खरीफ सीजन में ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों का जमावड़ा गांव के चौराहे पर नहीं बल्कि खेत की ओर देखने को मिल रहा है. जहां पिछले साल की तुलना में इस वर्ष धान की रोपनी के समय हुई बारिश से थोड़े किसान खुश हैं. लेकिन आसमान के हर झण बदलते रंगों को देख किसान थोड़े असमंजस की स्थिति में भी दिख रहे हैं. वहीं जहां बिहार के कई किसान जिनके पास सिंचाई का साधन था, वे बारिश और ट्यूबवेल के सहारे धान की रोपनी कर चुके हैं या अंतिम पड़ाव की ओर हैं. जबकि अभी भी राज्य के कई इलाकों के किसान बारिश और नहर में पानी के इंतजार में धान की रोपनी को रफ्तार नहीं दे पा रहे हैं.
कैमूर जिले के रहने वाले किसान भानु प्रताप सिंह कहते हैं कि पिछले साल की तुलना में इस बार धान की रोपनी दस दिन पहले हो गई है. जहां पिछले वर्ष पांच अगस्त तक धान की रोपनी चली थी. लेकिन जून के अंतिम सप्ताह और जुलाई में एक दो दिन हुई बारिश ने धान की रोपनी को रफ़्तार दिया है. हालांकि अब बारिश नहीं होने से धान की फसल में सिंचाई की दिक्कत आनी शुरू हो गई है क्योंकि अभी नहर में भी पानी की गति बहुत बेहतर नहीं है. भोजपुरी भाषा में एक कहावत बारिश को लेकर कहते हैं कि 'लाल, पियर जब होखे अकास, तब नइखे बरसा के आस'. यानी अगर आकाश का रंग लाल और पीला हो तो बारिश की संभावना नहीं होती. कभी-कभी इस तरह की भी स्थिति देखने को मिल रही है.
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सहरसा जिले के रहने वाले सुदिप्त प्रताप सिंह कहते हैं कि इस बार पिछले साल के समय पर धान की रोपनी शुरू हुई है. लेकिन अभी भी बहुत अच्छी बारिश नहीं होने से कई किसान धान की रोपनी शुरू नहीं कर पाए हैं. वे आगे बताते हैं कि इस बार धान का पौधा लगाने वाली महिला मजदूर की मजदूरी पिछले साल की तरह ही दो सौ रुपये है. पुरुष का चार सौ रुपये है. इनके दाम में बढ़ोतरी नहीं हुई है जबकि कैमूर जिले के किसान पंकज कहते हैं कि उनके यहां इस बार प्रति एकड़ 125 रुपये मजदूरी में बढ़ोतरी हुई है. भोजन अलग से है. वहीं पटना जिले के रहने वाले किसान सूरज भी कहते हैं कि जो पुरुष धान की रोपनी करते हैं, उनकी मजदूरी पिछले साल की तुलना में बढ़ी है. इस साल 1600 रुपये प्रति बीघा है, जबकि बीते वर्ष 1500 रुपये प्रति बीघा था. वहीं खेत की जुताई दो साल से 1600 रुपये प्रति एकड़ ही चल रहा है. लेकिन तीन साल पहले 1280 रुपये प्रति एकड़ था.
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राज्य की सरकार रबी और खरीफ सीजन में प्रमुख फसलों की खेती का एक तय लक्ष्य निर्धारित करती है. वहीं इस साल खरीफ सीजन में सरकार द्वारा मक्का का 2.93 लाख हेक्टेयर, अरहर का 0.56 लाख हेक्टेयर, मूंग का 0.17 लाख हेक्टेयर, जबकि मोटे अनाज में बाजरा का 0.15 लाख हेक्टेयर, ज्वार का 0.16 लाख हेक्टेयर, मड़ुआ का 0.29 लाख हेक्टेयर और अन्य दलहन का 0.11 लाख हेक्टेयर क्षेत्र का लक्ष्य निर्धारित किया है. धान की खेती का 36.54 लाख हेक्टेयर के अनुपात में 3.65 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बिचड़ा गिराने का लक्ष्य रखा गया है.