पंजाब में धान के किसान DSR तकनीक से क्‍यों बचते हैं? ये हैं वो 3 वजहें 

पंजाब में धान के किसान DSR तकनीक से क्‍यों बचते हैं? ये हैं वो 3 वजहें 

मौसम में बदलाव और डीएसआर के बारे में कम जागरूकता और खरपतवार के साथ कीट नियंत्रण रणनीतियों की वजह से पंजाब में डीएसआर को बड़े स्‍तर पर अपनाने से किसान बचते आए हैं. धान की खेती के लिए पारंपरिक रोपाई विधि की तुलना में डीएसआर में 15 से 20 फीसदी तक कम पानी का प्रयोग होता है. इसके अलावा इसमें मेहनत भी कम लगती है.

पंजाब के सीएम मान ने की है धान के किसानों से खास अपील पंजाब के सीएम मान ने की है धान के किसानों से खास अपील
क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • May 17, 2025,
  • Updated May 17, 2025, 5:35 PM IST

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने धान के किसानों से अपील की हे कि वो सीधी बुवाई यानी डीएसआर तकनीक को अपनाएं. उनका कहना है कि यह भूजल में गिरावट को रोकने में कारगर होगी. वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि मान सरकार को अपने इस लक्ष्‍य में कुछ मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. मान का कहना है कि उनकी सरकार ने किसानों के हित के लिए कई तरह की पहल शुरू की हैं. इन्‍हीं पहल के तहत राज्य सरकार ने धान की खेती की डीएसआर तकनीक को प्रोत्साहित किया है. इसके तहत गुरुवार को इस योजना के तहत बुवाई शुरू कर दी गई है. 

सरकार के सामने हैं चुनौतियां 

पंजाब के सीएम मान के अनुसार उनकी सरकार ने इस खरीफ सीजन के दौरान पांच लाख एकड़ भूमि को डीएसआर तकनीक के तहत लाने का लक्ष्य रखा है. डीएसआर तकनीक को पानी की बचत करने वाली तकनीक माना जाता है. सीधी चावल की बुवाई (डीएसआर) विधि से धान उगाने के लक्ष्य को पूरा करने में पंजाब सरकार को एक कठिन चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. राज्य सरकार डीएसआर तकनीक के तहत बुवाई करने वाले किसानों को प्रति एकड़ 1,500 रुपये का प्रोत्साहन दे रही है. 

इन वजहों से हिचकते हैं किसान 

इससे पहले मौसम में बदलाव और डीएसआर के बारे में कम जागरूकता और खरपतवार के साथ कीट नियंत्रण रणनीतियों की वजह से पंजाब में डीएसआर को बड़े स्‍तर पर अपनाने से किसान बचते आए हैं. धान की खेती के लिए पारंपरिक रोपाई विधि की तुलना में डीएसआर में 15 से 20 फीसदी तक कम पानी का प्रयोग होता है. इसके अलावा इसमें मेहनत भी कम लगती है. एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार साल 2024 में, डीएसआर के तहत कुल 2.53 लाख एकड़ खेती की गई थी. जबकि साल 2023 में यह आंकड़ा 1.7 लाख एकड़ था. 

सोशल मीडिया पर फैली अफवाहें 

सोशल मीडिया पर फैली अफवाहों ने भी डीएसआर को मंजूरी मिलने में मुश्किलें पैदा कीं. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के एक विशेषज्ञ ने बताया कि मालवा क्षेत्र के किसानों के बीच कई तरह के ऐसे दावे फैले जो पूरी तरह से निराधार थे. इन दावों में गलत बातें कहीं गई थी कि डीएसआर तकनीक के प्रयोग से उगाई गई फसलें विशेष रूप से फंगल हमलों के लिए अतिसंवेदनशील थीं. 

किसानों को मिलती आर्थिक मदद 

साल 2022-23 में डीएसआर तकनीक के तहत ‘चावल की सीधी बुवाई प्रोत्साहन’ योजना में किसानों के रजिस्‍ट्रेशन में उतार-चढ़ाव देखा गया है. पहले साल 35,836 किसानों ने इसे अपनाया तो वहीं साल 2023-24 में यह संख्‍या घटकर 19,223 हो गई. फिर 2024-25 में थोड़ा सुधार हुआ और यह 24,454 हो गई. इन तीन सत्रों में सरकार की तरफ से दी गई आर्थिक मदद 25.23 करोड़ रुपये, 19.91 करोड़ रुपये और 29.02 करोड़ रुपये थी. 

सरकार की तरफ से लगाए जा रहे कैंप्‍स 

लुधियाना के मुख्य कृषि अधिकारी गुरदीप सिंह जोहल ने अखबार टाइम्‍स ऑफ इंडिया से कहा कि कृषि विभाग की तरफ से शिविर लगाए जा रहे हैं.  उन्होंने कहा कि जिलों के लिए लक्ष्य तय कर दिए गए हैं. लुधियाना में 20,000 एकड़ से अधिक भूमि पर डीएसआर तकनीक के प्रयोग की योजना है. डीएसआर के उपयोग से मॉनसून के दौरान भूजल को रिचार्ज करने में मदद मिलती है. अगर किसान डीएसआर का उपयोग करते हैं तो धान की पैदावार पर कोई असर नहीं पड़ता है.

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