पंजाब के अमृतसर जिले में शनिवार यानी 15 जून से धान की रोपाई शुरू हो गई. इसके साथ ही जिला कृषि विभाग ने किसानों से जल संरक्षण में मदद के लिए कम अवधि वाली किस्मों की खेती करने की अपील की है. कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कम अवधि वाली किस्में पारंपरिक किस्मों की तुलना में कम पानी का उपयोग करने के लिए जानी जाती हैं. राज्य सरकार ने पहले जिले में धान की रोपाई के लिए 15 जून की तारीख अधिसूचित की थी. हालांकि, मजदूरों की कमी और ट्यूबवेल के लिए अपर्याप्त बिजली आपूर्ति जैसी समस्याओं के कारण धान की रोपाई का काम धीमी गति से चल रहा है.
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्य कृषि अधिकारी (सीएओ) तजिंदर सिंह ने कहा कि कुछ मुद्दों को सुव्यवस्थित करने के बाद धान की रोपाई का काम गति पकड़ लेगा. उन्होंने कहा कि आमतौर पर पहली बारिश के बाद काम में तेजी आती है, क्योंकि खेतों में पानी भरने की जरूरत को पूरा करना आसान हो जाता है. सीएओ ने आगे कहा कि धान की खेती के लिए खेतों को लेजर लैंड लेवलर का उपयोग करके समतल किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि किसानों को खेतों में पानी भरने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे पानी की बर्बादी होती है.
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उन्होंने कहा कि खेत में पानी का समान वितरण होना चाहिए जो तभी संभव है जब खेत को ठीक से समतल किया जाए. खास बात यह है कि तजिंदर सिंह ने जंडियाला क्षेत्र के जोगा सिंह वाला गांव का भी दौरा किया है. इस गांव में किसानों ने धान की सीधी बुवाई (डीएसआर) तकनीक अपनाई है. इस पर तजिंदर सिंह ने कहा कि यह तकनीक चावल की खेती के लिए सबसे अच्छी है, क्योंकि इससे शारीरिक श्रम पर निर्भरता कम होती है और पानी की बचत होती है. उन्होंने कहा कि विभाग के फील्ड अधिकारी किसानों को डीएसआर तकनीक का सही तरीके से उपयोग करने के लिए तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए खेतों का दौरा कर रहे हैं.
वहीं, बीते दिनों खबर सामने आई थी कि पंजाब के मुक्तसर, फरीदकोट, बठिंडा, मानसा, फाजिल्का और फिरोजपुर जिले में 11 जून से खेतों में धान की रोपाई शुरू हो गई है. जबकि बाकी 17 जिलों में 20 जून से रोपाई शुरू की जाएगी. खास बात यह है कि इन जिलों में पहले धान की रुपाई इसलिए शुरू हुई, क्योंकि ये सिंचाई के लिए मुख्य रूप से नहर के पानी पर निर्भर हैं. इससे पहले पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने अप्रैल में 18 से 24 जून के बीच धान की बुवाई का प्रस्ताव दिया था. विश्वविद्यालय ने योजना बनाने और किसानों तक इसे पहुंचाने के लिए राज्य के कृषि विभाग को सिफारिशें भेजी हैं, हालांकि बुवाई एक सप्ताह पहले ही शुरू हो गई है.
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