीनी परता, गन्ने के रस की मिठास और गुणवत्ता में कमी आ जाती है.
  3. गन्ने के विकास की विभिन्न अवस्थाओं के लिए मौसम का तापमान 20-35 डिग्री सेंटीग्रेट तक का तापमान एक समान बना रहने से गन्ने का विकास अच्छा होता है 

किसान इन बातों पर दें ध्यान

  1. फसल में पर्याप्त रस के जमाव और पौधे के विकास के लिए गन्ना बुआई के समय वातावरण और गन्ने के टुकड़ों और खेत की मृदा में नमी का स्तर बहुत अहम है.
  2. इसलिए जरूरी है कि जब तक बारिश ना हो जाए तब तक 10 से 12 दिन पर हल्की सिंचाई की जाए.
  3. बसंतकालीन गन्ने में इंटरक्रॉप के रूप में मूंग, उर्द, राजमा आदि फसलें लगाने से एक सिंचाई से दोनों फसलों को फायदा होता है. 
  4. ये फसलें मल्चिंग का भी काम करती हैं. इस तरह लागत कम की जा सकती है और मिट्टी की नमी को ज्यादा देर तक बनाए रखा जा सकता है. 

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